अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भारत की जीत के कई मायने, पाकिस्तान को साफ संदेश
आइसीजे में भारत की जीत विश्व मंच पर बड़ी सफलता है। इससे दुनिया में स्पष्ट संदेश जा रहा है कि भारत के प्रभाव की अनदेखी करना अब संभव नहीं है।
नई दिल्ली [ पीयूष द्विवेदी]। गत बीस नवंबर को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आइसीजे) में भारत के दलवीर भंडारी को न्यायाधीश के रूप में चुना गया। यह दूसरी बार है, जब भंडारी आइसीजे के न्यायाधीश के रूप में चुने गए हैं। इससे पहले वे 2012 में आइसीजे के न्यायाधीश चुने गए थे, उनका कार्यकाल 18 फरवरी को पूरा हो रहा था। आइसीजे में दलवीर की जीत को भारत की बड़ी कूटनीतिक सफलता माना जा रहा है। दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने उनकी जीत के लिए योजनाबद्ध ढंग से अभियान चलाया था।
कुलभूषण और दलवीर भंडारी
गौरतलब है कि जब कुलभूषण जाधव की फांसी पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने रोक लगाई थी तो उसमें दो लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। एक थे भारत के वकील हरीश साल्वे और दूसरे अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में बतौर न्यायाधीश मौजूद दलवीर भंडारी, इन दोनों लोगों ने पाकिस्तान की कारगुजारियों को उजागर कर जाधव की फांसी टालने में अपने-अपने स्तर पर महत्वपूर्ण निभाई थी। बस यहीं से भारत सरकार ने चुपचाप दलवीर भंडारी को अतरराष्ट्रीय न्यायालय में दोबारा लाने के लिए काम शुरू कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज समेत तमाम राजनयिकों ने अपने-अपने स्तर पर विश्व समुदाय में दलवीर भंडारी को समर्थन दिलाने के लिए माहौल बनाया, जिसका सुपरिणाम अब उनकी जीत के रूप में हमारे सामने है। अत: निश्चित तौर पर यह कहा जा सकता है कि यह सिर्फ दलवीर भंडारी की अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में हुई जीत ही नहीं, बल्कि वर्तमान सरकार की कूटनीतियों की सफलता का सशक्त उदाहरण भी है। काश इसी स्तर पर संप्रग सरकार ने भी 2006 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव पद के चुनाव में कूटनीतिक जोर लगाया होता तो शायद तब शशि थरूर बान की मून से पिछड़कर यूएन महासचिव बनने से चूके नहीं होते।
ICJ में भारत की जीत और माएने
एक प्रश्न यह उठता है कि दलवीर भंडारी के आइसीजे में होने का भारत के लिए क्या प्रभाव होगा? गौर करें तो अभी कुलभूषण जाधव का मामला आइसीजे में ही है और उस पर कोई अंतिम निर्णय नहीं आया है। अत: दलवीर भंडारी के पुनर्निर्वाचन से इस मामले में भारत का पक्ष मजबूती से कायम रहेगा, जबकि पाकिस्तान दबाव की स्थिति में होगा, बल्कि ये कहें तो गलत नहीं होगा कि पाकिस्तान अभी से इस संबंध में कुछ-कुछ दबाव में नजर आने लगा है। कुलभूषण जाधव की पत्नी को उनसे मिलने के लिए वीजा प्रस्ताव देना पाकिस्तान के दबाव को ही दर्शाता है। पाकिस्तान को पता है कि अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में जब फिर इस मामले की सुनवाई होगी तो ये देखा जाएगा कि पाकिस्तान ने जाधव को लेकर किस प्रकार का व्यवहार रखा है, इस आधार पर भी उसके पक्ष का निर्धारण किया जाएगा। यदि उसके व्यवहार में किसी प्रकार के अनुचित तत्व मिले तो यह पूरी तरह से उसके विपक्ष में चला जाएगा और उसका पक्ष कमजोर होगा।
कुलभूषण और पाकिस्तान पर दबाव
एक तो भारत की तरफ से वहां दलवीर भंडारी मौजूद हैं। दूसरे पाकिस्तान की आतंक को लेकर बेहद खराब वैश्विक छवि बनी है। इनके मद्देनजर कुलभूषण जाधव के मसले को लेकर पाकिस्तान आंतरिक रूप से बेहद दबाव में है। दलवीर भंडारी का अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में पुनर्निर्वाचन पाकिस्तान के दबाव को और बढ़ाएगा। वहीं भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के जरिये जाधव की रिहाई पर मुहर लगवाने की दिशा में भंडारी अपने पद की मर्यादाओं में रहते हुए भी पिछली बार की तरह ही मददगार सिद्ध हो सकते हैं। पाकिस्तान से इतर भंडारी के आइसीजे न्यायाधीश बनने का भारत को एक लाभ यह भी होगा कि इससे वीटो शक्तिधारक देशों के बीच यह संदेश जाएगा कि भारत के प्रभाव की अनदेखी करना अब संभव नहीं है। अब उन्हें हर स्तर पर भारत को महत्व और अधिकार देने के लिए तैयार हो जाना चाहिए।
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