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Jim Corbett Birth Anniversary: जिम कॉर्बेट ने जंगल को बनाया पाठशाला और बने अचूक निशानेबाज

Jim Corbett Birth Anniversary 12 साल की उम्र में मार गिराया था तेंदुआ नैनीताल के कालाढुंगी में स्थित जिम कॉर्बेट का बंगला जो अब पर्यटकों के लिए खुलता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 25 Jul 2020 09:43 AM (IST)Updated: Sat, 25 Jul 2020 12:40 PM (IST)
Jim Corbett Birth Anniversary: जिम कॉर्बेट ने जंगल को बनाया पाठशाला और बने अचूक निशानेबाज
Jim Corbett Birth Anniversary: जिम कॉर्बेट ने जंगल को बनाया पाठशाला और बने अचूक निशानेबाज

विनोद पपनै, नैनीताल। Jim Corbett Birth Anniversary आदमखोर बाघों को मौत की नींद सुलाकर कुमाऊं, गढ़वाल के लोगों को खूंखार वन्यजीवों से सुरक्षा देने वाले जिम कॉर्बेट को कौन नहीं जानता। 25 जुलाई, 1875 को नैनीताल जिले के कालाढूंगी में जन्म लेने वाले जिम एडवर्ड कॉर्बेट के लिए यहां के घनघोर जंगल उनकी पहली पाठशाला बने। जहां न वन्यजीवों की कमी थी, न परिंदों की और इन्हीं के बीच नन्हे जिम अचूक निशानेबाज बनकर उभरे थे।

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12 भाई बहनों में 11वें नंबर के थे जिम: पोस्टमास्टर पिता क्रिस्टोफर विलियम कॉर्बेट और मां मेरी जैन के घर जन्मे जिम एडवर्ड कॉर्बेट महज चार साल के थे, तभी उनके सिर के ऊपर से पिता का साया उठ गया था। वह 12 भाई बहनों में 11वें नंबर के थे। प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल के हैलट वॉर स्कूल में हुई। बाद में सेंट जोजफ कॉलेज में दाखिला लिया, लेकिन घर की माली हालत ज्यादा ठीक न होने के कारण 18 साल की उम्र में ही पढ़ाई छोड़ दी और मोकामा घाट (बिहार) में जाकर रेलवे की नौकरी करने लगे।

हालांकि मन नहीं लगने के कारण नौकरी छोड़ फिर कालाढूंगी लौटकर आ गए। उनकी पुस्तक माई इंडिया का हिंदी में अनुवाद करने वाले संजीव दत्त ने लिखा है कि नन्हे जिम ने कुदरत की गोद में होश संभाला। उनके घर एक रिश्तेदार आया, जिसके लिए रोज एक परिंदा मार कर लाना जिम ने अपनी जिम्मेदारी बना ली थी। यह रिश्तेदार परिंदों पर अध्ययन कर रहा था।

जब उनके हाथ में गुलेल भी रहती थी और जंगल की सरहद पर अपना शिकार कर लेना उनके लिए बड़ी चुनौती नहीं थी। महज आठ साल की उम्र में जब जिम के हाथों में पुरानी भरतल बंदूक आई तो जंगल के सभी खूंखार जीव उनके लिए सामान्य दिखने लगे। यह बंदूक जिम के उस रिश्तेदार ने उन्हें दी थी जो परिदों पर अध्ययन कर रहा था। धीरे-धीरे इसी अभ्यास ने उनको अचूक निशानेबाज बना दिया। महज 12 साल की उम्र में उन्होंने एक तेंदुआ मार गिराया था। उसके बाद तो जहां भी आदमखोर बाघ दिखाई दिया वो उनकी गोली का शिकार हुए बिना नहीं रह सका। जिम कॉर्बेट ने अपने जीवनकाल में 33 आदमखोर बाघों का शिकार किया।

शिकार करने में कभी नहीं किया दूसरी गोली का इस्तेमाल : संजीव दत्त ने लिखा है जिम स्कूल में पढ़ते थे, उन दिनों फौज का एक बड़ा अफसर जवानों की मिलिट्री ट्रेनिंग का जायजा लेने इस इलाके में आया। क्षेत्र के कुछ चुनिंदा निशानेबाज लड़कों को निशानेबाजी दिखाने का मौका दिया गया। जब जिम से निशाना लगाने को कहा गया तो घबराहट में पहला निशाना उनसे चूक गया। यह देख बड़ा अफ सर जिम के पास आया और उनकी राइफ ल की साइट को ठीक करके बोला पहले तसल्ली कर लो और फिर आराम से निशाना लगाओ। बस उस अफसर का यह जुमला कॉर्बेट ने जीवन भर के लिए याद कर लिया। अफसर की बात सुनकर जिम ने तसल्ली से निशाना लगाया और खुद को सबसे बेहतर निशानेबाज साबित कर दिखाया। जिम ने ज्यादातर आदमखोरों को मारने में दूसरी गोली का इस्तेमाल नहीं किया।

कॉर्बेट के नाम पर स्थापित पार्क बना आर्थिक रीढ़ : 19 अप्रैल, 1955 को केन्या में जिम कॉर्बेट की मृत्यु के बाद नैनीताल स्थित भारत के सबसे पुराने राष्ट्रीय उद्यान का नाम बदलकर जिम कॉर्बेट पार्क रखा गया। यह आज वन्यजीवों के अलावा पर्यावरण की दृष्टि से पर्यटन का प्रमुख केंद्र बनकर जिले के लोगों की आर्थिकी को मजबूत कर रहा है।

अच्छे लेखक भी थे: मैन-ईटर्स ऑफ कुमाऊं, मैन-र्ईंटग लेपर्ड ऑफ रुद्रपयाग, टेंपल टाइगर, जंगल लोर, माई इंडिया, ट्री टॉप्स जैसी पुस्तक लिख जिम कॉर्बेट ने भारतीयों लेखकों के बीच अपनी पहचान बनाई थी।


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