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महफूज रखें 'गुड़िया' को बुरी नजर से

एम्स में जिंदगी की जंग लड़ रही है मासूम गुड़िया। खौफनाक मंजर से वह कब निकलेगी, यह अभी नहीं कहा जा सकता है। लेकिन जिस उम्र में उसे परियों की कहानी सुनना चाहिए, उस उम्र में उसे मिली असहनीय पीड़ा। ऐसी कई गुड़िया हैं, जिनका पूरा जीवन ही पीड़ादायी बन गया है। उनके हिस्से में आया तो बस दरिंदगी का दंश और

By Edited By: Published: Mon, 22 Apr 2013 08:42 AM (IST)Updated: Mon, 22 Apr 2013 08:43 AM (IST)
महफूज रखें 'गुड़िया' को बुरी नजर से

प्रदीप कुमार सिंह, नई दिल्ली। एम्स में जिंदगी की जंग लड़ रही है मासूम गुड़िया। खौफनाक मंजर से वह कब निकलेगी, यह अभी नहीं कहा जा सकता है। लेकिन जिस उम्र में उसे परियों की कहानी सुनना चाहिए, उस उम्र में उसे मिली असहनीय पीड़ा। ऐसी कई गुड़िया हैं, जिनका पूरा जीवन ही पीड़ादायी बन गया है। उनके हिस्से में आया तो बस दरिंदगी का दंश और उसके बाद का समाज की टेढ़ी नजर।

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गुड़िया की तरह ही चार साल की मासूम बिंदिया (परिवर्तित नाम) का पूरा परिवार ही दरिंदगी का दर्द झेल रहा है। मासूम से उसके पड़ोस में ही रहने वाले ऐसे शख्स ने घिनौनी हरकत की, जिसकी गोद में वह पली-बढ़ी थी। शर्म की वजह से बिंदिया के परिवार को बस्ती ही छोड़नी पड़ी। सब्जी बेचने वाले उसके पिता कहते हैं कि अब किसी पर भी ऐतबार नहीं। ऐसी जगह रहते हैं, जहां कोई पहचानता नहीं है। बच्चों को स्कूल भी नहीं भेजते।

दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि जानकार ही ऐसे घिनौने काम करते हैं। बच्चों के आसानी से बहकावे में आने से वे ऐसे लोगों के शिकार बन जाते हैं। छेड़छाड़ जैसी घटनाएं बच्चों द्वारा न बताने से सामने भी नहीं आ पाती हैं।

पुलिस के अतिरिक्त उपायुक्त राजन भगत इसकी प्रमुख वजह सामाजिक ताने-बाने के ध्वस्त होने को मानते है। वहीं मनोचिकित्सक डॉ. अनिल कुमार कहते हैं कि महानगरी संस्कृति में विलासी जीवन से नैतिक मूल्यों में गिरावट आई है। समाजशास्त्री डॉ. नीरा अग्निमित्र (डीयू) कहती हैं कि अपनों से ऐसे व्यवहार की उम्मीद न होने से बच्चियां सावधान नहीं होती हैं। जिसका कई बार फायदा उठाया जाता है।

केवल 41 फीसद मामलों में मिलती है सजा

पुलिस के अनुसार रेप के मामलों में राजधानी में सजा दर 41 फीसद है, जबकि देश में यह आंकड़ा 26 फीसद है। छेड़छाड़ के मामलों में सजा दर 43 फीसद है, जबकि देश में यह 27 फीसद ही है।

ऐसे करें हिफाजत

विश्वास जताएं : परिजनों को बच्चों की बातों पर विश्वास करना चाहिए। इससे वे हर बात बिना झिझक के बताएंगे।

संवाद बढ़ाएं: बच्चे से अधिक से अधिक बात करें। उसकी भावनाओं को समझकर ऐसा माहौल दें जिससे वह कोई भी बात न छिपाए।

व्यवहार पर नजर रखें: परिजनों को ध्यान देना होगा कि कहीं बच्चा पड़ोसी, रिश्तेदार या किसी और के सामने जाने से बच तो नहीं रहा है। स्कूल जाने में आनाकानी तो नहीं कर रहा है। संभव है कि वह उस व्यक्ति की गलत हरकत से परेशान हो।

नींद में रोने पर दें ध्यान: रात में यदि बच्चा नींद में रोता है या बातें करता है तो उस पर ध्यान दें। हो सकता है कोई बात उसे परेशान कर रही हो।

बच्चों को बताएं कैसे परखें नीयत: परिजनों को समझना होगा कि समय बदल रहा है। बच्चे को बताएं कि किस तरह वह महफूज रहे। कोई उसे प्यार से छू रहा है या उसकी नीयत गलत है, इसे पहचानने के तरीके भी बताएं। उन्हें समझाएं कि यदि कोई यह कहकर कुछ करता है कि किसी को मत बताना, तो यह गलत है। इस बात को परिजनों को जरूर बताएं।

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