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जानें, क्यों श्रीनगर के लालचौक में तिरंगा झंडा फहराने पर होती रही है सियासत

लालचौक-घंटाघर कश्मीर की सियासी गतिविधियों का पर्याय हैं। प्रमुख राजनीतिक रैलियां और जलसे इसी जगह घंटाघर के पास होते रहते हैं।

By Lalit RaiEdited By: Published: Wed, 06 Dec 2017 05:19 PM (IST)Updated: Wed, 06 Dec 2017 05:46 PM (IST)
जानें, क्यों श्रीनगर के लालचौक में तिरंगा झंडा फहराने पर होती रही है सियासत
जानें, क्यों श्रीनगर के लालचौक में तिरंगा झंडा फहराने पर होती रही है सियासत

श्रीनगर[ नवीन नवाज ]। कश्मीर की सियासत और पहचान का पर्याय बन चुके ऐतिहासिक लालचौक में बुधवार की सुबह सूरज अभी अपने किरनें पूरी तरह बिखेर नहीं पाया था, सैर को निकले लोग वहीं घंटाघर के पास शांतिदूत कहे जाने वाले कबूतरों को दाना डालते हुए अमन बहाली की दुआ कर रहे थे। अचानक सब कुछ बदल गया। भारत माता की जय, वंदेमातरम के नारों के बीच राष्ट्रध्वज फहराते हुए युवकों के एक दल की वहां खड़े कुछ लोगों से हाथापाई शुरु हो गई। पुलिस मौके पर पहुंची और उसने राष्ट्र्ध्वज समेत कुछ लोगों को हिरासत में ले हालात सामान्य बनाने का प्रयास किया।

कश्मीर की सियासत और लालचौक में तिरंगा झंडा
कश्मीर में राष्ट्रध्वज फहराने पर किसी को हिरासत में लिया जा सकता है, किसी तरह का दंगा भड़क सकता है, यह आम नागरिकों के लिए बेशक हैरान करने वाली बात होगी। लेकिन कश्मीर की सियासत और कश्मीर को समझने वालों के लिए यह किसी भी तरह से असामान्य बात नहीं है।कश्मीर में तिरंगा फहराना, तिरंगा न फहराने देना और कश्मीर में तिरंगें पर सियासत के कश्मीर से कन्याकुमारी तक अपने अपने मायने हैं। बीते 27 सालों में लालचौक में या कश्मीर के किसी अन्य हिस्से में तिरंगा फहराना अलगाववाद और राष्ट्रवाद के बीच जहां वर्चस्व की जंग बन चुका है,वहीं यह कई सियासी दलों के लिए एक बड़ा मुददा,फोटो खिंचवाने और सुर्खियों के साथ साथ वोट बटोरने का भी एक जरिया बन चुका है।

1948 में लालचौक में ही होटल कारनेशन के पास देश के पहले प्रधानमंत्री पं जवाहरलाल नेहरु ने स्व. शेख मोहम्मद अब्दुल्ला जिनकी गत पांच दिसंबर को 112वीं जयंती थी, के साथ पहली बार कश्मीर में किसी सियासी रैली में राष्ट्रध्वज फहराते हुए कश्मीरियों को आत्मनिर्णय का अधिकार देने की बात कही थी। उसके बाद से लालचौक और घंटाघर कश्मीर की सियासी गतिविधियों का पर्याय बन गए। सभी प्रमुख राजनीतिक रैलियां और जलसे इसी जगह घंटाघर के पास होते रहे हैं।

1992 में सियासत के केंद्र में लालचौक
अलबत्ता, 1992 में लालचौक पहली बार कश्मीर में अलगाववादियों,आतंकियों और मुख्यधारा की सियासत करने वाले राजनीतिक दलों, राष्ट्रवादियों और सुरक्षाबलों के लिए पहली बार प्रतिष्ठा का सवाल बना। भारतीय जनता पार्टी ने कन्याकुमारी से एकता यात्रा शुरु करते हुए 26 जनवरी 1992 को उसे लालचौक में तिरंगा फहराते हुए संपन्न करने का एलान किया था।भाजपा के इस एलान के बाद पूरी रियासत में स्थिति अत्यंत तनावपूर्ण हो गई। कश्मीर में स्थिति विस्फोटक थी। आतंकी और अलगाववादियों ने खुलेआम एलान करते हुए कहा कि तिरंगा नहीं फहराने दिया जाएगा। उस समय जम्मू कश्मीर में राज्यपाल जीसी सक्सेना थे और राज्य पुलिस महानिदेशक जेएन सक्सेना। भाजपा की एकता यात्रा के संपन्न् होने से पहले ही आतंकियों ने पुलिस मुख्यालय मे ग्रेनेड धमाका किया,जिसमें तत्कालीन महानिदेशक जख्मी हुए थे।


जब आतंकी धमकी के बाद लालचौक पर फहरा तिरंगा झंडा

जेकेएलएफ उस समय प्रमुख आतंकी संगठन था, उसने आप्रेशन स्नोस्टॉर्म और मकबूल बट स्कवाड बनाया और उन्हें एकता यात्रा को नाकाम बनाने का जिम्मा सौंपा। जेकेएलएफ ने एकता यात्रा को रोकने के लिए श्रीनगर- जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग पर श्रीनगर से रामबन के बीच 25 जनवरी की सुबह छह बजे से 26 जनवरी की दोपहर 12 बजे तक वाहनों की आवाजाही पर प्रतिबंध का एलान भी किया। जम्मू में देशभर के भाजपा,विहिप,बजरंग दल,शिवसेना व संघ कार्यकत्र्ता जमा हो गए। यह लोग जम्मू से निकले,लेकिन उधमुपर में रोक लिए गए।

अलबत्ता, हालात को भांपते हुए तत्कालीन प्रशासन ने मुरली मनोहर जोशी, नरेंद्र मोदी समेत भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं को हवाई जहाज के जरिए श्रीनगर पहुंचाया। लालचौक पूरी तरह से एक युद्घक्षेत्र बना हुआ था। चारों तरफ सुरक्षाकर्मी ही थे। कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच लगभग 15 मिनट में ही मुरली मनोहर जोशी व उनके साथियों ने तिरंगा फहराया। लेकिन इस दौरान आतंकियों ने राकेट भी दागे जो अपना निशाना चूक गए।एकता यात्रा के बाद लालचौक में तिरंगा फहराना पूरी तरह से राष्ट्रवाद और अलगाववाद के बीच वर्चस्व की लड़ाई बन गया।
1990 से 2005 तक झंडा फहराने का क्रम रहा जारी
इस बीच, बीएसएफ ने 1990 से लेकर 2005 तक और उसके बाद वर्ष 2009 तक लालचौक में स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के मौके पर एक भव्य समारोह व परेड का आयोजन करते हुए राष्ट्रध्वज फहराने का क्रम जारी रखा। लेकिन वर्ष 2009 में यह समारोह बंद हो गया। 1994 से लेकर 1997 तक अखिल भारतीय शिव सेना की प्रदेश इकाई के नेता योगेश गुप्ता जिनका अब निधन हो चुका है, अपने कुछ साथियों संग लाल चौक में स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर तिरंगा लहराने आते रहे।
2011 के बाद झंडा फहराने पर राजनीतिक सरगर्मी तेज
वर्ष 2011 में एक बार फिर कश्मीर में तिरंगा फहराने को लेकर सियासत तेज हो गई। वर्ष 2010 के हिंसक प्रदर्शनों से त्रस्त कश्मीर के हालात धीरे धीरे सामान्य हो रहे थे। भाजपा ने 26 जनवरी 2011 को लालचौक में तिरंगा फहराने का एलान कर दिया। कश्मीर के सभी अलगाववादी संगठनों जिनमें जेकेएलएफ और हुर्रियत कांफ्रेंस प्रमुख है, ने चुनौती देते हुए कहा कि अगर किसी में दम है तो वह आकर दिखाए। यहां खून की नदियां बहेंगी, यह हिंदोस्तान नहीं है। यासीन मलिक ने उस समय कहा था कि भाजपा की केंद्र में पांच साल सरकार रही तब वह यहां तिरंगा लेकर नहीं आयी, बल्कि शांति के प्रस्ताव लेकर आती रही। अब 26 जनवरी को देखना कि यहां कौन किसका झंडा फहराता है।

अलगाववादी खेमे ने भाजपा की तिरंगा यात्रा के मुकाबले लालचौक मार्च का एलान कर दिया। तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी भाजपा को तिरंगा यात्रा के लिए आड़े हाथ लेते हुए कहा कि भाजपा को हालात सामान्य बनाने और कश्मीर में राष्ट्रवादियों को मजबूत बनाने में सहयोग करना चाहिए,लेकिन वह अपनी सियासत के लिए अलगाववादियों को भड़का रही है। तिरंगा यात्रा भी रास्ते में रोक दी गई। कई भाजपा कार्यकत्र्ताओं को हिरासत में लिया गया। श्रीनगर में कर्फ्यू रहा।
भाजपा ने एक बार फिर तेज की आवाज
15 अगस्त 2017 को भाजपा द्वारा फिर से तिरंगा यात्रा का एलान करने के तक फिर किसी राजनीतिक दल ने कश्मीर में तिरंगा फहराने का एलान नहीं किया था। लेकन इस दौरान अहमदबाद गुजरात की रहने वाली तंजीम व नवीन जयहिंद और लुधियाना पंजाब की रहने वाली जहानवी बहल नामक छात्रा ने कश्मीर में तिरंगा लेकर आने का एलान किया। तंजीम ने इसी साल आठ अगस्त की सुबह तिरंगा फहराया जबकि जाहनवी को 15 अगस्त 2016 की सुबह श्रीनगर एयरपोर्ट से ही लौटा दिया गया।
जब एक महिला ने दिखाई दिलेरी
खैर, इस साल जब भाजपा ने कश्मीर में 15 अगस्त 2017 को तिरंगा फहराने का एलान किया तो सभी को लगा कि इस बार लालचौक में खूब गहमा गहमी रहेगी,तिरंगा यात्रा को कोई नहीं रोकेगा। क्योंकि जम्मू कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी ने पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ मिलकर सरकार बना रखी है। लेकिन यह सब उम्मीदें धरी की धरी रह गई,क्योंकि अलगाववादियों द्वारा यात्रा का विरोध करने और कश्मीर में कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने की आशंका के चलते प्रशासन ने यात्रा को रोक दिया। तिरंगा फहराने के लिए आए लगभग 200 भाजपा कार्यकर्ताओं को पुलिस ने 14 अगस्त की रात को ही उनके होटलों से हिरासत में ले लिया। भाजपा कार्यकर्ता  लालचौक में नहीं पहुंचे,लेकिन एक महिला सुनीता अरोड़ा अकेली ही तिरंगा लेकर पहुंच गई।
लालचौक में तिरंगा फहराने को लेकर कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ मुख्तार अहमद कहते हैं कि यह एक तरह से कश्मीर में व्याप्त हिंदोस्तान विरोधी भावनाओं को भड़काने के समान हो चुका है। यह राष्ट्रवाद से कहीं ज्यादा सियासत है। डा फारुक अब्दुल्ला ने अगर कहा कि कोई लालचौक में आकर तिरंगा लहराकर दिखाए तो क्या बुरा कहा। यहां लोग दिल्ली से, हिंदोस्तान से नाराज हैं। दिल्ली यह नाराजगी दूर करे, फिर यहां किसी को बाहर से तिरंगा लेकर आने की जरुरत नहीं होगी, फिर यहीं से लोग तिरंगा लेकर नजर आएंगे। अन्यथा, आपको पाकिस्तान के झंडे ही नजर आएंगे।
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