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लाॅॅकडाउन के दौरान मातृशोक में डूबे जवान को तीन दिन बाद भी नहीं मिली मंजिल, जानें पूरी कहानी

मां के निधन की खबर मिलने पर सीएएफ के जवान को अवकाश तो मिल गया लेकिन लॉकडाउन ने ऐसे फंसाया कि तीन दिनों से वह रास्ते में ही है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Wed, 08 Apr 2020 10:48 PM (IST)Updated: Wed, 08 Apr 2020 10:48 PM (IST)
लाॅॅकडाउन के दौरान मातृशोक में डूबे जवान को तीन दिन बाद भी नहीं मिली मंजिल, जानें पूरी कहानी
लाॅॅकडाउन के दौरान मातृशोक में डूबे जवान को तीन दिन बाद भी नहीं मिली मंजिल, जानें पूरी कहानी

 पी.रंजन दास, बीजापुर। लॉकडाउन में छत्‍तीसगढ़ के नक्सल मोर्चे पर तैनात जवान अपनी मां के अंतिम दर्शन नहीं कर पाया। मां के निधन की खबर मिलने पर उसे अवकाश तो मिल गया, लेकिन लॉकडाउन ने ऐसे फंसाया कि तीन दिनों से वह रास्ते में ही है। जवान पैदल, ट्रक और मालगाड़ी के जरिए घर पहुंचने की कोशिश में है। 

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मां को आया था हार्ट अटैक 

छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल (सीएएफ) 15वीं वाहिनी के जवान संतोष यादव बीजापुर जिले के अति नक्सल प्रभावित धनोरा में तैनात हैं। वह उत्तर प्रदेश के मिरजापुर जिले के चुनार थाना क्षेत्र स्थित ग्राम सीखड़ के रहने वाले हैं। पांच अप्रैल को उनकी मां को हार्ट अटैक आया। इस पर उनको वाराणसी के एक अस्पताल में ले जाया गया। उसी शाम उनकी मौत की खबर आ गई। वह रातभर बैरक में रोते रहे। छह अप्रैल को मां का अंतिम संस्कार कर दिया गया। 

पैदल ही कैंप से घर के लिए निकले 

वह कहते हैं कि मैं ऐसा अभागा हूं कि मां के अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाया। संतोष ने बताया कि सात अप्रैल को उसकी छुट्टी स्वीकृत की गई। फोर्स से गाड़ी नहीं मिली, इसलिए पैदल ही कैंप से घर के लिए निकले। वह रायपुर तक तो जैसे- तैसे अलग- अलग वाहनों में लिफ्ट लेकर पहुंच गए, मगर आगे का सफर कोयला लदी मालगाड़ी में शुरू हुआ, जो न जाने कहां तक ले जाएगी। सुरक्षा बल के कैंप से पचास किमी पैदल चले संतोष को रास्ते में धान लेकर जा रहा ट्रक मिल गया, जिसमें सवार होकर वह जगदलपुर पहुंचे। फिर टिपर (छोटा वाहन) से कोंडागांव। रातभर अलग—अलग वाहनों से लिफ्ट मांगकर रायपुर पहुंचे। 

मालगाड़ी के डिब्‍बे में की यात्रा 

बुधवार को रायपुर में स्टेशन मास्टर और मालगाड़ी के गार्ड से मिन्नतें कर किसी तरह बिलासपुर पहुंचे। दोपहर 12.30 बिलासपुर के उसलापुर स्टेशन पहुंचकर एक घंटे इंतजार किया। आगे की यात्रा अनिश्चित लग रही थी, तभी दोपहर डेढ़ बजे वहां से गुजर रही कोयला लदी मालगाड़ी में उम्मीद की किरण नजर आई। तत्काल रेल अधिकारियों से बात की और मदद मांगी। स्थिति देख कर अधिकारियों ने सफर की अनुमति दे दी।

गार्ड के खाली डिब्बे में बैठे- बैठे ही उनका समय कट रहा है, जब मां की याद आती है, वह रो लेते हैं। जवान से बात हुई तब तक मालगाड़ी कटनी से आगे निकल चुकी थी। मालगाड़ी कहां तक ले जाएगी? आगे वह वह कैसे जाएंगे, इसको लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं है। संतोष से फोन पर संपर्क हुआ तो वह फफक कर रो पड़े। बोले— दो दिन पहले ही मां राजेश्वरी देवी का फोन आया था। वह पूछ रही थीं, बेटा तू घर कब आएगा। मैंने कहा था— लॉकडाउन खत्म हो तो आ पाऊंगा। अभी तो मुश्किल है। मुझे क्या पता था कि मां से यह मेरी आखिरी बातचीत होगी। 

लॉकडाउन में फंसे तीनों भाई- बहन 

संतोष का छोटा भाई सुरेश मुंबई में एक निजी कंपनी में कार्यरत है। छोटी बहन की ससुराल भी मुंबई में ही है। लॉकडाउन के चलते वे दोनों भी मां के अंतिम संस्कार में नहीं पहुंच पाए। पिता जयप्रकाश यादव ने रिश्तेदारों की मौजूदगी में उनका अंतिम संस्कार किया। 

सीएएफ 15वीं वाहिनी के प्लाटून कमांडर रजपाल सिंह ने कहा कि कोरोना संक्रमण के मद्देनजर जवानों को अवकाश का प्रावधान नहीं है। संतोष को छुट्टी देना भी मुश्किल था, पर परिस्थितियों को देखकर छुट्टी दी गई। 


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