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Jagran.com की अनूठी डिजिटल पहल- #जलजागरण, ताकि भविष्य बचा रहे

जल जागरण के जरिए आप न सिर्फ अपने राज्य और जिले की बल्कि देश के अन्य राज्यों व जिलों के भू-जल की स्थिति के बारे में भी जान और समझ सकते हैं।

By Digpal SinghEdited By: Published: Thu, 22 Mar 2018 02:12 PM (IST)Updated: Fri, 23 Mar 2018 03:03 PM (IST)
Jagran.com की अनूठी डिजिटल पहल- #जलजागरण, ताकि भविष्य बचा रहे
Jagran.com की अनूठी डिजिटल पहल- #जलजागरण, ताकि भविष्य बचा रहे

नई दिल्ली। आप और हम सभी यह जानते हैं कि भू-जल का स्तर लगातार नीचे जा रहा है। खासकर शहरी इलाकों में यह खतरनाक तरीके से गिर रहा है। ऐसे में दैनिक जागरण ने आपको गिरते जलस्तर और भू-जल की वास्तविक स्थिति से अवगत कराने की एक जरूरी पहल की है। इस पहल का नाम है 'जल जागरण'। जल जागरण के जरिए आप न सिर्फ अपने राज्य और जिले की बल्कि देश के अन्य राज्यों व जिलों के भू-जल की स्थिति के बारे में भी जान और समझ सकते हैं। उत्तर प्रदेश के साथ जागरण ने अपनी इस पहल की शुरुआत की है। अगले कुछ महीनों में इस प्रोजेक्ट में और भी राज्य शामिल होंगे। अपने जिले में भूजल की स्थिति आप यहां क्लिक करके जान सकते हैं...

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अंतरिक्ष विज्ञानी किसी अन्य ग्रह पर पानी की खोज में अपने दिन-रात एक किए हुए हैं। लेकिन यहां समझने की बात यह है कि अगर किसी सुदूर ग्रह पर पानी खोज भी लिया जाए, तो उसे धरती पर तो लाया नहीं जा सकता। ऐसे में जल संरक्षण हमारी और आपकी जिम्मेदारी बनती है। पानी के बिना जीवित रहना भी संभव नहीं है, इसलिए भू-जल का प्रयोग भी जरूरी हो जाता है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि भू-जल सभी जगह समान गहराई और एक सा हो। कहीं यह बहुत गहराई में पहुंच चुका है तो कहीं यह बिल्कुल भी पीने लायक नहीं है। भू-जल की वर्तमान स्थिति और भविष्य के दृष्टिकोण को समझना काफी कठिन हो सकता है क्योंकि भू-जल की मात्रा और गुणवत्ता तय करने के कई कारक होते हैं। अक्सर इन कारकों के बारे में डेटा केंद्र और राज्य सरकारों के पास टुकड़ों में बंटा रहता है और इस कारण भू-जल की समस्या का हम सही संदर्भ में आकलन नहीं कर पाते।

जल-जागरण एक डेटा ड्रिवन कोशिश है इन सभी कारणों का एक वेबसाइट पर संकलन करके उनको संदर्भ अनुसार समझने की। इस प्रोजेक्ट से यह उम्मीद है कि हम भू-जल के गिरते स्तर को सही मायनों में समझ सकें और उस पर सकारात्मक कार्रवाई कर सकें। क्योंकि कहा भी जाता है कि इंसान खाने के बिना तो लंबे वक्त तक जिंदा रह सकता है, लेकिन पानी के बिना जीवन संभव ही नहीं है। ऐसे में अगर हम अपने भू-जल के स्तर को समझेंगे तो उसे बनाए रखने या रीचार्ज करने के लिए ईमानदार पहल भी कर पाएंगे। अन्यथा पूर्व में कई जानकार कह चुके हैं कि 'अगर तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो वह पानी के लिए होगा।' उनके इस कथन को सच होने में वक्त भी नहीं लगेगा। ऐसा न हो उसके लिए हम सभी को कोशिश करनी चाहिए और जागरण ने अपनी तरफ से पहल कर दी है।

यह कोशिश एक-दो दिन की नहीं है। यह एक निरंतर प्रयास है, जिसके माध्यम से हम आपके जुड़ सकें और आप अपनी धरती व जलस्रोतों से जुड़ाव बना सकें। इस प्रोजेक्ट के तहत कुछ खास तरीकों का इस्तेमाल किया गया है, ताकि आपको आपके जिले में भूजल के स्तर के बारे में सटीक जानकारी मुहैया कराई जा सके। यहां आप अपने जिले पर क्लिक करके जान सकते हैं कि आप जमीन में बोरिंग करके पानी निकाल पाएंगे या नहीं। अगर निकाल पाएंगे तो यह आसान होगा या कठिन। जानकारी के लिए बता दें कि थिंक-टैंक PRS के अनुसार सतह से 10 मीटर नीचे से पानी खींचने के लिए मोटर की ज़रूरत होती है। अत: इतनी गहराई में मौजूद पानी को आप बिना मोटर के भी हासिल कर सकते हैं।

स्टार रेटिंग्स की कार्यप्रणाली
वार्षिक वर्षा, वन आवरण, बढ़ती जनसंख्या, जमीन की पानी सोख लेनी की क्षमता और कॉनक्रिटाईज़ेशन ऐसे कुछ कारण हैं जिनसे एक जगह की भू-जल मात्रा प्रभावित होती है। इस प्रोजेक्ट में इन सभी कारकों की पड़ताल की गई है और उनका मूल्यांकन एक स्टार से लेकर पांच स्टार तक किया गया है। एक स्टार का मतलब सबसे खराब और पांच स्टार सबसे अच्छा। इस प्रोजेक्ट के संदर्भ में, प्रत्येक कारक की मान्यताओं ओर सीमाओं का विवरण आप यहां जान सकते हैं।

कॉनक्रिटाईजेशन (आधार: UP State Statistical Survey 2015)
मान्यता: वो सारा भूमि क्षेत्रफल जो कि ‘लैंड अदर देन ऐग्रिकल्चर’ के तहत वर्गीकृत है उसे कॉनक्रिटाईज़्ड माना गया है। इस श्रेणी के अंतर्गत यही मापदंड हर जिले की स्टार रेटिंग्स का आधार भी है।

तरीका: हर जिले के कुल क्षेत्र का कितना प्रतिशत हिस्सा ‘लैंड अदर देन ऐग्रिकल्चर’ के तहत वर्गीकृत है इसकी गणना की गयी। फिर, परिणामी नतीजों की रेंज को पांच बराबर प्रतिशतक में बांटा गया। वो जिले जो सबसे कम 20 प्रतिशतक में रहे उन्हें एक-स्टार रेटिंग्स दी गई और तदनुसार दो से पांच रेटिंग्स दी गई है।

वन आवरण (आधार: UP State Statistical Survey 2015)
मान्यता: वो सारा भूमि क्षेत्रफल जो कि ‘ऐरिया अंडर फॉरेस्ट’ के तहत वर्गीकृत है उसको वन आवरण माना गया है। इस श्रेणी के अंतर्गत यही मापदंड हर जिले की स्टार रेटिंग्स का आधार है।

तरीका: हर जिले के कुल क्षेत्र का कितना प्रतिशत हिस्सा ‘ऐरिया अंडर फॉरेस्ट’ के तहत वर्गीकृत है इसकी गणना की गयी। फिर, परिणामी नतीजों की रेंज को पांच बराबर प्रतिशतक में बांटा गया। वो जिले जो सबसे कम 20 प्रतिशतक में रहे उन्हें एक-स्टार रेटिंग्स दी गई और फिर इसी अनुसार दो से पांच रेटिंग्स दी गई।

जनसंख्या (आधार: Census of India)
तरीक़ा: हर जिले की दशक 2001-2011 का जनसंख्या वृद्धि दर निकाली गई। परिणाम नतीजों की रेंज को पांच प्रतिशतक में बांटा गया। जो जिले 80 प्रतिशतक से ऊपर की श्रेणी में आए उन्हें एक स्टार की रेटिंग दी गयी और तदनुसार दो से पांच की रेटिंग निर्धारित की गई।

वर्षा (आधार: India Meteorological Department, or IMD)
तरीका: वर्ष 2012 से 2016 के दौरान वार्षिक वर्षा के घाटे/अधिशेष को आधार माना गया है। सभी जिलों के घाटे की औसत निकाली गई। फिर, परिणामी नतीजों को पांच प्रतिशतक में बांटा गया। वो जिले जिनमें घाटा सबसे कम 20 प्रतिशतक में आया, उन्हें पांच-स्टार रेटिंग्स दी गईं और तदनुसार चार से एक रेटिंग्स निर्धारित की गईं।

भू-जल निकालने का कठिनाई स्तर (आधार: Central Ground Water Board)
तरीका: भू-जल की गहराई के आधार पर जिले 2 श्रेणियों में बांटे गए हैं। जिन जिलों में भू-जल 10 ‘मीटर बिलो ग्राउंड लेवल’, अथवा ‘mbgl’, से ऊपर मौजूद है उन जिलों में भू-जल निकालने के कठिनाई स्तर को ‘आसान’ माना गया है। जिन जिलों में भू-जल 10 mbgl से ज़्यादा गहराई में है वहां ‘मुश्किल’ माना गया है। ये थिंक-टैंक PRS की इस मान्यता पर आधारित है की 10 मीटर से अधिक गहराई से भू-जल निकालना मैन्यूली संभव नहीं है और इस काम के लिए मोटर की जरूरत होती है।


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