मूडीज की रेटिंग से दुनिया में आर्थिक छवि सुधरी, लेकिन बढ़ गई सरकार की चुनौती
जिन संभावनाओं को लेकर मूडीज ने भारत के विकास की दर के बढ़ने की बात कही है उसकी धरातल फिलहाल भारत में मजबूत हो रही है।
नई दिल्ली, सुशील कुमार सिंह। आर्थिक मोर्चे पर केंद्र सरकार के लिए लगातार आ रही अच्छी खबरें आलोचनाओं के बीच संतोष का काम कर रही होंगी। मूडीज द्वारा निर्धारित रेटिंग में इस बात का पता चलता है कि आर्थिक और संस्थागत सुधारों से भारत में विकास की संभावनाएं बढ़ी हैं। मूडीज ने बीते 17 नवंबर को जारी अपनी रिपोर्ट में जीएसटी, मोनेटरी पॉलिसी फ्रेमवर्क में सुधार सहित कई प्रयासों को सराहा है। नोटबंदी, आधार का विस्तार एवं डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के चलते सब्सिडी की रकम सही व्यक्ति तक पहुंचाने जैसे उपायों को उचित करार देते हुए सही माना है।
अर्थव्यवस्था को लेकर उठाए गए कई कड़े कदम
देखा जाय तो सुशासन की राह को समतल बनाने की फिराक में मोदी सरकार ने कई जोखिम लिए हैं जिसमें नोटबंदी और जीएसटी तो आर्थिक इतिहास के पन्नों में पहली बार है। सुशासन एक लोकप्रवर्धित अवधारणा है और यह तभी संभव है जब प्रत्यक्ष लाभ और न्याय जनता को मिले। कई बुनियादी तत्वों समेत विभिन्न आर्थिक आयामों से युक्त व्यवस्थाओं को समुचित रूप देते हुए सरकार ने अपने हिस्से का सुशासनिक कृत्य न निभाया होता तो शायद अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां सिलसिलेवार तरीके से सरकार की साख को इतना तवज्जो न देतीं।
बेरोजगारी बड़ी चुनौती
मूडीज की रिपोर्ट से दुनिया में भारत की आर्थिक छवि सुधर गई है। कर्ज मिलने में आसानी से लेकर कर्ज पर ब्याज भी कम होना विकास की कई संभावनाओं को बढ़ा देता है। हालांकि देश में करोड़ों की तादाद में युवा बेरोजगार हैं तमाम कोशिशों के बावजूद सरकार इस मामले में बेहतर उपाय नहीं ला पा रही है। प्रति वर्ष दो करोड़ रोजगार देने के वायदे के बावजूद बेरोजगारी का आलम बढ़ा हुआ है।
स्टार्टअप इंडिया एंड स्टैंडअप इंडिया समेत स्किल इंडिया आदि से संभावनाएं प्रखर होती नहीं दिखाई दे रही हैं। संभव है कि रोजगार के भी अवसर आने वाले दिनों में बढ़ेंगे, पर अभी तो इस मामले में निराशा ही है। यहां यह भी समझना सही होगा कि उदारीकरण के बाद से भारत की अर्थव्यवस्था सरपट दौड़ी थी। जब संकीर्ण आर्थिक दीवार 24 जुलाई, 1991 को ढहाई गई और उदारीकरण से देश को सराबोर किया गया तब दुनिया से भारत का नए अर्थ के साथ साक्षात्कार हुआ था। तब से दुनिया भर के देशों समेत आर्थिक एजेंसियों की नजरें भारत से हटी नहीं हैं।
नोटबंदी से कालाधन को झटका
जिन संभावनाओं को लेकर मूडीज ने भारत के विकास की दर के बढ़ने की बात कही है उसकी धरातल फिलहाल भारत में मजबूत हो रही है। देश की टैक्स व्यवस्था बेहतर हुई है। जुलाई से सितंबर तक की तिमाही में जीएसटी के चलते संचित निधि में कर संग्रह बढ़ा है। नोटबंदी के चलते काला धन और समानांतर अर्थव्यवस्था को झटका लगा है। हालांकि काले धन के मामले में अभी कुछ कह पाना संभव नहीं है, पर संदिग्ध खातों की जांच जारी है। ठोस नतीजे बाद में ही मिलेंगे। देश में भ्रष्टाचार मुखर रूप में दिखाई नहीं दे रहा है। इसके चलते भी अर्थव्यवस्था को सुधरे हुए राह पर करार दिया जा रहा है।
कई मायनों में सरकार ने बिचैलियों को रास्ते से हटा दिया है। इससे न केवल ग्राहकों को सीधा लाभ पहुंचा है, बल्कि सरकार को 57 हजार करोड़ रुपये का मुनाफा भी हुआ है। आधार लिंक के चलते इस तरह की संभावनाएं और मजबूत हुई हैं। बावजूद इसके आर्थिक परिभाषा और विशेषता के अंतर्गत कारगर सुधार की आवश्यकता अभी भी बरकरार है।
जिस देश में हर चौथा व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे हो और इतने ही अशिक्षित हों वहां आर्थिक नीतियां व्यापक सुधार और बड़े रफ्तार की मांग करती हैं। संभव है कि सरकार बढ़ी हुई साख के साथ लोगों के जीवन मूल्य को भी बढ़ाने की कवायद में खरी उतरेगी।
(लेखक वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के निदेशक हैं)
ये भी पढ़ें: मूडीज की रेटिंग में सुधारों से तेज होगा विदेशी पूंजी निवेश का प्रवाह