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केदारनाथ आपदा: खोखले दावे, घोषणाएं भी हवा

केदारनाथ त्रासदी को एक बरस बीत चुका है। गुजरे कल को भुलाकर हर कोई उम्मीद की नई सुबह तलाश रहा है, लेकिन अफसोस! सरकार की नजर अब भी घाटी की उदासी पर नहीं पड़ी। बस खोखले दावों और हवाई घोषणाओं से भरा जा रहा है आपदा प्रभावितों का पेट। यही वजह है कि आज भी घाटी में सैकड़ों घरों के अ

By Edited By: Published: Mon, 16 Jun 2014 07:41 AM (IST)Updated: Mon, 16 Jun 2014 07:52 AM (IST)
केदारनाथ आपदा: खोखले दावे, घोषणाएं भी हवा

रुद्रप्रयाग, [विक्रम कप्रवाण]। केदारनाथ त्रासदी को एक बरस बीत चुका है। गुजरे कल को भुलाकर हर कोई उम्मीद की नई सुबह तलाश रहा है, लेकिन अफसोस! सरकार की नजर अब भी घाटी की उदासी पर नहीं पड़ी। बस खोखले दावों और हवाई घोषणाओं से भरा जा रहा है आपदा प्रभावितों का पेट। यही वजह है कि आज भी घाटी में सैकड़ों घरों के आंगन सूने पड़े हैं। कालीमठ घाटी में ही ऐसे 20 गांव हैं, जहां के लोगों ने इस आपदा में अपनों को खोया, लेकिन एक साल बाद भी उन्हें वह राहत नहीं मिली, जिसकी दरकार थी।

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आपदा ने केदारघाटी के लगभग हर परिवार को किसी न किसी रूप में जख्म दिया है। लमगौंडी की विमला देवी ने आपदा में पति को खो दिया था। सरकार ने पांच लाख की रकम देकर जख्मों पर मरहम लगाने का प्रयास तो किया, लेकिन वह चार बेटियों की जिम्मेदारी कैसे निभाएंगी, इसका जवाब किसी के पास नहीं। सरकार ने रोजगार देने का वायदा किया था, उसे भी एक बरस बीत गया। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पांच लाख की रकम उसके परिवार का भविष्य सवार देगी। यही चुनौती कोटमा की सुनीता के सामने भी है। पति का रामबाड़ा में दुकान थी, लेकिन आपदा के बाद रोजगार रहा न पति। तीन बच्चों को लाइन-पालन की जिम्मेदारी उस अकेली पर आ गई। इसका दर्द सुनीता के चेहरे पर साफ पढ़ा जा सकता है।

कालीमठ घाटी की बात करें तो यहां आज भी बुनियादी सुविधाओं के हाल बुरे है। घाटी को यातायात सुविधा से जोड़ने वाला गुप्तकाशी-कालीमठ-कोटमा मोटर मार्ग बदहाल पड़ा है। मंदाकिनी नदी पर बहे दो पुलों के स्थान पर लगी ट्रॉलियों के सहारे लोग जैसे-तैसे आवाजाही कर रहे है। आपदा में कालीमठ मंदिर को भारी नुकसान झेलना पड़ा। मंदाकिनी की बाढ़ लक्ष्मी मंदिर समेत अन्य पौराणिक धरोहर को लील गई। वह तो बीएसएफ आगे आई और पौराणिक कालीमठ मंदिर को बचा लिया गया। इस घाटी में आपदा ने 157 जानें ली। कई घरों के चिराग ही नहीं बुझे, कमाने वाले हाथ भी कट गए। अब ऐसे परिवारों को कोई सहारा देने वाला तक नहीं है। होना तो यह चाहिए था कि सरकार के नुमाइंदे खुद ऐसे परिवारों की सुध लेने पहुंचते।

काली गंगा घाटी से लापता लोग

गांव-लापता

कोटमा-28

जाल तल्ला-20

बेडुला-18

जाल मल्ला-17

चिलौंड-15

चौमासी-12

ब्यूंखी (कुणजेठी)-10

राऊंलेक-06

गडगू-06

गौंडार-02

मनसूमा-04

बुरुवा-04

चुन्नी मंगोली-03

उनियाणा-03

पाली सरुणा-02

जग्गी बगवान-02

गिरिया-02

फाफंज-01

रांसी-01

गेड-01

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