वह दिन दूर नहीं जब महिलाएं भी पुरुष सैनिकों के साथ मिलकर छुड़ाएंगी दुश्मनों के छक्के
सेना पुलिस में महिलाओं को शामिल करने का फैसला महिला शक्ति की महत्ता को रेखांकित करता है। यह आगे चलकर सेना में लैंगिक बाधाओं को तोड़ने में भी मददगार साबित होगा
जाहिद खान
सेना में महिलाओं की भूमिका बढ़ाने के लिए सरकार ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है। इसके तहत अब सेना पुलिस में भी महिलाओं को शामिल किया जाएगा। 800 महिलाएं सेना पुलिस में भर्ती होंगी। इनको सेना पुलिस कोर के बंगलुरु स्थित प्रशिक्षण केंद्र में ट्रेनिंग दी जाएगी। अलबत्ता महिला जवानों की यह भर्ती कॉम्बेट रोल यानी लड़ाकू भूमिका की बजाय फिलहाल सेना पुलिस कोर में ही की जाएगी। सेना पुलिस कोर सेना की लड़ाकू भूमिका में नहीं आती और इनका काम छावनियों तथा सैन्य प्रतिष्ठानों में कानून एवं व्यवस्था की निगरानी का होता है।
यह कोर सैनिकों द्वारा नियमों के पालन, शांति तथा युद्ध के समय सैनिकों का एक जगह से दूसरी जगह भेजे जाने की निगरानी और युद्धबंदियों से जुड़े मामलों को देखती है। इसके साथ ही यह छावनियों तथा सैन्य प्रतिष्ठानों में छोटे-मोटे अपराधों की जांच और भीड़ पर नियंत्रण जैसे काम भी करती है। जाहिर है कि सरकार के इस फैसले को महिलाओं को सेना में बतौर जवान लड़ाकू भूमिका में लाने की दिशा में शुरुआती कदम माना जा रहा है। वह दिन दूर नहीं जब महिलाएं जंग के मैदान में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर दुश्मनों के छक्के छुड़ाएंगी। यही नहीं यह फैसला आगे चलकर थलसेना में लैंगिक बाधाओं को तोड़ने में भी मददगार साबित होगा। देश में महिलाएं 88 साल से सेना में हैं।
सबसे पहले 1927 में महिलाओं को सेना में नर्सिग सेवाओं की खातिर शामिल किया गया था। फिर उसके बाद साल 1943 में चिकित्सा अधिकारी के तौर पर उन्हें सेना में जगह मिली। बहरहाल एक लंबे अंतराल के बाद 1992 में भारतीय सशस्त्र सेना की दीगर इकाइयों में भी महिलाओं को शामिल होने की इजाजत दी गई। समय के साथ हमारी सेना में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। लेकिन जनसंख्या के मुताबिक अभी भी उनकी भागीदारी उतनी नहीं है, जितनी होनी चाहिए। सेना की तीनों कमानों में महज 5.4 प्रतिशत महिला अधिकारी हैं। एक आंकलन के मुताबिक 12 लाख की थलसेना में महज 2250 महिलाएं हैं, वह भी अफसर के ओहदे पर। वहीं 99 हजार की क्षमता वाली नौसेना में सिर्फ 465 महिला अफसर हैं।
भारतीय सेना ही नहीं सीआरपीएफ, आइटीबीपी और बीएसएफ जैसे अर्धसैनिक बलों में अभी भी महिलाओं की संख्या काफी कम है। हालांकि 1992 से सेना में महिला अधिकारी हैं, लेकिन महिलाओं को लेकर सेना में हमेशा से एक हिचक रही है। दूसरी ओर अर्धसैनिक बलों में महिलाओं की भर्ती होती है। यहां तक कि सीमा सुरक्षा बल में महिलाओं को अंतरराष्ट्रीय सीमा पर भारतीय पोस्ट की सुरक्षा में तैनात किया गया है और सीमा पर वे पैट्रोलिंग भी कर रही हैं। सीआरपीएफ में तो महिलाओं को नक्सल विरोधी अभियान में तैनात किया गया है। जबकि सेना में ज्यादातर महिला सैनिक या अफसर प्रशासनिक, मेडिकल और शिक्षा विंग में काम करती हैं।
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क्षमतावान होने के बावजूद भारतीय सेना में ज्यादातर महिला अधिकारी सहयोगी भूमिका में हैं, कॉम्बेट रोल में नहीं। इसका सीधा-सीधा मतलब यह है कि कोई महिला अधिकारी लड़ाई के मैदान में नहीं जा सकती है। सिर्फ वायुसेना में ही पिछले दिनों तीन महिलाओं को लड़ाकू विमान उड़ाने के लिए चुना गया। जबकि दुनिया के कई देशों में महिलाएं कॉम्बेट भूमिकाओं में हैं। पाकिस्तान, ब्रिटेन, इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, नार्वे और स्विट्जरलैंड जैसे देशों की वायुसेना में महिला पायलट कई सालों से लड़ाकू विमान उड़ा रही हैं। इजरायल, हॉलैंड, पोलैंड, रोमानिया में महिलाएं क्लोज कॉम्बेट भूमिका में हैं।
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दुनिया में आज कोई क्षेत्र नहीं जहां महिलाएं पुरुषों से पीछे हों। महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। उन्हें शानदार कामयाबी भी हासिल हुई हैं। ऐसे में उन्हें सेना के अंदर लड़ाकू भूमिका महज इस आधार पर न देना कि वे महिलाएं हैं, सरासर गलत है। लिंग के आधार पर महिलाओं के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। संविधान का अनुच्छेद 15 साफ-साफ कहता है कि महिला-पुरुष दोनों को समानाधिकार मिलेंगे और राज्य लिंग के आधार पर उनमें आपस में कोई भेद नहीं करेगा। शिक्षा एवं संवैधानिक अधिकार सभी के लिए बराबर होंगे। कॉम्बेट भूमिका के लिए महिला सैनिकों की शारीरिक फिटनेस बेहतर होनी चाहिए। इस तरह की फिटनेस हासिल करना आसान काम नहीं होता, लेकिन यह मुश्किल काम भी नहीं है।
वायुसेना में सफलतापूर्वक लड़ाकू विमान उड़ाकर महिलाओं ने यह साबित कर दिया है कि उन्हें सेना में जो भी भूमिका मिलेगी, उसे वे बेहतर तरीके से निभाएंगी। देर से ही सही अब महिलाओं के प्रति सरकार और सेना का नजरिया बदल रहा है। भारतीय सेना में पहले तो महिलाओं को स्थाई कमीशन भी नहीं दिया जाता था। उनकी सेवाएं सीमित थीं। उनको केवल शॉर्ट सर्विस कमीशन ही मिलता था और उनकी तैनाती प्रशासनिक, चिकित्सा और शैक्षणिक विभागों में ही की जाती थी। शॉर्ट टर्म कमीशन के बाद उन्हें सेवानिवृत्त कर दिया जाता था। लेकिन साल 2010 में दिल्ली हाईकोर्ट के एक फैसले के बाद पहले थलसेना और फिर वायुसेना में महिलाओं को स्थाई कमीशन मिला।
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अभी ज्यादा दिन नहीं बीते हैं, जब नौसेना की महिला अधिकारियों ने भी अदालत के जरिये ही स्थाई कमीशन की लड़ाई जीती है। स्थाई कमीशन मिलने के बाद महिला अधिकारी अब अपने पुरुष सहयोगियों की तरह ही सेना से सेवानिवृत्त हो रही हैं तथा उन्हें पेंशन आदि लाभ भी मिल रहे हैं। बहरहाल अब वायुसेना की तरह थल सेना और नौसेना में भी महिलाओं को लड़ाकू भूमिका मिलनी चाहिए। यह महिलाओं का वाजिब हक है। सेना के हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए सरकार को और भी ईमानदार प्रयास करने होंगे। महिलाओं को एक मौका तो दीजिए, फिर उसके नतीजे देखिए। यह काम महज चंद घोषणाओं से नहीं होगा, बल्कि इसके लिए सरकार को एक ठोस ढांचा और नीति बनानी होगी। सेना में महिलाओं की भर्ती के लिए एक अलग अकादमी हो, जहां से वे प्रशिक्षित होकर अपना काम बेहतर तरीके से संभाल सकें।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)