महिला आरक्षण बिल, कांग्रेस और सरकार की चिंता
इंदिरा गांधी 1975 के दौर में पीएम थीं तब टुवर्ड्स इक्वालिटी नाम की एक रिपोर्ट आई थी। रिपोर्ट में प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति का विवरण था और आरक्षण की बात भी की गई थी।
सुशील कुमार सिंह
सुगबुगाहट है कि सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में महिला आरक्षण बिल लाने की तैयारी में है, पर सोनिया गांधी की चिट्ठी सरकार को इस चिंता में डाल सकती है कि कहीं महिला आरक्षण पारित कराने की उनकी प्रतिबद्धता का श्रेय कांग्रेस को न मिल जाय। गौरतलब है कि 2010 में कांग्रेस नीत संप्रग सरकार ने राज्यसभा में इस विधेयक को पारित किया था, परंतु लोकसभा में इसे मंजूरी अभी तक नहीं मिली है। इसके पीछे राजनीतिक दलों में आम राय का न बन पाना रहा है। इतना ही नहीं 33 फीसद महिला आरक्षण में भी वर्ग के आधार पर आरक्षण की मांग इसकी एक और जटिलता थी।
गौरतलब है कि जब इंदिरा गांधी 1975 के दौर में प्रधानमंत्री थीं तब टुवर्ड्स इक्वालिटी नाम की एक रिपोर्ट आई थी। उस रिपोर्ट में प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति का विवरण था और आरक्षण की बात भी की गई थी। हालांकि रिपोर्ट तैयार करने वाली कमेटी के अधिकतर सदस्य आरक्षण के खिलाफ थे और महिलाएं चाहती थीं कि वे आरक्षण से नहीं अपने बलबूते स्थान बनाएं, पर आज की स्थिति में नतीजे इसके उलट दिखाई दे रहे हैं। रिपोर्ट के एक दशक बाद राजीव गांधी के शासनकाल में 64वें और 65वें संविधान संशोधन विधेयक द्वारा पंचायतों और नगर निकायों में महिलाओं को 33 फीसद आरक्षण देने की कोशिश की गई।
यह 1992 में 73वें, 74वें संविधान संशोधन के तहत मूर्त रूप लिया। अंतर इतना था कि सरकार तो कांग्रेस ही थी, पर प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव थे। हालांकि अब स्थानीय निकायों में महिलाओं को 50 फीसद आरक्षण प्राप्त है। ढाई दशक से स्थानीय निकायों में आरक्षण के बावजूद देश की सबसे बड़ी पंचायत में महिलाओं को आरक्षण न मिल पाना थोड़ा चिंता का विषय है। वह भी तब जब पंचायतों में इनके द्वारा निभाई गई भूमिका को सराहना मिल रही हो। वैसे कई आरक्षण को 33 फीसद के बजाय 50 फीसद के पक्ष में भी हैं। बसपा की मायावती दलित और ओबीसी महिलाओं को अलग आरक्षण की बात भी करती रही हैं। 1दुनिया के कई देशों में महिला आरक्षण की व्यवस्था दी गई है।
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विदेशों में कई राजनीतिक दल तो अपने स्तर पर भी इसे लागू किए हुए हैं, मगर भारत में स्थिति इसके विपरीत है। आंकड़े बताते हैं कि अर्जेटीना में 30 फीसद, अफगानिस्तान में 27 फीसदी, पाकिस्तान में 30 प्रतिशत महिलाओं को देश की सबसे बड़ी पंचायत में जाने को लेकर आरक्षण मिला हुआ है। पड़ोसी बांग्लादेश में भी 10 प्रतिशत आरक्षण का कानून है। इसके अलावा राजनीतिक दलों में भी आरक्षण देने की परंपरा को बनाए रखने में डेनमार्क, नार्वे, स्वीडन, फिनलैंड समेत कई यूरोपीय देश शामिल देखे जा सकते हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। चीन के बाद जनसंख्या के मामले में दूसरे नंबर पर है, पर यहां ऐसी कोई व्यवस्था नहीं होना दुख की बात है।
हालांकि एक वर्ग तर्क देता है कि यहां भले ही महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था न हो, पर देश में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष समेत कई ऐसे संवैधानिक शीर्षस्थ पद मिल जाएंगे जहां महिलाएं विराजमान रही हैं। इस समय लोकसभा में राजग को बहुमत है और कांग्रेस यदि इसमें सहयोग कर देती है तो इसे पारित होने से कोई नहीं रोक सकता। जो महिला आरक्षण विधेयक का मुद्दा दो दशकों से ज्यादा समय से अटका पड़ा है उसे मूर्त रूप देने का यह एक सही वक्त भी है। प्रधानमंत्री मोदी ने आधी आबादी के प्रति सकारात्मक रुख दिखाया है। ऐसे में महिला आरक्षण बिल पारित होता है तो बेशक लाभ इन्हीं के हिस्से में जाएगा और देश की राजनीतिक संरचना तथा प्रशासनिक क्रियाकलाप में बड़ा बदलाव भी देखने को मिलेगा।
(लेखक वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के निदेशक हैं)