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अयोध्या के मुंह से अयोध्या की गवाही, ढाई दशक में भरने लगा है ढाचा ध्वंस का घाव

अयोध्या में विवादित ढाचा ध्वंस के बाद जो खटास पैदा हुई थी, अब वो समय के साथ भरने लगी है।

By Lalit RaiEdited By: Published: Wed, 06 Dec 2017 11:59 AM (IST)Updated: Wed, 06 Dec 2017 05:03 PM (IST)
अयोध्या के मुंह से अयोध्या की गवाही, ढाई दशक में भरने लगा है ढाचा ध्वंस का घाव

अयोध्या [ रघुवरशरण ] ।   समय वह मरहम है, जो बड़े से बड़े घाव भर देता है। विवादित ढांचा ध्वंस से उपजा जख्म भी इसका अपवाद नहीं है। बुधवार को ढांचा ध्वंस की 25 वीं बरसी है। इस बीच अयोध्या से स्पर्शित पुण्य सलिला सरयू में बहुत पानी बह चुका है। इसी के साथ ही ध्वंस से उपजा तकरार-तनाव भी विसर्जित हुआ है। मंदिर-मस्जिद का आग्रह अपने-अपने खेमे में लौट चुका है और विवाद की बुनियाद पर संवाद केसाज सजाए जा रहे हैं। अयोध्या मुस्लिम वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष सादिक अली बाबू भाई कहते हैं, पुरानी बातें भूलकर मसले का सर्वमान्य हल ढूंढना पड़ेगा।

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मैं अयोध्या हूं...
सौभाग्य से इस दिशा में पहल भी हो रही है।हमारी सबसे बड़ी प्रेरणा यहां के लोगों की आपसी समझ और भाईचारा है और इसी का परिणाम है किअयोध्या शुरू से ही कटुता-कड़वाहट से अछूती रही है। सच्चाई यह है कि वे बाहर के लोग थे, जिन्होंने सौहार्द पर प्रहार का दुस्साहस किया। सेवानिवृत्त चिकित्साधिकारी एवं बौद्ध दर्शन के अध्येता डॉ. रमापति भास्कर मंदिर-मस्जिद विवाद की बुनियाद को सत्संकल्प के अवसर की तरह देखते हैं। वे कहते हैं, बड़ी से बड़ी चूक इसलिए होती है कि वहां से हम बेहतरी की शुरुआत कर सकें। हमें यह समझना होगा कि सच्ची धार्मिकता का मतलब है सांप्रदायिकता से ऊपर उठना है।


निर्मोही अखाड़ा के पंच के तौर पर दशकों तक अदालत में राम मंदिर की पैरवी करते रहे नाका हनुमानगढ़ी के महंत रामदास कहते हैं कि अगर बाबर ने राम जन्मभूमि पर बने मंदिर को तोड़ा था, तो उसका परिमार्जन होना चाहिए, पर इसका यह मतलब नहीं कि हम विध्वंस का जवाब विध्वंस से देते रहें। बकौल रामदास हम दुनिया के सामने उभरते राष्ट्र के नागरिक हैं और हमें भारत मां के जिम्मेदार पुत्र की तरह राम मंदिर के साथ राष्ट्र मंदिर के प्रति भी सरोकार का परिचय देना होगा। ज्योतिष गुरु एवं विवादित स्थल से कुछ ही फासले पर स्थित शनिधाम के संचालक स्वामी हरिदयाल कहते हैं, दुनिया में किसी भी विवाद का अंत संवाद से ही संभव है और मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु राम से जुड़े मामले में तो यह सच्चाई हमें शीघ्रतापूर्वक समझनी होगी। वे उन मुस्लिमों के प्रति शुक्रिया अदा करना भी नहीं भूलते, जो संकीर्णता से ऊपर उठकर हाल के कुछ वर्षों में मंदिर के समर्थन या आपसी सौहाद्र्र की दिशा में आगे बढ़े हैं।



मुस्लिम लीग के प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. नजमुलहसन गनी के अनुसार अगर देश में प्रत्येक समूह के मौलिक-संवैधानिक अधिकार सुनिश्चित होने चाहिए, तो किसी को संवैधानिक मान-मर्यादा के हनन का भी हक नहीं मिलना चाहिए। वे मंदिर-मस्जिद विवाद के हल के लिए अदालत को सर्वश्रेष्ठ माध्यम बताते हैं और कहते हैं, हाल के दशक में अदालत के बाहर की घटनाओं को भूलकर हमें अदालत का निर्णय स्वीकार करना होगा। जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य कहते हैं, अभी भी समय है और यदि हमारी प्रार्थना सच्ची एवं आराध्य तक पहुंचने में सफल होगी, तो मंदिर निर्माण असंभव नहीं है

याद आते हैं शेरवानी में सजे हाशिम अंसारी
ढांचा ध्वंस की बरसी बाबरी मस्जिद के मरहूम मुद्दई मो. हाशिम अंसारी के लिए खास हुआ करती थी।इस तारीख को वे पूरी तत्परता से पेशहोते थे। सामान्य वेश-भूषा में रहने वालेहाशिम ध्वंस की घटना के विरोध में कमीज-पाजामा के साथ शेरवानी में होते थे। उनसे मिलने आने वालों में बाबरीमस्जिद एक्शन कमेटी कंविनर एवं वरिष्ठ अधिवक्ता जफरयाब जिलानी सहित कुछ और मुस्लिम नेता हुआ करते थे। हाशिम पूरी संजीदगी से जिलानी जैसे नेताओं से विवाद की अदालती गतिविधियों की समीक्षा करते थे और समय से न्याय की अपेक्षा जताते थे। हालांकि इस तारीख कोवे बाबरी मस्जिद को भी याद करते थे पर इसमें कोई शक नहीं कि सितंबर 2010 में हाईकोर्ट का निर्णय आने के पूर्व ही उनका रुख नरम हो चला था और वे प्राय: यह संकेत देने लगे थे कि रामलला के मंदिर निर्माण में उन्हें कोई आपत्ति नहीं है पर ऐसा करने के लिए मुस्लिमों को विश्वास में लिया जाय। वे अन्य मुस्लिम नेताओं की तरह भाजपा के प्रति निर्मम भी नहीं थे और गत वर्ष 20 जुलाई को निधन से पूर्व कई मौकों पर वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भी प्रशंसक के रूप में सामने आ चुके थे।



सरकार पर पूरा भरोसा

इकबाल भाजपा के प्रति नरमी हाशिम अंसारी के पुत्र एवं बाबरी मस्जिद के वर्तमान मुद्दई इकबाल अंसारी को विरासत में मिली है। वे कहते हैं, यह गलत है कि मोदी अथवा योगी मुस्लिमों के विरोधी हैं। उन्हें विश्वास है कि प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री मुस्लिमों के भी हित में काम करेंगे। इकबाल अपने वालिद के बताए सौहार्द के रास्ते पर भी बढ़ने को तैयार हैं पर उन्हें दुख हैकि सौहार्द के नाम कुछ ऐसे लोग आगेआ गए हैं, जो अलगाव-दुराव का कामकरते रहे हैं। फिलहाल, उन्हें सुप्रीम कोर्ट से न्याय की उम्मीद है और उनका सुझाव है कि अदालत का निर्णय सभी को मान्य होना चाहिए।
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