कस्तूरबा गांधी के गांव में अपने हाथों से कते सूत से बने कपड़े पहनती हैं छात्राएं
Kasturba Gandhi Death anniversaryइंदौर के कस्तूरबा ग्राम में प्रतिदिन सैकड़ों छात्राएं सूत कातती हैं। यह महिलाओं के स्वरोजगार और सशक्तीकरण के लिए बड़ी पहल साबित हो रहा है। नई दुनिया
अश्विन बक्शी, इंदौर। Kasturba Gandhi Death Anniversary यह बा का घर है... प्रार्थना के बाद सैकड़ों छात्राएं रोज एक साथ बैठकर सूत कातती हैं। आश्रम के कर्मचारी भी इसमें श्रमदान देते हैं। फिर अपने हाथों कते सूत से बने कपड़े और स्कूल ड्रेस पहनती हैं। इंदौर की शहरी सीमा को पार करते ही कस्तूरबा ग्राम की सीमाएं शुरू हो जाती हैं। ग्रामीण, दलित महिलाओं को शिक्षा, सेवा और स्वरोजगार से जोड़ने की दिशा में काम कर रही इस संस्था में आज 2500 छात्राएं शिक्षा पा रही हैं। यहां हर रोज प्रार्थना के बाद आज भी नियमित आधा घंटा सूत काटा जाता है। कन्या विद्या मंदिर की 250 छात्राएं व आश्रम के सौ से अधिक कर्मचारी इसमें अपना योगदान देते हैं।
कताई विभाग प्रभारी पद्मा मानमोड़े के अनुसार एक दिन में एक गुंडी 30 दिन में 30 गुंडी। 30 गुंडी में एक किलो यानी 6 मीटर के लगभग कपड़ा तैयार हो जाता है। इसका उद्देश्य पैसा बचाना या कमाना नहीं है, बल्कि श्रमदान कर स्वावलंबी बनाना है। इसके लिए बालिकाओं को ट्रेनिंग दी जाती है। मध्य प्रदेश के इंदौर में स्थापित कस्तूरबा ग्राम में आज भी बा-बापू के लिखे पत्र, तस्वीरें व साहित्य यहां आने वाले लोगों को आत्मविभोर कर देता है। यह आश्रम आज भी उसी गति से बा के सेवा भावी सपने व महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का काम कर रहा है।
इस तरह कर रहे हैं काम : गोशाला में सौ गिर गायों का पालन हो रहा है। यहां के कर्मचारियों को 20 रुपये प्रति लीटर और बाहर सिर्फ 50 रुपये प्रति लीटर दूध उपलब्ध कराया जा रहा है। जबकि इस समय पूरे देश में सबसे महंगा दूध गिर गाय का ही बेचा जा रहा है। यहां पर 40 साल से भी अधिक समय से गौ पालन हो रहा है।
बांस की बनी ज्वेलरी : 2019 में आश्रम में बांस की बनी ज्वेलरी बनाने का काम शुरू कराया गया। पूरे प्रदेश में यह काम सिर्फ कस्तूरबा आश्रम में ही सिखाया जा रहा है। 30 महिलाओं को प्रशिक्षण दे यह काम शुरू किया गया। अब सौ से अधिक महिलाएं इस काम को कर रही है। आसपास के गांव की महिलाओं को इस काम से रोजगार मिल रहा है।
अल्पकालिक कोर्स : नेवाली में 2500 से अधिक बालिकाएं हैं। यहां पर बालवाड़ी से लेकर स्नातकोत्तर तक की शिक्षा प्रदान की जा रही है। इसमें कम्प्यूटर, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, पेंटिंग, बीए, सहित अन्य कोर्स चलाए जा रहे हैं। यहा शिक्षा पाकर बालिकाएं आसपास के गांव में जाकर सफाई के लिए प्रेरित करने सहित समस्याओं को भी हल करने का काम कर रही है। इसके लिए उन्हें अतिरिक्त अंक दिए जाते हैं।
250 एकड़ में उगा रहे फल सब्जी अनाज : ट्रस्ट के पास कुल 480 एकड़ जमीन है। इसमें से 50 एकड़ में फल-सब्जी व 200 एकड़ में अनाज उगाया जा रहा है। यह सभी खेती जैविक तरीके से की जा रही है। आश्रम के कर्मचारियों को आधी कीमत पर सभी सामग्री उपलब्ध कराते हैं।
यादों को संजोने का किया प्रयास : आश्रम में स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर बा के अंतिम समय तक की तस्वीरें प्रदर्शित की गई है। जिसमें बा-बापू के साथ की भी तस्वीरें शामिल हैं। इसके अलावा डाक टिकट, बापू की भस्मी, कस्तूरबा गांधी की भस्मी, गांधीजी के साथी महादेव भाई की भस्मी, बापू के उपवास के दौरान ली गई खून जांच की स्लाइड, जवाहर लाल नेहरू की अस्थि, पेन व मालाओं सहित अन्य सामग्री रखी गई है।
गांधीजी ने स्थापित किया था पहला कस्तूरबा स्मारक ट्रस्ट : 22 फरवरी 1944 को पुणे के आगा खां पैलेस में कस्तूरबा गांधी के निधन के बाद महात्मा गांधी ने कस्तूरबा गांधी के नाम से ट्रस्ट खोलने का निर्णय लिया। उन्होंने इसे भारत के मध्य में किसी गांव में खोलने की इच्छा जताई। 2 अक्टूबर 1945 को गांधी जी के जन्मदिन के अवसर पर कस्तूरबा ग्राम ट्रस्ट का गठन किया गया। इसके पहले अध्यक्ष खुद महात्मा गांधी बने। उपाध्यक्ष सरदार पटेल बनाए गए। आजादी के बाद इंदौर में स्थापना के बाद देश के 23 राज्यों में 547 शाखाएं संचालित हो रही है। बा के सपने के अनुरूप ही महिलाओं को प्रशिक्षण, सेवा, शिक्षा, स्वरोजगार के माध्यम से सक्षम बनाने काम किया जा रहा है।
ट्रस्ट की मंत्री व पूर्व आइएस सूरज डामोर ने बताया कि अंबर चरखों के माध्यम से बालिकाएं सूत कातने का काम कर रही है। इसके अलावा कोर्स व प्रशिक्षण भी प्रदान किया जा रहा है। पुरानी पंरपराएं और नए प्रयोग से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना पहला लक्ष्य है।