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यहां अभी जानलेवा नहीं हुआ प्रदूषण, किसी को चिंता भी नहीं

दिल्ली-एनसीआर में स्मॉग को लेकर खूब हो-हल्ला हुआ। सरकार प्रदूषण कम करने का भरसक प्रयास कर रही है, मगर नतीजे अपेक्षाकृत बेहतर नहीं हैं।

By Digpal SinghEdited By: Published: Thu, 16 Nov 2017 07:19 PM (IST)Updated: Thu, 16 Nov 2017 07:23 PM (IST)
यहां अभी जानलेवा नहीं हुआ प्रदूषण, किसी को चिंता भी नहीं
यहां अभी जानलेवा नहीं हुआ प्रदूषण, किसी को चिंता भी नहीं

धर्मशाला [मुनीष दीक्षित]। देश के एक बड़े भाग को स्वच्छ हवा व स्वच्छ जल उपलब्ध करवाने वाले हिमाचल की सांसें भी अब भारी होने लगी हैं। बेशक अब भी हिमाचल में स्वच्छ आबोहवा कायम हो, लेकिन प्रदेश में बढ़ रही कचरे की स्थिति और कूड़े का दंश झेल रही नदियां भविष्य में खतरे का संकेत जरूर दे रही हैं। लेकिन इस भविष्य के खतरे के प्रति राजनीतिक दल कितने गंभीर हैं, यह पिछले दिनों विधानसभा चुनाव के दौरान जारी हुए घोषणा पत्रों से ही झलक जाता है कि पूरे घोषणा पत्र में कहीं भी पर्यावरण का जिक्र तक नहीं था। आज हिमाचल भी लहुलुहान हो रहा है। कचरे की समस्या हर शहर हर गांव की समस्या बन गई है। सड़कों से लेकर विद्युत प्रोजेक्ट के नाम पर हजारों पेड़ों की बलि ली जा रही है। पेड़ों के कटने का मामला विधानसभा की दहलीज में भी गूंजता है, लेकिन जब राजनीतिक दलों के बनने जा रहे सरकारी दस्तावेज की बात होती है, तो पर्यावरण का उल्लेख प्रकट तक नहीं होता।

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दिल्ली-एनसीआर में स्मॉग को लेकर खूब हो-हल्ला हुआ। सरकार प्रदूषण कम करने का भरसक प्रयास कर रही है, मगर नतीजे अपेक्षाकृत बेहतर नहीं हैं। वहीं, हिमाचल प्रदेश की आबोहवा अब भी काफी अच्छी है। हिमाचल के वातावरण में सेहत को खराब करने वाले जहरीले कणों की मात्रा बेहद कम है। हिमाचल की राजधानी शिमला हो, मनु नगरी मनाली या कोई अन्य स्थल, सभी जगह शुद्ध आबोहवा का लुत्फ उठाया जा सकता है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में दिवाली की रात रेस्पिरेबल सस्पेंटेड पॉर्टिकुलर मैटीरियल (आरएसपीएम) की मात्रा काफी कम पाई गई। सल्फर डाईऑक्साइड व नाइट्रोजन ऑक्साइड की मात्रा भी आबोहवा में पिछली दिवाली के मुकाबले काफी कम रही।

दिल्ली में दिवाली के दौरान आरएसपीएम की मात्र 400 से 500 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पहुंच जाती है। वहीं, हिमाचल के अधिकतर क्षेत्रों में दिवाली पर इसकी मात्रा 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से भी कम होती है। लेकिन इन आंकड़ों को अगर कुछ सालों से तुलना करें तो हिमाचल जैसे प्रदेश में भी प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। वाहनों की संख्या से लेकर उद्योगों का विकास भी यहां के पर्यावरण पर भारी पड़ रहा है। आज बर्फ पहाड़ से लगातार दूर होती जा रही है। जो पहाड़ एक साल पहले तक बर्फ गिरने के गवाह थे, वहां अगले साल बर्फ या तो कम गिर रही है या नहीं गिर रही है। 

यह है हिमाचल 

हिमाचल प्रदेश हिमालय पर्वत की शिवालिक श्रेणी का हिस्सा है। शिवालिक पर्वत श्रेणी से ही घग्गर नदी निकलती है। राज्य की अन्य प्रमुख नदियों में सतलुज, रावी, यमुना, चंद्रभाग और ब्यास शामिल है। हिमालय की तीनों मुख्य पर्वत श्रंखलाएं, बृहत हिमालय, लघु हिमालय; जिन्हें हिमाचल में धौलाधार और उत्तराखंड में नागतीभा कहा जाता है और उत्तर-दक्षिण दिशा में फैली शिवालिक श्रेणी, इस हिमालय खंड में स्थित हैं। लघु हिमालय में 1000 से 2000 मीटर ऊंचाई वाले पर्वत ब्रिटिश प्रशासन के लिए मुख्य आकर्षण केंद्र रहे हैं।

हिमाचल का शब्दिक अर्थ है 'बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच स्थित भूमि। पश्चिमी हिमालय की गोद में स्थित हिमाचल प्रदेश में प्रवेश के लिए विभिन्न रास्ते अपनाए जाते हैं, जिनमें या तो हम प्रवेश कर सकते हैं पंजाब के मैदानों से, या शिवालिक पहाड़ियों से, या शिमला की पहाड़ियों से, जो ढकी हुई हैं। लहलहाते हरे-भरे चीड़ के वनों से। यह अदभुत भूमि प्रत्येक आगन्तुक को अपनी ओर आकर्षित करती है। इसके पूर्वी दिशा में स्थित है तिब्बत, उत्तर में जम्मू तथा कश्मीर, दक्षिण पूर्व में उत्तराखंड, दक्षिण में हरियाणा एवं पश्चिम में पंजाब प्रदेश। हिमाचल प्रदेश की सारी भूमि पहाड़ियों एवं ऊंची चाटियों से भरी हुई है। इन चोटियों की समुद्र तल से ऊंचाई 350 मीटर से सात हजार के बीच में पाई जाती है। प्राकृतिक संरचना के अनुसार हिमाचल के भू-क्षेत्र को चार भागों में बांटा जा सकता है।

निचली पहाड़ियां

इस क्षेत्र में शामिल हैं, जिला कांगड़ा, हमीरपुर, ऊना, बिलासपुर तथा मंडी जिले के निचले क्षेत्र, सोलन तथा सिरमौर। इस क्षेत्र को शिवालिक क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। इस क्षेत्र में औसतन वर्षा लगभग 1500 मी.मी. से 1800 मी.मी. के बीच है। यहां की समुद्रतल से ऊंचाई 350 या 1050 फुट से 1500 मीटर या 4500 फुट तक पाई जाती है। कृषि उत्पादन की दृष्टि से यहां मक्की, गेहूं, अदरक, गन्ना, धान, आलू तथा खट्टी किस्म के फल आदि उगाए जाते हैं। प्राचीन काल में इस क्षेत्र को मानक पर्वत के नाम से भी जाना जाता था।

भीतरी या मध्य हिमालय

इस क्षेत्र में प्रदेश के ऊपरी भाग तथा सिरमौर जिला के पच्छाद व रेणुका तहसील, मंडी जिला के करसोग तहसील, कांगड़ा जिला के ऊपरी भाग तथा पालमपुर तहसील तथा चंबा जिला की चुराह तहसील के ऊपरी भाग शामिल हैं। इस क्षेत्र की समुद्रतल से न्यूनतम ऊंचाई 1500 मीटर या 4500 फुट से 4500 मीटर या 13500 फुट है। यहां की जलवायु तथा मिट्टी, आलू बीज, समशीतोष्ण कटिबंध फल तथा अन्य सामान्य फल प्रजातियों के लिए काफी उपयोगी है। मध्य हिमालय की दो प्रमुख चोटियां इसी क्षेत्र में पड़ती हैं, पीर पंजाल (चंबा जिला में) तथा धौलाधार (कांगड़ा जिला में)।  वृह्त हिमालय या उच्च पर्वतीय क्षेत्र इस क्षेत्र में जिला किन्नौर, चंबा जिला की पांगी तहसील तथा लाहुल स्पिति जिला के कुछ भू-भाग सम्मिलत हैं। इस क्षेत्र की सुमद्रतल से ऊंचाई 4500 मीटर तथा इससे अधिक पाई जाती है। वर्षा यहां पर बहुत कम होती है। इस क्षेत्र का अधिकतर भाग बर्फ से ढका रहता है।

बादल फटने की घटनाएं 

हिमाचल प्रदेश को दो दशक से सबसे अधिक नुकसान बादल फटने की घटनाओं से झेलना पड़ रहा है। इन घटनाओं के पीछे भी सबसे बड़ा कारण हिमाचल में प्राकृतिक के साथ हो रहे खिलवाड़ को ही माना जा रहा है। आज सीमेंट के नाम पर यहां के कई पहाड़ खत्म किए जा रहे हैं, तो पावर प्रोजेक्ट व सड़कों के नाम पर नदियों की राह मोड़ी जा रही है। प्रोजेक्ट के नाम पर पहाड़ों को छलनी किया जा रहा है। नतीजा हर साल बादल फटने व भूस्खलन होने की घटनाएं कहर बरपा रही हैं। असल में हिमाचल को दोहा जा रहा है। लेकिन उसके भविष्य के परिणाम को नहीं देखा जा रहा है।

हिमाचल में पर्यावरण के लिए होना होगा गंभीर

हिमाचल के पर्यावरणविद् कुलभूषण उपमन्यु की मानें तो तो हिमाचल में भी पर्यावरण सुरक्षित नहीं है। इसके संरक्षण के लिए गंभीर होना होगा। आज हिमाचल में भी विकास का वो ही मॉडल अपनाया जा रहा है, जो मैदानों में है। यहां हिमालय में अलग मॉडल होना चाहिए। यहां पर्यावरण का कम नुकसान हो, इसके लिए सड़कें भी उसी ढंग से बननी चाहिए। आज सड़कों के निर्माण से ही पहाड़ दरक रहे हैं। नदियों से लेकर जंगलों तक को बचाना होगा। क्योंकि आज मैदानी इलाकों के लोगों को चैन की सांस के लिए हिमालय ही बचा हुआ है। ऐसे में अगर यहां भी मैदानों की तरह ही हाल हो जाएगा, तो लोग कहां जाएंगे।

'कांग्रेस हमेशा पर्यावरण के लिए गंभीर रही है। 20 वर्षों से देश में पर्यावरण संरक्षण के लिए कई अभियान चलाए गए हैं। आज हिमाचल प्रदेश की 70 प्रतिशत भूमि में वन है। यह भी कांग्रेस की प्रदेश सरकार की ही देन है। 

-विरेंद्र चंद्र चौहान, प्रवक्ता, कांग्रेस, हिमाचल प्रदेश।


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