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पहले की तुलना मे अब पूरी तरह से बादल चुकी है भारत की विदेश नीति

महात्मा गांधी के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ अंहिसावादी भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन द्वारा स्वतंत्र हुआ नवोदित भारत की विदेश नीति पर आदर्शवाद का स्वाभाविक असर रहा।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 30 Aug 2017 11:43 AM (IST)Updated: Wed, 30 Aug 2017 01:37 PM (IST)
पहले की तुलना मे अब पूरी तरह से बादल चुकी है भारत की विदेश नीति
पहले की तुलना मे अब पूरी तरह से बादल चुकी है भारत की विदेश नीति

जितेंद्र झा

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परंपरागत रूप में विदेश नीति के सैद्धांतिक आधार यथार्थवादी अथवा आदर्शवादी होते हैं। आदर्शवाद से प्रेरित विदेश नीति आदर्शवादी लक्ष्यों को अपना अभीष्ट मानती है। मसलन विश्व बंधुत्व, मानवाधिकार, राष्ट्रों में परस्पर प्रेम एवं सदभाव, वैश्विक समस्याओं का वैश्विक सहयोग द्वारा समाधान आदि। वहीं यथार्थवादी विदेश नीति राष्ट्रीय हित को सवरेपरि रखती है। महात्मा गांधी के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ अंहिसावादी भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन द्वारा स्वतंत्र हुआ नवोदित भारत की विदेश नीति पर आदर्शवाद का स्वाभाविक असर रहा। आदर्शवाद के प्रभाव का ही असर था कि नवोदित भारत अपने राष्ट्रीय हित की तुलना में वैश्विक बंधुत्व और विश्व कल्याण को ज्यादा महत्व दिया।

इसे हम इन उदाहरणों से समझ सकते हैं कि नेहरू सरकार की रुचि विकसित देशों से संबंध मधुर बनाने के बजाय एशियाई देशों की स्थिति में सुधार करने में थी। इसी क्रम में भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन का अगुआ बना था। आदर्शवादी नारा हिन्दी चीनी भाई-भाई पर भरोसा के कारण चीन से 1962 में हार का सामना करना पड़ा। समय बीतता गया और 2014 में मोदी सरकार का अभ्युदय हुआ और विदेश नीति अब पूर्णत: बदल चुकी है। आज भी लक्ष्य आदर्शवादी है परंतु उन्हें साधने की रीति पूर्णत: यथार्थवादी है। कहा जाए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति पूरी दुनिया के समक्ष अबूझ पहेली है। अब भारत ने अपनी विदेश नीति में यथार्थवादी एवं आदर्शवाद के भेद को मिटाकर व्यवहार में दोनों को एक सिक्का के दो पहलू के रूप में स्थापित कर दिया है। इसीलिए अभी भारतीय विदेश नीति बदली हुई नजर आ रही है। उस पर मोदी की नीति का प्रभाव नजर आ रहा है।

मोदी अपनी विदेश नीति में विश्व समुदाय से गरीबी, जलवायु परिवर्तन, विश्व व्यापार में कमजोर देशों के पक्षों की रक्षा आदि की बात मजबूती से रखते हैं तो वहीं यथार्थवादी पक्ष के रूप में दुनिया के सबसे बड़ी समस्या आतंकवाद पर सभी वैश्विक मंच से स्पष्ट राय रखते हुए दुनिया के देशों को अपने विचारों से सहमत करा लेते हैं। यथार्थवाद कहता है राष्ट्र को शक्तिशाली होना चाहिए तभी उसके हितों की रक्षा संभव है। वर्तमान भारत सरकार राष्ट्र को तीव्रता से सैनिक एवं आर्थिक रूप से अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाकर तीव्रतम सुधर का कार्य कर रही है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में राष्ट्र इकाई होते हैं और राष्ट्र प्रमुख अपने देश के प्रतिनिधि। ऐसे में देश का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता का व्यक्तित्व राष्ट्र व्यक्तित्व का निर्धारण करता है। आखिर ओबामा के व्यक्तित्व वाला अमेरिका ट्रंप के नेतृत्व वाले अमेरिका से भिन्नता रखता है।

वैसे ही मोदी का नेतृत्व वाला भारत का व्यक्तित्व आज दुनिया को नए तरीके से सोचने पर मजबूर कर रहा है। नेता की निर्णय-शक्ति राष्ट्र के प्रति वैश्विक सोच को बदलकर रख देती है। इसका उदाहरण भारत का विश्व के देशों से मौजूदा संबंधों में नजर आ रहा है। अलग-थलग पड़ चुके पाकिस्तान 1947 से अब तक वैश्विक अविश्वास की स्थिति में पहुंच चुका है। वहीं चीन डोकलाम में सीमा पर आक्रामक दिखने का प्रयास तो कर रहा था, लेकिन भारत की वैश्विक चमक ने चीन के हौसलों को पस्त कर दिया है। दुनिया के अनेक शक्तिशाली देश भारत के पक्ष का समर्थन करते दिख रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के सशक्त आह्वान ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति को एक नई दिशा दी है और भारत को अनेक राष्ट्रों का विशिष्ट मित्र बना दिया है।

आज दुनिया के सभी देश भारत की वैश्विक मानवीय समस्या को सुलझाने के प्रति सोच से प्रभावित हैं। वहीं पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक के चलते भारत की सामरिक क्षमता पर दुनिया के देश विश्वास भी करते हैं। यही कारण है कि पूरी दुनिया भारत से दोस्ती चाहती है। भारत ने आदर्शवाद एवं यथार्थवाद में सुधर का दृष्टिकोण दिया है। बहरहाल, डोकलाम विवाद में कूटनीतिक स्तर पर चीन को पछाड़कर मौजूदा भारतीय विदेश नीति ने संतुलन का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। एक साथ अमेरिका एवं रूस को साधना, दुनिया के तमाम शक्शिाली राष्ट्रों के साथ मजबूत संबंध बनाना, पड़ोसी राष्ट्रों का विश्वास जीतना भारत के लिए अहम है। विदेशों में प्रधनमंत्री मोदी का होने वाला स्वागत यह दर्शाता है कि दुनिया भारत के प्रति कितनी आशावान है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


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