जम्मू में निवेशकों को आकर्षित करने में लगेगा समय, स्थिरता के बाद ही करेंगे उधर का रुख
अभी तक ये कहा जा रहा था कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर में विकास की गंगा बहने लगेगी मगर जानकारों का कहना है कि अभी इसमें काफी समय लगेगा। ये सब इतनी जल्दी नहीं होगा।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद वहां पर विकास और अन्य तरह की तमाम बातें की जा रही हैं। ये भी कहा जा रहा है कि इसके हटने के बाद वहां पर दूसरे राज्यों के लोग भी संपत्ति खरीद सकेंगे, लोग उद्योग लगा सकेंगे, कारोबार में बढ़ोतरी होगी, कश्मीर में चल रहे उद्योगों को नई रफ्तार मिलेगी। मगर सच्चाई ये है कि अभी जम्मू कश्मीर में निवेशकों को जाने, वहां पर संपत्ति खरीदने या किसी तरह का उद्योग लगाने के लिए कम से कम एक साल का समय लगेगा।
एक साल के समय के बाद ही वहां पर इन चीजों को गति मिल पाएगी। गति भी तब मिलेगी जब वहां का माहौल इन चीजों के अनुकूल होगा। यदि कश्मीर का माहौल अशांत ही बना रहा तो यहां निवेशकों या अन्य लोगों का जाना मुश्किल ही होगा। इस इलाके में रातोंरात निवेश को बढ़ावा देना आसान नहीं है। कश्मीर में नियमित रूप से होने वाली अशांति का असर अर्थव्यवस्था और पर्यटन पर ही पड़ता रहा है, यदि अनुच्छेद 370 हटने के बाद भी इसमें सुधार नहीं हुआ तो तरक्की की राह मुश्किल ही बनी रहेगी।
प्रदर्शन और पुलिस की झड़प बिगाड़ देती है तस्वीर
जम्मू और कश्मीर के भारतीय हिस्से में बेरोजगारी राष्ट्रीय औसत की दोगुनी है। यहां पर नियमित रूप से होने वाली अशांति का असर अर्थव्यवस्था और पर्यटन पर पड़ता है। यदि यहां निवेशकों को बढ़ाना है तो उसके लिए ये अहम होगा कि सुरक्षा की स्थिति में कितना सुधार हो पाता है। कश्मीर में वो सबकुछ मौजूद है जो दुनियाभर के सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है मगर यहां का अशांत माहौल और आतंकी गतिविधियां लोगों को यहां आने से रोक देती है। कई बार ऐसी घटनाएं भी हो चुकी हैं जिनकी वजह से अंतरराष्ट्रीय मंच पर किरकिरी भी हुई है।
यदि लोग ग्रुप बनाकर यहां आना तय भी करते हैं तो यहां की पुरानी गतिविधियों के बारे में सुनकर उनके हौसले भी एकबार पस्त हो जाते हैं। ऐसा नहीं है कि लोग यहां पर जमीन नहीं खरीद सकते। मगर अब तक की कानूनी अड़चनों की वजह से उन्हें समस्या आ रही थी, एक दूसरा बड़ा कारण यहां का अशांत माहौल भी है। अनुच्छेद हट जाने के बाद यदि कुछ माह तक माहौल ठीक रहा तो ही प्रोपर्टी की खरीद फरोख्त होगी वरना लोग शांत ही रहेंगे।
नोटबंदी के बाद प्रोपर्टी मार्केट की हालत खस्ता
नोटबंदी के बाद प्रोपर्टी मार्केट की हालत पहले से ही खस्ता है। सभी बड़े शहरों के डीलर और बिल्डर खुद ही परेशान हैं। इन दिनों दिल्ली-एनसीआर में ही प्रोपर्टी की खरीद बिक्री नहीं हो रही है तो जम्मू जैसे अशांत क्षेत्र में प्रोपर्टी मार्केट में तेजी आना बहुत मुश्किल है। फिलहाल एनसीआर के इलाके में ही लाखों फ्लैट बिकने के लिए तैयार है। यहां पर खरीदारों को मनमाफिक काम नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में कश्मीर में प्रोपर्टी मार्केट में उछाल होगा ये कहना ठीक नहीं है। दिल्ली-एनसीआर में रियल स्टेट सेक्टर से जुड़े लोगों का कहना है कि जम्मू और कश्मीर जैसे इलाके कभी भी रियल एस्टेट सेक्टर के रडार पर नहीं थे, वहां पर इतनी अधिक खरीद फरोख्त नहीं होती है।
अभी भी इन जगहों पर लोग तीन से चार दिन या अधिक से अधिक एक सप्ताह के लिए ही जाते हैं ऐसे में वहां पर प्रोपर्टी खरीदने के लिए लाखों रुपये का निवेश करने वालों की संख्या बहुत ही कम है। ये बात और है कि जो लोग वहां पहले से रह रहे हैं वो अपने बच्चों के लिए वहां पर संपत्ति खरीदें। उन लोगों को पहले से ही वहां जमीन खरीदने में कोई समस्या नहीं थी। कुछ चुनिंदा शौकीन लोग भले ही वहां पर संपत्ति खरीदने की इच्छा रखते हो भले ही वहां पर माहौल कैसा हो। इससे उनको कोई फर्क नहीं पड़ता है।
बिजली और अन्य संसाधन
जम्मू कश्मीर में पर्यटन उद्योग का काफी संभावनाएं है मगर यहां पर मूलभूत सुविधाओं का अभाव बना हुआ है। बिजली, अच्छी सड़कें, बड़ा बाजार इन चीजों का अभाव बना हुआ है। किसी भी राज्य में खराब बिजली व्यवस्था वहां पर तमाम तरह के उद्योगों पर भी प्रभाव डालती है, यहां भी बिजली के हालात ऐसे ही हैं। बिजली की समस्या की वजह से ही यूपी जैसे बड़े राज्य में उद्यमी उद्योग लगाने से कतरा रहे हैं तो कश्मीर में इतनी जल्दी इन चीजों में अच्छा सुधार हो जाने की गुंजाइश फिलहाल तो कम ही है। यहां अब तक कुल 55 टूरिस्ट डेस्टिनेशन तय हैं लेकिन बिजली की कमी के कारण वहां पर इनको बढ़ावा नहीं मिल पा रहा है।
कृषि और पर्यटन
जम्मू कश्मीर का 80 फीसदी हिस्सा खेती पर निर्भर है। यहां गेहूं और बाजरे के अलावा चावल, मक्का और फलों की खेती होती है। यह इलाका दस्तकारी, कालीन, लकड़ी के सजावटी सामान, ऊन और रेशम के लिए काफी मशहूर है। कश्मीरी बकरियों के रोएं से बनने वाला कश्मीर ऊन इलाके में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इस बीच कश्मीर ऊन का बड़ा हिस्सा मंगोलिया और चीन से आ रहा है। यहां पर छोटे पारिवारिक उद्यम भी विवाद से अछूते नहीं है। फिलहाल राज्य में कोई विदेशी निवेश नहीं हो रहा और यहां कोई विशेष आर्थिक क्षेत्र भी नहीं है जहां राज्य सरकार निवेशको को आकर्षित कर सके। सुरक्षा की खराब स्थिति के अलावा भ्रष्टाचार भी इलाके के विकास को प्रभावित करता है।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार जम्मू और कश्मीर में बेरोजगारी की दर भारत में सबसे ज्यादा है। उद्योगों के विकास में जम्मू ने अपने सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 0.9 फीसदी ही खर्च किया है। बहुत से पर्यवेक्षक इसीलिए प्रगति की संभावना परंपरागत उद्योग में देखते हैं। चूंकि यहां पर दस्तकारी के सामानों की बिक्री अधिक होती है इस वजह से भविष्य में भी यहां दस्तकारी वाले सामान निर्यात किए जा सकेंगे। अब ये माना जा रहा है कि जब सरकार कश्मीर के बाहर के निर्यातकों को निवेश की अनुमति देगी तो राज्य में विकास के दरवाजे खुलेंगे। मगर फिलहाल इन सबमें समय लगेगा। ये सब चीजें इतनी जल्दी यहां शुरु होने वाली नहीं है।
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