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कभी वर चुनने के लिए खेला जाता था जलीकट्टू, 400 वर्ष पुरानी है इसकी परंपरा

जलीकट्टू की परंपरा तमिलनाडु में 400 वर्ष पुरानी है। पिछले दो वर्षों में इस पर काफी बवाल भी मचा था। कभी इसकी शुरुआत वर को चुनने के लिए की गई थी लेकिन आज इसके मायने बदल गए हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 16 Jan 2019 11:50 AM (IST)Updated: Wed, 16 Jan 2019 12:11 PM (IST)
कभी वर चुनने के लिए खेला जाता था जलीकट्टू, 400 वर्ष पुरानी है इसकी परंपरा

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। तमिलनाडु में पोंगल त्योहार के दौरान खेले जाने वाले लोकप्रिय खेल जलीकट्टू को लेकर एक बार फिर लोगों में जबरदस्‍त उत्‍साह देखा जा रहा है। पिछले वर्ष इस खेल से हुई मौतों को लेकर बड़ा बवाल मचा था। यहां तक की सुप्रीम कोर्ट ने इस खेल पर प्रतिबंध तक लगा दिया था, जिसके बाद राज्‍य सरकार ने केंद्र से अध्‍यादेश लाकर इसपर कानून बनाने तक की बात कही थी। आपको बता दें कि कई दूसरे देशों में भी इस तरह के खेल होते हैं। जहां तक भारत की बात है तो अक्‍‍‍‍सर इस खेल में लोग घायल होते हैं, तो कई बार कुछ की मौत भी हो जाती है। बहरहाल, जलीकट्टू को लेकर हम सभी के मन में कुछ सवाल जरूर उठते हैं, जैसे आखिर जलीकट्टू क्‍या है और इसको क्‍यों खेला जाता है? आइए आपको बताते हैं, इन सभी सवालों के जवाब...  

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क्या है जलीकट्टू

जलीकट्टू तमिलनाडु का चार सौ वर्ष से भी पुराना पारंपरिक खेल है, जो फसलों की कटाई के अवसर पर पोंगल के समय आयोजित किया जाता है। इसमें 300-400 किलो के सांड़ों की सींगों में सिक्के या नोट फंसाकर रखे जाते हैं और फिर उन्हें भड़काकर भीड़ में छोड़ दिया जाता है, ताकि लोग सींगों से पकड़कर उन्हें काबू में करें। सांड़ों को भड़काने के लिए उन्हें शराब पिलाने से लेकर उनकी आंखों में मिर्च डालने और उनकी पूंछों को मरोड़ा तक जाता है, ताकि वे तेज दौड़ सकें।

जलीकट्टू का मतलब

कहा जाता है कि जल्ली/सल्ली का अर्थ ही होता है 'सिक्का' और कट्टू का 'बांधा हुआ। सांडों के सींग में कपड़ा बंधा होता है जिसे खिलाड़ी को पुरस्कार राशि पाने के लिए निकालना होता है।

इस खेल के नियम 

खेल के शुरू होते ही पहले एक-एक करके तीन सांडों को छोड़ा जाता है। ये गांव के सबसे बूढ़े सांड होते हैं। इन सांडों को कोई नहीं पकड़ता, ये सांड गांव की शान होते हैं और उसके बाद शुरु होता है जलीकट्टू का असली खेल। मुदरै में होने वाला ये खेल तीन दिन तक चलता है।

सालों पुरानी है जलीकट्टू परंपरा

तमिलनाडु में जलीकट्टू 400 साल पुरानी परंपरा है। जो योद्धाओं के बीच लोकप्रिय थी। प्राचीन काल में महिलाएं अपने वर को चुनने के लिए जलीकट्टू खेल का सहारा लेती थी। जलीकट्टू खेल का आयोजन स्वंयवर की तरह होता था जो कोई भी योद्धा बैल पर काबू पाने में कामयाब होता था महिलाएं उसे अपने वर के रूप में चुनती थी।

जलीकट्टू और बुलफाइटिंग कितना में अंतर

जलीकट्टू की तुलना स्पेन में खेले जाने वाली बुलफाइटिंग से भी की जाती है। हालांकि समर्थकों का कहना है कि जल्लीकट्टू यूरोपीय देश स्पेन में होनेवाली बुलफाइटिंग से अलग है और इसमें स्पैनिश स्पोर्ट्स की तरह हथियारों का इस्तेमाल नहीं होता और न ही खेल का मतलब है अंत में जानवर का खात्मा। 

जलीकट्टू पर प्रतिबंध

साल 2011 में यूपीए सरकार ने जलीकट्टू पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन सत्ता में आने के बाद एनडीए सरकार ने 8 जनवरी 2016 में इसको हरी झंडी दे दी। बीते साल सुप्रीम कोर्ट ने इस पर पाबंदी लगाते हुए राज्य सरकार की याचिका भी खारिज कर दी थी जिसमें 2014 के आदेश पर पुनर्विचार करने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ तमिलनाडु विधानसभा एक प्रस्ताव भी पास कर चुकी है। प्रस्ताव के तहत जल्लीकट्टू पर लगे प्रतिबंध को हटाने की मांग की गई थी।


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