लहरों में समा गया बुजुर्ग, दो दिन बाद लौटा तो मरा मान चुके लोगों की हैरत से फटी रह गईं आंखें
कर्नाटक के 60 वर्षीय पुजारी वेंकटेश मूर्ति के साथ कुछ ऐसा हुआ कि लोगों के मुंह से बरबस ही निकल पड़ा जाको राखे साईयां मार सके ना कोय... पढ़ें यह दिलचस्प दास्तां...।
बेंगलुरु, पीटीआइ। अक्सर ऐसी घटनाएं सामने आती है जिससे इस मान्यता को बल मिलता है कि जाको 'राखे साईयां, मार सके ना कोय... ' कर्नाटक के मैसूर जिले में कपिला नदी इन दिनों उफान पर है। नदी की हाहाकारी लहरों ने जमकर तांडव मचाया है। नदी की लहरों का उफान ऐसा कि देखकर दिल बैठ जाए पर कुछ दिन पहले एक बुजुर्ग पुजारी ने इस उफनती नदी में जब छलांग लगा दी तो जिसने भी इस मंजर को देखा दिल थाम लिया। बाद में दो दिनों तक बुजुर्ग का जब कोई अता पता नहीं चला तो उसे मरा हुआ मान लिया गया।
यह कहानी है बेंगलुरु से 169 किलोमीटर दूर दक्षिण पश्चिम में ननजानगुड शहर के 60 वर्षीय वेंकटेश मूर्ति पुजारी की। हुआ यूं कि कुछ दिन पहले जब काबिनी बांध के गेट खोले गए तो बेंगलुरु से 169 किलोमीटर दूर दक्षिण पश्चिम में ननजानगुड शहर में बाढ़ आ गई। इससे कई लोगों को राहत शिविर में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। हालांकि, इन सबके बीच वेंकदेश मूर्ति को कपिला नदी की तेज रफ्तार धार से आमना सामना करने का एक मौका नजर आया।
दरअसल, 60 साल के वेंकटेश मू्र्ति पुजारी हैं। वे उफनती नदी में कूदकर वापस बाहर आने का कारनामा कई बार कर चुके हैं। जब काबिनी बांध के गेट खोले गए तो बेंगलुरु से 169 किलोमीटर दूर दक्षिण पश्चिम में ननजानगुड शहर में पानी भर गया। इससे कई लोगों को रिलीफ कैंप में शरण लेने को मजबूर होना पड़ा। लेकिन इन सबके बीच वेंकदेश मूर्ति को इसमें कपिला नदी की तेज रफ्तार धार से सामना करने का एक अवसर नजर आया।
शनिवार को वेंकटेश ने नदी में छलांग लगा दी और देखते ही देखते लहरों में समा गए। इस घटना को देखकर लोगों की चीख निकल गई। इस घटना का वीडिया तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। लोगों ने वेंकटेश की काफी खोजबीन की लेकिन दो दिनों तक उनका कोई पता नहीं चला। लोगों ने भी मान लिया कि वेंकटेश की मौत हो गई होगी। यहां तक कि स्थानीय समाचार चैनलों ने उन्हें बाढ़ की चपेट में आकर मरने वालों में मान लिया। यहां तक की वेंकटेश के परिजनों ने भी उनकी काफी खोजबीन की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
लेकिन अचानक दो दिन बाद वह लोगों को दिखाई दिए तो सबके चेहरे पर मुस्कान लौट आई। वेंकटेश ने बताया कि वह नदी के तेज बहाव के कारण पिलर्स में जाकर फंस गए थे। उन्होंने जैसे तैसे 60 घंटे गुजारे। जब नदी में बाढ़ का पानी कम हुआ तो वापस लौटे। ऐसा नहीं है कि उन्होंने नदी में पहली बार छलांग लगाई थी। इससे पहले वेंकटेश मूर्ति की बहन मंजुला ने कहा कि यह पहला मौका नहीं है जब मूर्ति ने नदी में छलांग लगाई थी। वह ऐसा पिछले 25-30 वर्षों से कर रहे हैं।
हेज्जिगे पुल (Hejjige bridge) के पिलर में दो दिन लहरों के बीच से लौटने के बाद वेंकटेश सबसे पहले नंजनगुड पुलिस थाने गए और अधिकारी को अपनी सकुशल वापसी की बात बताई। उन्होंने कहा कि आमतौर पर मैं खंभों के बीच से तैरते हुए निकलता था लेकिन उस दिन लहरें इतनी तेज थीं कि मैंने एक पिलर को पकड़ कर अपनी जान बचाने की कोशिश की। परिजनों के मुताबिक, तैराकी में ही नहीं वेंकटेश मूर्ति ने यात्राओं में भी उम्र को मात देने वाले काम किए हैं। कुछ साल पहले उन्होंने साइकिल से कश्मीर से कन्याकुमारी तक की 10 हजार किलोमीटर की यात्रा की थी।