जब कैफी साहब ने शबाना से कहा था तुम मोची भी बनोगी तो मैं तुम्हारा साथ दूंगा...
शायर कैफी आजमी से जब उनकी बेटी शबाना आजमी ने पूछा कि मैं एक्ट्रेस बनाना चाहती हूं, क्या आप मेरा साथ देंगे ?
राज्य ब्यूरो, जयपुर। ख्यातनाम शायर कैफी आजमी से जब उनकी बेटी शबाना आजमी ने पूछा कि मैं एक्ट्रेस बनाना चाहती हूं, क्या आप मेरा साथ देंगे, तो उन्होंने कहा था कि तुम मोची बनना चाहोगी तो भी मैं तुम्हारा साथ दूंगा। बस शर्त इतनी सी है कि दुनिया की सबसे अच्छी मोची बनना। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में शबाना आजमी ने सत्र 'टू अब्बा विद लव' में लेखिका रक्षंधा जलील के साथ बातचीत में कुछ इसी तरह अब्बा को याद किया।
अपने बचपन को याद करते हुए शबाना ने बताया कि मेरे पिता कम्युनिस्ट थे। हम जहां रहा करते थे, वहां आठ और परिवार रहते थे और एक सच्ची गंगा जमुनी तहजीब वहां नजर आती थी। अली सरदार जाफरी का परिवार भी हमारे साथ रहता था। पैसे की बहुत कमी थी, लेकिन मजा भरपूर था। उन्होने बताया कि हमारे परिवार में शाम को अक्सर शायरी की महफिल सजती थी और नामचीन शायर उसमें आया करते थे। मैं भी उनमें बैठती थी तो शायरी की समझ और प्यार वहीं से मुझे मिला।
कैफी ने शौकत से खून से खत लिखा था- अपने पिता कैफी और मां शौकत आजमी की प्रेम कहानी का जिक्र करते हुए शबाना ने बताया कि प्रोग्रेसिव लेखकों के सम्मेलन के मुशायरे में कैफी साब ने उनकी प्रसिद्ध नज्म औरत सुनाई थी। मेरी मां ने उस नज्म को सुन कर यह फैसला कर लिया था कि कैफी से ही विवाह करेगी। दोनों की प्रेम कहानी आगे बढ़ी। कैफी साब ने मेरी मां को खून से खत लिखा था। दोनों में गजब की मुहब्बत और आपसी समझ थी।
कलम से बहुत प्यार करते थे
वर्ष 2019 कैफी आजमी का जन्म शताब्दी वर्ष है। शबाना ने बताया कि हम कैफी साब की याद में कई कार्यक्रम कर रहे हैं। जावेद अख्तर ने उन पर आधारित एक नाटक 'कैफी और मैं' लिखा है। इसके शो किए जा रहे हैं। इसके अलावा एक पेन फेस्टिवल भी आयोजित किया जा रहा है, क्योंकि कैफी आजमी को पेन बहुत पसंद थे। वे मां ब्लांक से पेन से लिखा करते थे और इन्हें बड़ा सहेज कर रखते थे। शबाना ने बताया कि इस फेस्टिवल में कैफी साब की याद में कई कार्यक्रम होंगे। शबाना ने कहा कि आज प्रोग्रेसिव लेखक आंदोलन को आगे बढ़ाने की बहुत जरूरत है, क्योंकि आज के दौर में बाजार ही सब कुछ तय कर रहा है।
अजीब आदमी था वो
इस मौके पर कैफी आजमी की शायरी के अंग्रेजी अनुवाद की एक किताब का लोकार्पण भी किया गया। जावेद अख्तर ने इस किताब का लोकार्पण करते हुए कहा कि आम तौर पर लेखकों की कथनी और करनी में अंतर होता है, क्योंकि उनकी कथनी इतनी अच्छी होती कि करनी उतनी अच्छी नहीं हो सकती। लेकिन, कैफी ऐसे नहीं थे। वह जो कहते थे, वही करते थे। जावेद ने इस मौके पर कैफी पर लिखी नज्म अजीब आदमी था वो भी सुनाई।