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सबरीमाला में असहमति के आदेश पर ध्यान दे सरकार: जस्टिस नरीमन

जस्टिस नरीमन ने अपनी और जस्टिस धनंजय वाई. चंद्रचूड़ की ओर से गुरुवार को दिए अपने अल्पमत के फैसले में असहमति का आदेश लिखा था।

By Manish PandeyEdited By: Published: Fri, 15 Nov 2019 07:07 PM (IST)Updated: Fri, 15 Nov 2019 07:07 PM (IST)
सबरीमाला में असहमति के आदेश पर ध्यान दे सरकार: जस्टिस नरीमन
सबरीमाला में असहमति के आदेश पर ध्यान दे सरकार: जस्टिस नरीमन

नई दिल्ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रोहिनटन फली नरीमन ने कहा कि केंद्र सरकार को सबरीमाला मामले में 3:2 के बहुमत से दिए गए फैसले में 'असहमति का बेहद महत्वपूर्ण आदेश' पढ़ना चाहिए। जस्टिस नरीमन ने अपनी और जस्टिस धनंजय वाई. चंद्रचूड़ की ओर से गुरुवार को दिए अपने अल्पमत के फैसले में असहमति का आदेश लिखा था।

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शुक्रवार को जस्टिस नरीमन ने सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, 'अपनी सरकार को सबरीमाला मामले में गुरुवार को सुनाए गए असहमति के फैसले पर गौर करने के लिए कहें, जो बेहद महत्वपूर्ण है..अपने प्राधिकारी और सरकार को इसे पढ़ने के लिए कहिए।' जस्टिस नरीमन और जस्टिस चंद्रचूड़ सबरीमाला मामले की सुनवाई करने वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के सदस्य थे और उन्होंने सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने संबंधी सितंबर, 2018 के शीर्ष अदालत के फैसले पर पुनर्विचार की याचिकाओं को खारिज करते हुए बहुमत के फैसले से असहमति व्यक्त की थी।

सबरीमला मंदिर में 'निहत्थी महिलाओं' को प्रवेश से रोके जाने को 'दुखद स्थिति' करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपने अल्पमत के फैसले में कहा कि 2018 की व्यवस्था पर अमल को लेकर कोई बातचीत नहीं हो सकती है और कोई भी व्यक्ति अथवा अधिकारी इसकी अवज्ञा नहीं कर सकता है। इसमें कहा गया कि शीर्ष अदालत के फैसले को लागू करने वाले अधिकारियों को संविधान ने बिना किसी ना-नुकुर के व्यवस्था दी है क्योंकि यह कानून के शासन को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। शीर्ष अदालत के सितंबर 2018 के फैसले में सभी आयु वर्ग की लड़कियों और महिलाओं को केरल के इस मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी गई थी।

अल्पमत के फैसले में दोनों जजों ने कहा, 'आज कोई व्यक्ति या प्राधिकार खुले तौर पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन नहीं कर सकता, जैसा की संविधान की व्यवस्था है।' जस्टिस नरीमन ने कहा कि जो भी शीर्ष अदालत के निर्णयों का अनुपालन नहीं करता है, 'वह अपने जोखिम पर ऐसा करता है।'

सात जजों की वृहद पीठ को भेजा था मामला

हालांकि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस इंदु मल्होत्रा के बहुमत के फैसले ने इस मामले को सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ को भेजने का निर्णय किया जिसमें सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति से संबंधित शीर्ष अदालत के 2018 के फैसले की पुनर्विचार की मांग की गई थी । सबरीमाला मंदिर 17 नवंबर को खुल रहा है। चूंकि, बहुमत के फैसले ने समीक्षा याचिका को सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ के लिए लंबित रखा है और 28 सितंबर 2018 के फैसले पर रोक नहीं लगाई है इसलिए सभी आयु वर्ग की लड़कियां और महिलाएं मंदिर में जाने की पात्र हैं।


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