जानिए क्या है खाप पंचायत और ये किस तरह करती हैं काम
समाज में इज्जत के नाम पर जो हत्याएं हो रही हैं उसे किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता है। इस तरह की प्रथा पर सुप्रीम कोर्ट ने घोर आपत्ति जताई है।
नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। जब भी कभी गांव, जाति, गोत्र और परिवार की इज्जत के नाम पर होने वाली हत्याओं की बात सामने आती है तो सबसे पहले जाति पंचायत और खाप पंचायत का नाम सबसे पहले जेहन में आता है। शादी के मामले में खाप को अगर कोई आपत्ति है तो ये पंचायत युवक युवती को अलग करने, शादी तोड़ने, किसी परिवार का सामाजिक वहिष्कार करने या गांव से निकाल देने के साथ साथ कई मामलों में युवक युवती की हत्या तक के फरमान देती रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने खाप पंचायतों को बताया अवैध
अंतरजातीय विवाह के खिलाफ तुगलकी फरमान जारी करने वाली खाप पंचायतों और ऐसे तमाम दूसरे संगठनों को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध बताते हुए कड़ी फटकार लगाई है। खाप पंचायतों पर सख्त कार्रवाई नहीं करने के लिए कोर्ट ने केंद्र सरकार को भी काफी तल्ख लहजे में चेताया। कोर्ट ने साफ कर दिया कि अगर केंद्र सरकार खाप पंचायतों पर प्रतिबंध लगाने में सक्षम नहीं है तो अदालत को ही कदम उठाने होंगे।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने प्रेम विवाह करने वाले युवक-युवतियों पर खाप पंचायतों द्वारा किये जाने वाले अत्याचारों पर अंकुश लगा पाने में असफल रहने पर केंद्र सरकार को फटकार भी लगायी।
खाप पंचायत खासकर हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सकिय है। इसके अलावा अंतर जातीय प्रेम विवाह करने वाले युवक युवतियों के साथ अत्याचार, उत्पीड़न और मर्डर तक की घटनाएं सामने आती रही हैं। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लगाई गई थी, जिस पर आज सुनवाई हुई और कोर्ट ने खाप पंचायतों के खिलाफ सख्त आदेश सुनाया।
खाप का अर्थ
खाप एक सामाजिक प्रशासन की पद्धति है जो भारत के कई राज्यों में विस्थापित है। इनमें मुख्य रूप से हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब जैसे राज्यों में प्राचीन काल से ही प्रचलित है। खाप शब्द का विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि खाप दो शब्दों से मिलकर बना है। ये शब्द हैं ख और आप...इनमें ख का मतलब है आकाश और आप का अर्थ है पानी। कहने का मतलब एक ऐसा संगठन दो आकाश की तरह सर्वोपरि हो और पानी की तरह स्वच्छ हो। इसके साथ ही सभी लोगों के लिए उपलब्ध हो यानि न्यायकारी हो। लेकिन आज के जमाने में इसके अर्थ का अनर्थ कर दिया गया है।
खाप पंचायत
पिछले काफी समय से खाप पंचायतें चर्चा का विषय बनी हुई हैं। खाप पंचायतें दरअसल प्राचीन समाज का वह रूढ़िवादी हिस्सा हैं, जो आधुनिक समाज और बदलती हुई विचारधारा से सामंजस्य नहीं बैठा पा रहा है। इसका जीता जागता प्रमाण पंचायतों के मौजूदा स्वरूप में देखा जा सकता है, जिसमें महिलाओं और युवाओं का प्रतिनिधित्व न के बराबर है। यदि इन पंचायतों की मानसिकता और इनके सामाजिक ढांचों पर ध्यान दिया जाए, तो चौंका देने वाले आंकड़े सामने आते हैं, जो बेहद ही चिंताजनक हैं। उदाहरण के तौर पर पूरी खाप पंचायतों के एरिया (हरियाणा, दिल्ली, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश) में महिला-पुरूष का लिंग अनुपात सबसे खराब है, जबकि इन इलाकों में कन्या भ्रूण हत्या का औसत राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है। इससे साफ जाहिर होता है कि खाप पंचायतों का मूल चरित्र नारी विरोधी है। यही कारण है कि पढ़-लिख कर आत्मनिर्भर होती महिलाएं और उनकी मनमर्जी से होने वाली शादियां हमेशा से इनकी आंख का कांटा रही हैं।
नहीं है प्रशासनिक स्वीकृति हासिल
खाप पंचायतों का चलन उत्तर भारत में ज्यादा नजर आता है। लेकिन ये कोई नई बात नहीं है ये तो पुराने समय से चलता आ रहा है। जैसे-जैसे गांव बसते गए वैस-वैसे इस तरह की रिवायतों बनतीं गईं। ये मानना पड़ेगा कि हाल फिलहाल में इज्जत के नाम पर हत्याओं का चलन ज्यादा ही बढ़ गया है। खाप पंचायतें भी पारंपरिक पंचायतें ही हैं जिन्हें कोई प्रशासनिक मान्यता प्राप्त नहीं है।
खाप पंचायतें इस तरह करती हैं काम
एक गोत्र या फिर बिरादरी के सभी गोत्र मिलकर खाप पंचायत बनाते हैं। ये फिर पांच गावों की हो सकती है या 20-25 गांवों की भी हो सकती है। मेहम बहुत बड़ी खाप पंचायत और ऐसी और भी पंचायतें हैं। जो गोत्र जिस इलाके में ज्यादा प्रभावशाली होता है, उसी का उस खाप पंचायत में ज्यादा दबदबा होता है। कम जनसंख्या वाले गोत्र भी पंचायत में शामिल होते हैं लेकिन प्रभावशाली गोत्र की ही खाप पंचायत में चलती है। सभी गांव निवासियों को बैठक में बुलाया जाता है, चाहे वे आएं या न आएं...और जो भी फैसला लिया जाता है उसे सर्वसम्मति से लिया गया फैसला बताया जाता है और ये सभी के पत्थर की लकीर मान ली जाती है।
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