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उत्तर कोरिया पर लगाम लगाना जरूरी, नहीं तो दुनिया को भुगतने पड़ेंगे गंभीर परिणाम

दुनिया के मानचित्र पर देखने में तो उत्तर कोरिया इतना छोटा देश है कि उसे कई स्वतंत्र देश के रूप में मानते ही नहीं हैं

By Lalit RaiEdited By: Published: Tue, 05 Sep 2017 10:45 AM (IST)Updated: Tue, 05 Sep 2017 12:48 PM (IST)
उत्तर कोरिया पर लगाम लगाना जरूरी, नहीं तो दुनिया को भुगतने पड़ेंगे गंभीर परिणाम
उत्तर कोरिया पर लगाम लगाना जरूरी, नहीं तो दुनिया को भुगतने पड़ेंगे गंभीर परिणाम

प्रमोद भार्गव

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उत्तर कोरिया ने हाइड्रोजन बम का परीक्षण कर अमेरिका, जापान और भारत समेत दुनिया के अनेक देशों को चौंका दिया है। उसने दावा किया है कि उसका यह छठा परमाणु परीक्षण पांचवें परीक्षण से छह गुना शक्तिशाली है। जब इसका समुद्र में परीक्षण किया गया तब जापान में भूकंप के झटके अनुभव किए गए। उसकी रिक्टर पैमाने पर तीव्रता 6.3 आंकी गई। उत्तर कोरिया ने उसके परीक्षण के चित्र जारी किए हैं जिसमें वहां के शासक किम जोंग उन को परमाणु हथियार संस्थान में बम का जायजा लेते हुए दिखाया गया है। वहां की सरकारी न्यूज एजेंसी केसीएनए ने दावा किया है कि उसका वह हाइड्रोजन बम बड़े पैमाने पर तबाही मचा सकता है।

दुनिया के मानचित्र पर देखने में तो उत्तर कोरिया इतना छोटा देश है कि उसे कई बड़े देश स्वतंत्र देश के रूप में मानते ही नहीं हैं। किंतु वह लगातार परमाणु विस्फोट और नई-नई मिसाइलों का परीक्षण करके अमेरिका जैसे ताकतवर देश को भी धमकाता रहता है। इसी कारण कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव की स्थिति बनी रहती है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि ‘उत्तर कोरिया की हरकतें अमेरिका के लिए खतरनाक और शत्रुतापूर्ण लग रही हैं। वे रक्षा सलाहकारों के साथ बैठक कर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने की तैयारी में हैं।’

जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबे ने भी कहा है कि ‘उत्तर कोरिया के परमाणु परीक्षण बर्दाश्त से बाहर होते जा रहे हैं।’ हालांकि अमेरिका ही वह देश है जिसने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान पर परमाणु हमला किया था। किंतु अब परिस्थितियों ने दोनों देशों को करीब ला दिया है। इस समय उत्तर कोरिया की चीन और पाकिस्तान के साथ नजदीकी रिश्ते बने हुए हैं। यही देश उत्तर कोरिया को परमाणु परीक्षणों के लिए उकसाने का काम कर रहे हैं।

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने जापान के शहर हिरोशिमा पर छह अगस्त और नागासाकी पर नौ अगस्त, 1945 को परमाणु बम गिराए थे। इन बमों से हुए विस्फोट और विस्फोट से फूटने वाली रेडियोधर्मी विकिरण के कारण लाखों लोग तो मरे ही, हजारों लोग अनेक वर्षो तक लाइलाज बीमारियों की गिरफ्त में रहे। आज भी इस इलाके में अपंग बच्चे पैदा होते हैं। अमेरिका ने पहला परीक्षण 1945 में किया था। तब आणविक हथियार निर्माण की पहली अवस्था में थे, किंतु तब से लेकर अब तक घातक से घातक परमाणु हथियार निर्माण की दिशा में बहुत प्रगति हो चुकी है।

लिहाजा अब इन हथियारों का इस्तेमाल होता है तो बर्बादी का मंजर हिरोशिमा और नागासाकी से कहीं ज्यादा भयावह होगा? इसलिए कहा जा रहा है कि आज दुनिया के पास इतनी बड़ी मात्र में परमाणु हथियार हैं कि समूची धरती को एक बार नहीं, अनेक बार नष्ट-भ्रष्ट किया जा सकता है। उत्तर कोरिया ने जिस हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया है, उसकी विस्फोटक क्षमता 50 से 60 किलो टन होने का अनुमान है।

जापान के आणविक विध्वंस से विचलित होकर ही नौ जुलाई, 1955 को महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन और प्रसिद्ध ब्रिटिश दार्शनिक बी रसेल ने संयुक्त विज्ञप्ति जारी करके आणविक युद्ध से फैलने वाली तबाही की ओर इशारा करते हुए शांति के उपाय अपनाने का संदेश देते हुए कहा था, ‘तीसरे विश्व युद्ध में परमाणु हथियारों का प्रयोग निश्चित किया जाएगा। इस कारण मनुष्य जाति के लिए अस्तित्व का संकट पैदा होगा। किंतु चौथा विश्व युद्ध लाठी और पत्थरों से लड़ा जाएगा।’ उस विज्ञप्ति में यह भी आगाह किया गया था कि जनसंहार की आशंका वाले सभी हथियारों को नष्ट कर देना चाहिए।

तय है, भविष्य में दो देशों के बीच हुए युद्ध की परिणति यदि विश्वयुद्ध में बदलती है और परमाणु हमले शुरू हो जाते हैं तो हालात कल्पना से कहीं ज्यादा डरावने होंगे। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस भयावहता का अनुभव कर लिया था, इसीलिए उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में आणविक अस्त्रों के समूल नाश का प्रस्ताव रखा था। लेकिन परमाणु महाशक्तियों ने इस प्रस्ताव में कोई रुचि नहीं दिखाई, क्योंकि परमाणु प्रभुत्व में ही उनकी वीटो-शक्ति अंतरनिहित है। अब तो परमाणु शक्ति संपन्न देश कई देशों से असैन्य परमाणु समझौते करके यूरेनियम का व्यापार कर रहे हैं। परमाणु ऊर्जा और स्वास्थ्य सेवा की ओट में ही कई देश परमाणु-शक्ति से संपन्न हुए हैं और हथियारों का जखीरा जमा करते चले जा रहे हैं।

दुनिया में फिलहाल नौ परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं। ये हैं, अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन, ब्रिटेन, भारत, पाकिस्तान, इजरायल और उत्तर कोरिया। इनमें अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और ब्रिटेन के पास परमाणु बमों का इतना बड़ा भंडार है कि वे दुनिया को कई बार तबाह कर सकते हैं। हालांकि ये पांचों देश परमाणु अप्रसार संधि में भी शामिल हैं। इस संधि का मुख्य उद्देश्य परमाणु हथियार व इसके निर्माण की तकनीक को प्रतिबंधित बनाए रखना है। लेकिन ये देश इस मकसद की पूर्ति में सफल नहीं रहे हैं। पाकिस्तान ने ही तस्करी के जरिये उत्तर कोरिया को परमाणु हथियार निर्माण तकनीक हस्तांतरित की और वह आज परमाणु शक्ति संपन्न नया देश बन गया है। उसने पहला परमाणु परीक्षण 2006, दूसरा 2009, तीसरा 2013, चौथा 2014, पांचवां 2015 और अब छठा हाइड्रोजन बम के रूप में तीन सितंबर, 2017 को कर दिया है।

उत्तरी कोरिया के इन परीक्षणों से पूरे एशिया प्रशांत क्षेत्र में बहुत गहरा असर पड़ा है। चीन का उसे खुला समर्थन प्राप्त है। अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया को वह अपना दुश्मन देश मानता है। इसीलिए वहां के तानाशाह किम जोंग उन अमेरिका और दक्षिण कोरिया को आणविक युद्ध की खुली धमकी देते रहे हैं। हाल ही में उत्तर कोरिया की सत्तारूढ़ वर्कर्स पार्टी ने अपनी 70वीं वर्षगांठ मनाई है। इस अवसर पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारी लिऊ युनशान भी वहां मौजूद थे।

समारोह के दौरान किम ने कहा कि ‘कोरिया की सेना तबाही के हथियारों से लैस है। इसके मायने हैं कि हम अमेरिका जैसे साम्राज्यवादी देश की ओर से छेड़ी गई किसी भी जंग के लिए तैयार हैं।’ अमेरिका के अधिकारी इस समारोह के ठीक पहले यह आशंका जता चुके थे कि उत्तर कोरिया के पास अमेरिका के विरुद्ध परमाणु हथियार दागने की क्षमता है। दरअसल कोरिया 10 हजार किलोमीटर की दूरी की मारक क्षमता वाली केएल-02 बैलेस्टिक मिसाइल बनाने में सफल हो चुका है। वह अमेरिका से इसलिए नाराज है, क्योंकि उसने दक्षिण कोरिया में अपना सैन्य ठिकाना बनाए हुए है।

(लेखक साहित्यकार और पत्रकार हैं)

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