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कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा, मुस्लिम मर्द को दूसरी शादी का अधिकार लेकिन पहली बीवी भी ले सकती है तलाक

कर्नाटक हाई कोर्ट की कालबुर्गी खंडपीठ में जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित और जस्टिस पी कृष्णा भट ने यह बात निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए कही।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sun, 13 Sep 2020 06:30 AM (IST)Updated: Sun, 13 Sep 2020 06:30 AM (IST)
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा, मुस्लिम मर्द को दूसरी शादी का अधिकार लेकिन पहली बीवी भी ले सकती है तलाक
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा, मुस्लिम मर्द को दूसरी शादी का अधिकार लेकिन पहली बीवी भी ले सकती है तलाक

बेंगलुरु, प्रेट्र। मुस्लिम समाज में पत्नी के रहते दूसरी शादी के चलन को कर्नाटक हाई कोर्ट ने पहली बीवी पर भयावह अत्याचार की संज्ञा दी है। कहा है कि मुसलमानों के लिए यह कानूनन सही है लेकिन व्यावहारिक रूप से गलत है।

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कर्नाटक हाई कोर्ट की कालबुर्गी खंडपीठ में जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित और जस्टिस पी कृष्णा भट ने यह बात निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए कही। निचली अदालत ने दूसरी शादी को अमान्य करने की रमजान बी की याचिका पर फैसला दिया था, जिसे उसके पति यूसुफ पटेल पाटिल ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

पहली पत्नी के साथ होता है भयावह अत्याचार

न्याय पीठ ने कहा, कानून के अनुसार मुसलमान आदमी दूसरी शादी कर सकता है। लेकिन यह पहली पत्नी के साथ भयावह अत्याचार होता है। इसलिए पहली पत्नी अपनी शादी अमान्य करने की मांग करते हुए तलाक का दावा कर सकती है। उल्लेखित मामला कर्नाटक के विजयपुरा कस्बा निवासी यूसुफ पाटिल का है। शरई कानून के अनुसार उसने जुलाई 2014 में रमजान बी से बेंगलुरु में शादी की थी। लेकिन कुछ ही दिनों बाद यूसुफ ने दूसरी शादी भी कर ली। इस पर रमजान बी ने निचली अदालत में याचिका दायर कर यूसुफ के साथ अपनी शादी अमान्य करने की गुजारिश की। कहा कि यूसुफ ने उसका परित्याग कर दिया है, साथ ही उस पर अत्याचार करता है। यूसुफ और उसके माता-पिता याचिकाकर्ता रमजान बी और उसके परिजनों के साथ मारपीट करते हैं। सुनवाई के बाद निचली अदालत ने रमजान बी के पक्ष में फैसला दे दिया।

याचिका दायर कर कहा, निचली अदालत का फैसला किया जाए रद

निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए यूसुफ ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा, वह अपनी पहली पत्नी रमजान बी को बहुत प्यार करता है और उसके साथ रहना चाहता है, इसलिए निचली अदालत का फैसला रद किया जाए। अपनी दूसरी शादी का कारण बताते हुए यूसुफ ने कहा कि वह उसने अपने माता-पिता के दबाव में की है, जो राजनीतिक रूप से और अन्य तरीकों से शक्तिशाली और प्रभावशाली हैं।

यूसुफ ने अपनी दूसरी शादी के पूरी तरह से जायज होने के पक्ष में तर्क दिया कि उसे ऐसा करने लिए शरई कानून ने अधिकार दे रखा है। कानून में इसे किसी पर अत्याचार नहीं माना गया है। हाई कोर्ट की पीठ ने यूसुफ के इस तर्क को नहीं माना कि दूसरी शादी करने के बाद भी उसे पहली पत्नी को रखने का अधिकार है। इस अधिकार के चलते पहली पत्नी अपनी शादी अमान्य करने या तलाक की मांग नहीं कर सकती। इस आधार पर हाई कोर्ट ने यूसुफ की याचिका खारिज कर दी।


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