पत्रकार हत्याकांड में सीबीआइ जांच से इन्कार, माणिक सरकार पर उठे सवाल
त्रिपुरा के पत्रकार शांतनु भौमिक के हत्यारों का अभी तक कोई सुराग नहीं मिल पाया है, लेकिन राज्य सरकार का सीबीआइ जांच से मना करना संदेह पैदा करता है।
त्रिपुरा के पत्रकार शांतनु भौमिक की हत्या के दो महीने बीत चुके हैं, लेकिन आरोपियों को अभी तक पकड़ा नहीं जा सका है। शांतुन त्रिपुरा की जनजातीय पार्टी आइपीएफटी के प्रदर्शन की रिपोर्टिग कर रहे थे। उस दौरान माकपा और आइपीएफटी के कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़प हुई। पुलिस ने उस इलाके में धारा 144 लगा रखा था। इसके बावजूद शांतनु की जिस तरह से हत्या हुई, उससे माणिक सरकार पर सवाल खड़े हो रहे हैं। शांतनु के पिता और पत्रकार संगठनों ने माणिक सरकार से मामले की सीबीआइ जांच की मांग की है। मगर त्रिपुरा की वामपंथी सरकार पत्रकार की हत्या के मामले को सीबीआइ को देने से इन्कार कर रही है।
हालांकि राज्य सरकार ने मामले की छानबीन के लिए एसआइटी का गठन किया है, लेकिन अभी तक शांतनु की हत्या के बारे में कोई ठोस सुराग नहीं मिल सका है। शांतनु वामपंथी रुझान वाले पत्रकार थे और स्थानीय चैनल दिनरात के लिए रिपोर्टिग करते थे। माकपा नेताओं ने शांतनु की हत्या के लिए जनजातीय पार्टी आइपीएफटी पर आरोप लगाए थे और साथ ही इसे भाजपा से जोड़ने की कोशिश की थी। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी से लेकर वृंदा करात ने इस मसले को उठाया, लेकिन सवाल यह है कि आखिर बरसों से त्रिपुरा में राज कर रही वामपंथी सरकार नौजवान पत्रकार की हत्या मामले की जांच सीबीआइ से कराने से क्यों बच रही है। जबकि, त्रिपुरा के नौ पत्रकार संगठनों ने भी इसकी जांच सीबीआइ से कराने की मांग की है।
त्रिपुरा में हो रही राजनीतिक हत्याओं पर भारतीय जनता पार्टी का एक प्रतिनिधिमंडल त्रिपुरा गया था। प्रतिनिधिमंडल के सदस्य दमोह के सांसद प्रहलाद पटेल ने एक चौंकाने वाली बात बताई। उन्होंने बताया कि भौमिक के पिता ने कहा कि माकपा के किसी नेता ने शांतनु को फोन करके वहां बुलाया था। इलाके में धारा 144 लगी होने की वजह से मीडिया के लोगों को भी वहां जाने की इजाजत पुलिस नहीं दे रही थी। फिर शांतनु को वहां जाने की इजाजत क्यों दी गई और उन्हें पुलिस के इतने भारी बंदोबस्त में भी बचाया क्यों नहीं जा सका। प्रहलाद पटेल और शांतनु भौमिक के पिता के आरोप से त्रिपुरा सरकार पर संदेह गहराता है। दरअसल, त्रिपुरा की चर्चा राष्ट्रीय मीडिया में कम ही होती है और होती भी है तो बस यही खबरें चलती हैं कि त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार बेहद सादगी पसंद हैं। उनके साधारण तौर तरीके की चर्चाओं में वहां की कानून व्यवस्था और दूसरे जरूरी मुद्दे दब जाते हैं।
कांग्रेस विधायक रतन लाल नाथ के एक सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने बताया कि इस साल के पहले 10 महीने में अप्राकृतिक मौत के 1,148 मामले दर्ज हुए हैं। मतलब हर रोज करीब तीन मौतें त्रिपुरा में हुई हैं। मुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि राज्य में 119 महिला अपहरण और 207 दुष्कर्म के मामले दर्ज किए गए। यह आंकड़े राज्य की कानून व्यवस्था की कितनी गंभीर स्थिति को बता रहे हैं। 1इसका अंदाजा लगाने के लिए राज्य के पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक गुप्ता की एक प्रेस कांफ्रेंस में कही गई बात को सुनना चाहिए। न्यायाधीश दीपक गुप्ता ने कहा कि राज्य में एफआइआर ही बहुत कम दर्ज हो पाती है। पुलिस को लोगों की शिकायत दर्ज करनी चाहिए। हिमाचल प्रदेश भी एक छोटा राज्य है, लेकिन त्रिपुरा में हिमाचल से दस गुना ज्यादा हत्याएं और महिलाओं के खिलाफ अपराध हो रहे हैं। इस पर मीडिया के लोगों को शोध करना चाहिए।
बहरहाल, भारतीय जनता पार्टी और दूसरी विरोधी पार्टियां माणिक सरकार पर लगातार यह आरोप लगाती रही हैं कि राज्य सरकार के इशारे पर बंगाल और केरल की तरह त्रिपुरा में भी राजनीतिक हत्याएं सामान्य बात है। विरोधी राजनीतिक दलों के नेताओं की हत्या और उनके दफ्तरों को जला देने की बहुतायत घटनाएं होती हैं। भाजपा का आरोप है कि पिछले कुछ सालों में उनके करीब 450 कार्यकर्ताओं की राजनीतिक हत्या हुई है और सैकड़ों दफ्तरों को जला दिया गया। माकपा पर राजनीतिक हत्याओं का लाभ लेने का आरोप लगता रहा है। शांतनु भौमिक के हत्यारे अभी तक नहीं पकड़े गए हैं। उनकी हत्या के बाद हालात का जायजा लेने दिल्ली से गए एक पत्रकार के टैक्सी ड्राइवर जीबन देबनाथ की लाश कई दिन बाद पुलिस को मिली। शांतनु की हत्या के सात दिन बाद 27 सितंबर को 19 साल की एक युवती की दुर्गापूजा के दौरान मौत हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने युवती की मौत को दुर्घटना करार दिया, लेकिन वह यह नहीं बता पा रही है कि दुर्घटना में अगर मौत हुई तो उसके शरीर पर कपड़े क्यों नहीं थे। 13 अक्टूबर को एक और छात्र सुप्रिया मोग मरी हुई पाई गई। सुप्रिया माकपा से जुड़े एक एनजीओ प्रयास में कोचिंग कर रही थी। यह कोचिंग संस्थान रेजिडेंशियल है। पुलिस, सुप्रिया की मौत की वजह आत्महत्या बता रही है। जुलाई महीने की 19 तारीख को एक रैली की अगुवाई करने वाले शिक्षक निशिकांत चकमा की हत्या का आरोप भी माकपा कार्यकर्ताओं पर है।
अगले साल त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव होना है। आइपीएफटी का आरोप है कि माणिक की अगुवाई वाली सरकार विधानसभा चुनावों से पहले आइपीएफटी पर भौमिक की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाकर उसकी साख को चोट पहुंचाना चाहती है। क्योंकि माकपा के समर्थन वाले जनजातीय समूह को छोड़कर हजारों लोग आइपीएफटी के सदस्य बन गए हैं। माकपा और आइपीएफटी में एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है, लेकिन इन सब घटनाक्रमों के बीच सीबीआइ जांच की सिफारिश न करना माणिक सरकार के रवैये पर संदेह पैदा करता है। जबकि त्रिपुरा जर्नलिस्ट एसोसिएशन सहित नौ पत्रकार संगठनों ने सीबीआइ जांच की मांग की है। राज्य की पुलिस ने शांतनु की हत्या के तुरंत बाद आइपीएफटी से जुड़े कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार भी किया था, लेकिन अभी तक असली हत्यारे पकड़े नहीं जा सके हैं।
हर्षवर्धन त्रिपाठी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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