आधा देश बाढ़ से पानी-पानी है, लेकिन यहां बूंद-बूंद को तरसे लोग
एक तरफ आधा देश बाढ़ की चपेट में है और दूसरी तरफ एक गांव ऐसा भी है, जहां लोग बूंद-बूंद को तरस रहे हैं।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। इन दिनों मानसून अपने पूरे शबाब पर है। देश के ज्यादातर हिस्सों में मानसूनी बादल जमकर बरस रहे हैं। बारिश की वजह से जहां एक ओर पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन की घटनाएं सामने आ रही हैं, वहीं मैदानी इलाकों में सड़कें तालाब बन रही हैं। हिमाचल से लेकर कर्नाटक तक और असम से लेकर गुजरात तक सैंकड़ों शहर और हजारों-लाखों गांव बाढ़ की चपेट में हैं। दर्जनों लोगों को बारिश जनित कारणों से अपनी जान भी गंवानी पड़ी है। लेकिन एक गांव ऐसा भी है, जहां लोग बूंद-बूंद को तरस रहे हैं। लेकिन पहले बात बाढ़ की...
भारी बारिश से उफान पर नदियां
पहाड़ों में लगातार भारी बारिश से देश की ज्यादातर नदियां उफान पर हैं। उत्तराखंड के हरिद्वार में गंगा नदी चेतावनी रेखा के करीब पहुंच चुकी है। पंजाब में व्यास नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही है। यमुना से हरियाणा में बाढ़ का खतरा पैदा हो गया है और हाईअलर्ट जारी किया गया है। उधर, ओडिशा में 36 घंटे में 34 लोगों की मौत होने की खबर है। मौसम विभाग ने अगले कई दिनों तक भारी बारिश की आशंका जताई है।
हिमाचल में भी बारिश से हाहाकार
हिमाचल में बारिश जनित कारणों से पांच लोगों की मौत हो गई है, जबकि कई सड़कें बंद हैं। भूस्खलन व पहाड़ी से पत्थर गिरने और बादल फटने से निजी संपत्ति को भी खासा नुकसान पहुंचा है। बारिश से नदी-नालों का जलस्तर बढ़ गया है।
सूखे से जूझ रहा है यह गांव
एक तरफ देश के अन्य हिस्सों के साथ ही हिमाचल में भी बादल कहर बरपा रहे हैं, दूसरी तरफ हिमाचल में ही एक गांव ऐसा भी है, जो बूंद-बूंद को तरस रहा है। यह गांव कोई और नहीं बल्कि हिमालय की वादियों में बसा कौमिक गांव है। बता दें कि यह गांव दुनिया में सबसे ज्यादा ऊंचाई पर बसा गांव है। यहां जिधर नजर दौड़ाई जाए, बर्फ की चादर ओढ़ी चोटियां नजर आती हैं। ऐसा नजारा देखकर लगता है कि कौमिक में खुशियां चहकती होंगी, लेकिन स्याह पक्ष यह है कि गांव पानी की घोर किल्लत से जूझ रहा है। यहां के किसान परेशान हैं। फसलें सूख रही हैं। तिब्बत की सीमा से सटे इस गांव के लोग जौ और मटर की खेती करते हैं, लेकिन इस साल इलाके के झरने तक सूख गए हैं। तालाबों में भी पानी नहीं के बराबर है। 15,050 फीट की ऊंचाई पर स्थित कौमिक में लगभग सवा सौ लोग रहते हैं, जबकि स्पीति घाटी की आबादी 12 हजार के करीब है। बर्फबारी के कारण यहां के बाशिंदे पूरे देश से लगभग छह महीने कटे रहते हैं।
50 फीसद कुंओं में पानी कमी
किसान नावांग फुनचोक बताते हैं कि पहले की अपेक्षा पानी की उपलब्धता में कमी आई है। मौसम में तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है। वैसे हम सुदूरवर्ती इलाकों में रहने के आदी हैं। हमारा जीवन जीने का अपना पारंपरिक तरीका है। बर्फबारी होते ही सड़कें बंद हो जाती हैं। फोन व इंटरनेट सेवा ठप हो जाती है। पर्यावरणविद कहते हैं कि जहां सरकार से लेकर स्वयंसेवी संस्थाओं का पूरा फोकस मैदानी इलाकों में पड़ने वाले सूखे पर रहता है, ‘वाटर टावर्स ऑफ एशिया’ कहा जाने वाला हिमाचल प्रदेश का यह क्षेत्र उपेक्षित रह जाता है। मौसम में आए बदलाव से हिंदुस्तान के मैदानी इलाके तो सूखे की समस्या से जूझ ही रहे हैं, हिमालयन क्षेत्र में भी पानी की समस्या शुरू हो गई है। वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक देश के कुल कुंओं के 50 प्रतिशत में पानी की कमी दर्ज की गई है। 80 प्रतिशत नदियां, तालाब, झील और झरने प्रदूषित हो चुके हैं। खत्म होते ग्लेशियरों से नदियों के अस्तित्व पर संकट है।
जलवायु परिवर्तन लील रहा किसानों की जिंदगी
कहीं बारिश के कारण बाढ़ तो कहीं बारिश की घोर कमी। यह सब जलवायु परिवर्तन की वजह से है। जलवायु परिवर्तन सिर्फ वैश्विक औसत तापमान ही नहीं बढ़ा रहा, बल्कि यह किसानों की जिंदगी भी लील रहा है। अमेरिका के बर्कले स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया के शोधकर्ताओं के मुताबिक भारत में पिछले तीन दशक में 59 हजार किसानों की खुदकुशी में कहीं न कहीं जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार रहा।
जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम चक्र बिगड़ा और कम वर्षा व अधिक तापमान से फसलों को नुकसान हुआ। इस क्षति के दबाव में ही किसानों ने खुदकुशी की। शोधकर्ताओं ने प्रत्येक राज्य में 1967 से 2013 के बीच जलवायु परिवर्तन, फसल उत्पादन, मौसम और किसानों की खुदकुशी के आंकड़े राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो से जुटाए। यह अध्ययन जून से सितंबर तक मानसून सीजन के दौरान तापमान और वर्षा पर भी हुआ। यह शोध प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल अकादमी ऑफ साइंसेज जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
चौंकाने वाले नतीजे
बुवाई के सीजन में प्रतिदिन औसत तापमान 20 डिग्री सेल्सियस में एक डिग्री सेल्सियस की भी बढ़ोतरी होने पर देश में खुदकुशी के 65 मामले सामने आए। साथ ही पांच डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होने पर यह आंकड़ा भी पांच गुना बढ़ गया। बुवाई के दिनों की अपेक्षा अन्य दिनों में जब कम फसलों की बुवाई हुई, तब तापमान में वृद्धि और वर्षा में कमी के कारण खुदकुशी की घटनाएं कम हुईं। ऐसे में शोधकर्ताओं का दावा है कि तापमान वृद्धि से कृषि क्षेत्र पर दबाव बढ़ने से खुदकुशी होती हैं, जो अमूमन किसान करते हैं।
चिंताजनक हालात
देश में 1980 के बाद से खुदकुशी के मामलों में दोगुना वृद्धि हुई है। इस दौरान सालाना 1.30 लाख लोगों ने खुदकुशी की। सिर्फ 2015 में ही देश में 12,600 किसानों और कृषि श्रमिकों ने खुदकुशी की। यह आंकड़ा खुदकुशी के कुल मामलों का दस फीसद है। इनमें से 60 फीसद मामले बैंक या अन्य कर्ज के तले दबे होने से हुए।
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