कोरोना काल में दिव्यांगों के लिए जिंदगी बने जावेद, 1300 परिवारों को दिया राशन और आर्थिक मदद
पद्मश्री से सम्मानित जावेद अहमद टाक के हौसले को कोरोना से पैदा हुआ संकट भी नहीं रोक पाया है। उन्होंने कहा कि कोरोना ने आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सबसे अधिक प्रभावित किया है।
श्रीनगर, नवीन नवाज। अपने चचेरे भाई को आतंकियों से बचाते हुए हमेशा के लिए दिव्यांग हुए जावेद अहमद टाक कोरोना वायरस के संक्रमण काल में भी गरीबों और दिव्यांगों के लिए जिंदगी बनकर उभरे हैं। जिंदगियां बचाने और संवारने की मुहिम में उन्होंने अपना पूरा जीवन लगा दिया है। कोरोना संकट के समय में 1300 से अधिक परिवारों को वह राशन समेत आर्थिक मदद पहुंचा चुके हैं। ईद-उल-जुहा के लिए दिव्यांग बच्चों के लिए प्रोटीन और प्ले किट तैयार कराने में व्यस्त जावेद का कहना है कि खुदा ने हर किसी को कोई न कोई हुनर दिया है। बस, कुछ करने का जज्बा होना चाहिए। बुधवार से ये किट बांटी जाएंगी।
पद्मश्री से सम्मानित जावेद अहमद टाक के हौसले को कोरोना से पैदा हुआ संकट भी नहीं रोक पाया है। उन्होंने कहा कि कोरोना ने आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सबसे अधिक प्रभावित किया है। उन परिवारों की स्थिति के बारे में आप अंदाजा नहीं लगा सकते, जिनका मुखिया ही दिव्यांग है। हमने अपनी संस्था हेल्पलाइन ह्यूमिनिटी वेलफेयर ऑर्गनाइजेशन के जरिए ही नहीं, सीआरपीएफ की मददगार, इल्फा इंटरनेशनल श्रीनगर और सज्जाद इकबाल फाउंडेशन श्रीनगर के समन्वय से इन परिवारों को मदद पहुंचाई है। पूरे कश्मीर में ऐसा प्रयास किया गया है।
कहां-कहां कितनी मदद पहुंचाई
वह और उनके साथी तमाम मुश्किलों के बीच करीब 300 परिवारों के लिए निशुल्क राशन और आर्थिक सहायता का प्रबंध कर रहे हैं। इन परिवारों का मुखिया या अन्य सदस्य दिव्यांग है। जावेद अनंतनाग और इसके आसपास के दिव्यांगों के परिवारों को करीब नौ लाख रुपये की मदद कर चुके हैं। इसमें स्थानीय लोगों का भी सहयोग मिला। बिजबेहाड़ा में करीब 850 परिवारों को राशन बांटा है। जिस परिवार का मुखिया या कोई सदस्य दिव्यांग है, ऐसे 135 परिवारों में प्रत्येक को मई में तीन-तीन हजार रुपये दिए गए। सज्जाद इकबाल फाउंडेशन के जरिए भी ऐसे 35 परिवारों में 1.26 लाख दिए हैं। इल्फा इंटरनेशनल श्रीनगर की ओर से 13 दिव्यांगों को दो-दो हजार रुपये दिलाए गए। इसी प्रयास में एक विधवा, उसके चार नाबालिग बच्चों के अलावा एक दिव्यांग दंपत्ति को दो लोगों ने अपनाया है। उन्हें हर महीने दो हजार और तीन हजार रुपये दिए जा रहे हैं। जरूरतमंदों को मास्क, सैनिटाइजर, डायपर, पोषक आहार, दवाएं और व्हीलचेयर दी जा रही है।
दिव्यांगों की नहीं हो पा रही काउंसिलिंग
जावेद कहते हैं कि यहां कई दिव्यांग बच्चों की स्पीच थैरेपी, काउंसिलिंग नहीं हो पा रही है। ऑनलाइन पढ़ाई भी नहीं हो रही है। हर दिव्यांग के पास स्मार्ट फोन नहीं है। उनके पास जो बच्चे हैं वह गरीब परिवार के हैं। उनकी जरूरतें अलग हैं। हमारे स्कूल में बिजबेहाड़ा और आसपास के 103 बच्चे हैं। हम इन तक पहुंचने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। हमने पाया कि कई बच्चे हिंसक हो रहे हैं या उनमें चिड़चिड़ापन आ रहा है।
कोई भी अंगुली पकड़कर छोड़ आएगा घर
श्रीनगर-जम्मू नेशनल हाईवे पर लाल चौक से करीब 53 किलोमीटर दूर स्थित बिजबेहाड़ा में मुगल बादशाह शाहजहां के पुत्र दाराशिकोह द्वारा बनवाया गया चिनार बाग है। यहीं से कुछ ही दूरी पर जावेद का घर है। अगर उनका नाम याद न आए, तो सिर्फ यह पूछ लें कि जेबा आपा स्कूल वाले के घर जाना है.. कोई भी अंगुली पकड़कर छोड़ आएगा। जावेद ने वर्ष 2006 में दिव्यांगों के पुनर्वास के लिए काम शुरू किया। 2007 में जेबा आपा इंस्टीट्यूट शुरू किया। जावेद को सरकार की तरफ से करीब 75 हजार रुपये की मुआवजा राशि मिली थी, वह भी इन बच्चों की शिक्षा के लिए खर्च कर दी।
वह 21-22 मार्च की आधी रात थी
बता दें कि वर्ष 1997 में 21-22 मार्च की मध्यरात्रि जावेद आतंकी हमले का शिकार हुए थे। जावेद बताते हैं कि वह अपने चाचा के घर पर थे। उस रात उनके चचेरे भाई को आतंकी अगवा करने आए थे। मैंने विरोध किया तो आतंकियों ने गोली चला दी। अगले दिन अस्पताल के बिस्तर पर मेरी आंख खुली। कुछ दिनों बाद मैं घर आया, लेकिन हमेशा के लिए दिव्यांग बनकर। गोलियों ने मेरी रीढ़ की हड्डी, किडनी, पित्ताशय, सबकुछ जख्मी कर दिया था।