कश्मीरी पंडितों में जगी नई उम्मीद, जोरशोर से गूंजेगा मां क्षीर भवानी का जयकारा
मां क्षीर भवानी जिन्हें मां राघेन्या भी कहा जाता है कश्मीरी पंडितों की आराध्य देवी हैं और अनेक परिवारों की कुल देवी भी हैं।
जम्मू, गुलदेव राज। कश्मीर में आतंक और अलगाववादियों पर बरती जा रही सख्ती ने विस्थापित कश्मीरी पंडितों में नई उम्मीद जगा दी है। कश्मीर वापसी की आस लेकर वे हर साल मां क्षीर भवानी के दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन इस बार बात कुछ अलग है। उम्मीद की जा रही है कि 10 जून को कश्मीर में लगने वाले क्षीर भवानी मेले में बड़ी संख्या में विस्थापित कश्मीरी पंडित जुटेंगे। अब तक छह हजार से अधिक पंजीकरण हो चुके हैं।
अपनी मिट्टी को आज भी कश्मीरी पंडित भूल नहीं पाए हैं। नौवें दशक में आतंकवाद के कारण पलायन कर चुके ये परिवार मां क्षीर भवानी के दर्शन को आते हैं तो कश्मीर वापसी के लिए प्रार्थना भी करते हैं। मां क्षीर भवानी, जिन्हें मां राघेन्या भी कहा जाता है, कश्मीरी पंडितों की आराध्य देवी हैं और अनेक परिवारों की कुल देवी भी हैं। युवा पीढ़ी मेले के बहाने कश्मीर को करीब से देखने को आतुर रहती है। इस बार युवाओं में उम्मीद और उत्साह चरम पर है।
कश्मीर के गांदरबल जिले के तुलमुला में 10 जून को लगने वाले मेले में देश-विदेश में बसे कश्मीरी पंडित पहुंचेंगे। जम्मू में इनका जुटना पहले ही शुरू हो गया है। यहां से 9 जून को मंदिर के लिए रवाना होंगे। राज्य प्रशासन श्रद्धालुओं का पंजीकरण रहा है। अब तक करीब छह हजार लोग पंजीकृत हो चुके हैं और उम्मीद है कि यह आंकड़ा दस हजार को पार कर जाएगा। सुरक्षा कारणों से यात्रा के लिए विशेष बसों की व्यवस्था प्रशासन करता है। कुछ बसें दिल्ली से भी चलती हैं।
माना जाता है कि ज्येष्ठ अष्टमी को माता का अवतरण हुआ था। यूथ ऑल इंडिया कश्मीरी समाज के वरिष्ठ सदस्य अजय सफाया का कहना है कि 1990 में घाटी से बड़ी संख्या में पलायन कर जम्मू सहित दिल्ली और अन्य राज्यों में बसे पंडित परिवार बेताब रहते हैं कि वे इस मौके पर कश्मीर जरूर पहुंचें। दिल्ली में बसे शुभम हांडू के बेटे मोहित ने कहा कि आतंकवाद के कारण वह कभी कश्मीर नहीं गए, लेकिन इस बार क्षीर भवानी मेले में जरूर जाएंगे। इंजीनियरिंग कर चुके एक अन्य युवा राजेश कौल ने कहा कि उस समय (1990) जो हुआ था वह गलत था। पंडितों को फिर से कश्मीर में बसाना चाहिए।
पंडितों ने तुलमुला स्थित मंदिर की तरह ही जम्मू में भी हूबहू मंदिर का निर्माण करवाया है। जो पंडित घाटी में नहीं पहुंच पाते हैं, वे यहां पर माता की पूजा-अर्चना करते हैं। पनुन कश्मीर के प्रधान विनोद का कहना है कि हर साल श्रद्धा का यह सैलाब बढ़ता ही जा रहा है, वहीं अब उम्मीदें भी बढ़ रही हैं।
लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप