जानें,क्या चिनफिंग का दोबारा राष्ट्रपति बनना भारत के लिए होगा लाभदायक
चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के आजीवन चेयरमैन बनाए जा सकते हैं।
नई दिल्ली [ स्पेशल डेस्क ]। एशिया महाद्वीप के राजनीतिक इतिहास में 1947 और 1949 का महत्वपूर्ण स्थान है। 1947 में अंग्रेजों की दास्तान से भारत आजाद हुआ वहीं 1949 में चीन में क्रांति के बाद एक नये युग की शुरआत हुई। दोनों देश सांस्कृतिक तौर पर सदियों से जुड़े रहे। लेकिन 1962 में चीन की विश्वासघात के बाद संबंधों में खटास आ गई। समय के साथ-साथ दोनों देशों के बीच संबंधों में उतार-चढ़ाव आते रहे। भारत में निवेश के मामले में चीन जहां एक बड़ा भागीदार है, वहीं सीपीइसी और वन बेल्ट वन रोड के मुद्दे पर वो भारत के लिए मुश्किलें खड़ी करता है। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग एक तरफ कहते हैं कि अविश्वास की खाईं को पाटकर आगे बढ़ने की जरूरत है। लेकिन दूसरी तरफ आतंकी मसूद अजहर के मुद्दे पर टालमटोल रुख अपनाते हैं। इसके साथ ही जून के महीने में डोकलाम विवाद का निर्माण कर पंचशील सिद्धांत की अनदेखी की। 18 अक्टूबर को कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चीन की बैठक में उन्हें पार्टी का आजीवन चेयरमैन बनाया जा सकता है। शी चिनफिंग को दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने की संभावनों के बीच उनका भारत के साथ कैसा संबंध होगा इसे समझने से पहले ये जानेंगे कि जियांग जेमिन और हु जिंताओ को पछाड़ कर कैसे वो माओ जेदोंग और डेंग शाओपिंग की श्रेणी में आ चुके हैं।
शी चिनफिंग की धांसू पारी
राष्ट्रपति शी चिनफिंग चीन के राजनीति इतिहास में गिने-चुने नामों में शामिल होंगे। चिनफिंग को कम्युनिस्ट पार्टी का आजीवन चेयरमैन बनाए जाने की तैयारी हो रही है, जिसके बाद वह भी माओ जेदोंग, डेंग शाओपिंग जैसे महान माने जाने वाले चीनी नेताओं की कतार में शामिल हो जाएंगे। चिनफिंग से पहले दो राष्ट्रपति जियांग जेमिंग और हु जिंताओ ने 20 साल तक देश की सत्ता संभाली लेकिन पार्टी संविधान में उनके नाम का जिक्र नहीं किया गया था।
कम्युनिस्ट पार्टी 18 अक्टूबर से पांच वर्षों में एक बार होने वाली कांग्रेस का आयोजन कर रही है जिसमें नई पीढ़ी के नेताओं को चुना जाएगा। इस सम्मेलन में शी चिनफिंग का दोबारा पार्टी महासचिव और राष्ट्रपति चुना जाना तय माना जा रहा है।14 अक्टूबर से पहले पार्टी की कमेटी ने 4 बार बैठक की और एक आधिकारिक सूचना जारी की जिसमें पूर्व राष्ट्रपति जियांग और हु के कुछ विचारों को शामिल किया गया लेकिन माओ और डेंग की तरह उनके नाम का कहीं जिक्र नहीं था।
पार्टी की ओर से जारी सूचना के बाद यह कयास लगाए जा रहे हैं कि शी को आजीवन पार्टी का चेयरमैन चुना जा सकता है। राजनीतिक के जानकार इस बात को लेकर अभी भी दो धड़ों में बंटे हुए हैं कि यह 18 अक्टूबर से शुरू हो रही पार्टी कांग्रेस में होगा या फिर कुछ समय बाद। लेकिन इतना साफ है कि शी पार्टी के अन्य नेताओं को पीछे छोड़ते हुए खुद एक ताकतवर नेता के तौर पर उभर कर सामने आए हैं। न्यूज एजेंसी 'सिन्हुआ' के मुताबिक बीते पांच सालों में शी चिनफिंग के साथ काम करने वाली सेंट्रल कमिटी ने कई नए विचार और रणनीति पेश की हैं। साथ ही कमिटी ने महत्वपूर्ण दिशानिर्देश जारी किए हैं और कई अहम कदम उठाए हैं।
केकियांग की हो सकती है विदाई
पार्टी कांग्रेस के दौरान यूं तो शी चिनफिंग का महासचिव चुना जाना तय ही माना जा रहा है,कयास ये भी लगाए जा रहे हैं कि पार्टी की सबसे शक्तिशाली सात सदस्यीय पोलित ब्यूरो कमिटी में भी शी अपने करीबियों को ला सकते हैं और प्रधानमंत्री ली केकियांग को भी बदल सकते हैं। यह फैसला अमेरिकी राष्ट्रपति के एशियाई दौरे से कुछ दिन पहले ही लिया जा रहा है। डोनाल्ड ट्रंप इस दौरान 3 दिन चीन में रहेंगे और दक्षिणी चीन सागर, व्यापार से जुड़े मतभेदों जैसे कई मुद्दों पर चर्चा की उम्मीद है।
शी के पहले कार्यकाल की तारीफ करते हुए लिखा गया है कि मजबूत सेना का विकास करना नए रास्ते पर चलने जैसा है और देश ने आर्थिक विकास के क्षेत्र में भी बड़ी उपलब्धियां हासिल की है। शी को जब पहला कार्यकाल दिया गया था तब समझा जा रहा था कि यह कम्युनिस्ट पार्टी और सरकार में बड़े बदलाव का संकेत है। इसमें सेना का कायापलट भी शामिल था। हाल के सालों में शी ने भ्रष्टाचार पर भी सख्त रवैया अपनाया है और सैकड़ों नेताओं उच्च अधिकारियों और रिटायर्ट सैन्य अफसरों को जेल पहुंचाया है ।
जानकार की राय
Jagran.Com से खास बातचीत में चीन मामलों के जानकार डॉ एच सी सिंह ने कहा कि शी की तरक्की को आप एक सतत विकास के रूप में देख सकते हैं। चीन में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सख्त रुख की वजह से आम लोगों में शी चिनफिंग लोकप्रिय हैं। अगर उन्हें आजीवन चेयरमैन बनने का मौका मिलता है तो इसका अर्थ ये होगा कि उन्होंने अपनी स्वीकार्यता पार्टी के अंदर बढ़ाई है। पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल में चीनी दखल को वहां की जनता शी की कामयाबी के तौर पर देख रही है। चीन के लोगों का मानना है कि शी चिनफिंग सफलतापूर्वक अपनी विस्तारवादी नीति को अमल में लाने में कामयाब रहे हैं।