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सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी चुनौती बना कश्मीरी युवाओं को आतंकी बनने से रोकना

पिछले साल 117 से अधिक स्थानीय युवाओं ने आतंक का रास्ता अख्तियार किया।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Mon, 08 Jan 2018 09:05 PM (IST)Updated: Mon, 08 Jan 2018 09:05 PM (IST)
सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी चुनौती बना कश्मीरी युवाओं को आतंकी बनने से रोकना
सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी चुनौती बना कश्मीरी युवाओं को आतंकी बनने से रोकना

नीलू रंजन, नई दिल्ली। सीमा पार से घुसपैठ रोकने में काफी हद तक सफलता मिलो हो, लेकिन स्थानीय युवाओं के आतंकी बनने से रोकना सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रही है। हालत यह है कि अकेले 2017 में घाटी में 117 से अधिक युवा आतंकी संगठनों में शामिल हो चुके हैं। इसके पहले 2010 में 100 से अधिक युवाओं ने आतंक का रास्ता चुना था।

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सुरक्षा एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि युवाओं को मुख्य धारा में जोड़ने के लिए कई प्रयास किये जा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर पुलिस पिछले कुछ महीने में युवाओं के साथ सीधे संपर्क के लिए कई कार्यक्रम आयोजित कर चुकी है। इसके साथ ही केंद्र सरकार की ओर नियुक्त वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा भी युवा संगठनों के प्रतिनिधियों से मुलाकात कर चुके हैं। वहीं स्थानीय लोग अपने बच्चों को आतंकी बनने से रोकने के लिए पुलिस की सहायता भी ले रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक पुलिस के प्रयास से 80 से अधिक युवाओं को आतंकी बनने से रोका जा सका है। इसके साथ ही मां-बाप की अपील के बाद भी लगभग एक दर्जन युवा आतंक का रास्ता छोड़कर वापस घर लौट चुके हैं।

पाकिस्तानी प्रोपेगेंडा से पूरी तरह बचना नहीं हो पाया संभव

सुरक्षा एजेंसियों के प्रयास के बावजूद स्थानीय युवाओं को पाकिस्तानी प्रोपेगेंडा से पूरी तरह बचना संभव नहीं हो पाया है। सुरक्षा एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि तीन दिन पहले ही अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में रिसर्च स्कॉलर के हिजबुल मुजाहिदीन बनने से यह साफ हो गया है कि पढ़े लिखे युवा भी किस तरह आतंकी दुष्प्रचार के शिकार हो रहे हैं। इसके पहले 31 दिसंबर की रात को सीआरपीएफ कैंप पर हमले में मारे गए तीन आतंकियों में से दो स्थानीय आतंकी था, जिनमें एक पुलिस जवान का 16 साल का बेटा भी था।

2017 में नवंबर तक 117 युवा बने आतंकी

सुरक्षा एजेंसियों के पास मौजूद आंकड़े के मुताबिक 2017 में नवंबर तक 117 आतंकी विभिन्न आतंकी संगठनों में शामिल हुए थे। जबकि 2010 के बाद आतंकी संगठनों में स्थानीय युवाओं की संख्या में कमी आ रही थी। बुरहान बानी की मौत के बाद अलगाव आंदोलन के जोर पकड़ने के दौरान भी 2016 में केवल 88 स्थानीय युवा ही आतंकी बने थे। वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि युवाओं को आतंक से रास्ते से दूर करने के लिए उन्हें खेलकूद और अन्य गतिविधियों में बड़े पैमाने पर व्यस्त करने की जरूरत है और इसके प्रयास किये जा रहे हैं।

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