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बड़ा सवाल आखिर क्या वजह है कि देश में अब भी बाबाओं का बोलबाला है

पेरियार आदि सुधारकों ने अंधविश्वास मिटाने का बीड़ा उठाया था, लेकिन क्या वजह है कि देश में अब भी बाबाओं का बोलबाला बना हुआ है

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 27 Oct 2017 10:53 AM (IST)Updated: Fri, 27 Oct 2017 10:53 AM (IST)
बड़ा सवाल आखिर क्या वजह है कि देश में अब भी बाबाओं का बोलबाला है

तर्कशीलता से किसको बैर
पेरियार आदि सुधारकों ने अंधविश्वास मिटाने का बीड़ा उठाया था, लेकिन क्या वजह है कि ऐसे तमाम सुधारकों का प्रभाव बनने के बजाय देश में अब भी बाबाओं का बोलबाला बना हुआ है

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अंजलि सिन्हा

अब जैन मुनि शांतिसागर बलात्कार केस में फंसे हैं। उन पर केस दर्ज हो चुका है और गिरफ्तारी भी हो गई है। पीड़ित लड़की का पूरा परिवार अपनी आस्था के कारण उनका दर्शन करने आया था, जिसमें उन्होंने धार्मिक प्रक्रिया पूरी करने के लिए लड़की को आश्रम में रोक लिया था। बाद में लड़की ने अपने परिजनों को घटना के बारे में बताया। पूरी घटना कुछ समय पहले सामने आए राजस्थान के चर्चित फलाहारी बाबा की गिरफ्तारी की याद दिलाती है, जिन्होंने इसी तरह बिलासपुर से उनसे मिलने आई युवती को आश्रम में रोक लिया था और उसके साथ अत्याचार किया था। और जब पुलिस पीछे लगी तो बीमारी का बहाना बना कर अस्पताल में भरती हुए थे।

चाहे जैनमुनि शांतिसागर हों या फलाहारी बाबा, अब साफ तौर पर यह सभी को दिख रहा हैं कि कोई भी धर्म इस बात से इन्कार नहीं कर सकता कि वहां महिलाओं के प्रति सुरक्षित वातावरण है। हालांकि बचाव में हमेशा यही बात आती है कि कुछ व्यक्ति गलत हैं, सभी नहीं और सही भी यही है कि कुछ ही साधु संतों पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा है, लेकिन प्रमुख बात यह है कि आस्था वाले जगह की बातें लोगों की भावनाओं के कारण देर से सतह पर आती हैं। आम समाज का व्यक्ति जब अपराध करता है, छोटी मोटी चोरी भी करता है तो वहां श्रद्धालुओं की फौज बचाने वाली नहीं होती है।

दूसरी बात कि साधुओं के बीच भी असली संत और नकली संत की बात कर आस्थावानों को भरोसा दिलाया जाता है कि उनके गुरु असली हैं। यानी कोई पद्धति या कसौटी नहीं है यह जानने समझने के लिए कि किस पर भरोसा करें। शांतिसागर के मसले पर दूसरे जैन गुरु तरुणसागर ने कहा है कि शांतिसागर ‘संत के भेष में पाखंडी हैं। जैन समाज ऐसे बुरे लोगों को अपना आदर्श नहीं मानता।’ जब मामला सामने आता है तो उसी धर्मक्षेत्र के दूसरे लोग अपनी जगह बनाए रखने का भरपूर प्रयास करते हैं। इसके पहले अखाड़ा परिषद-जो एक स्वयंभू समूह है साधुओं का, उसने 14 फर्जी बाबाओं की सूची जारी कर दी थी और और इन पर शिकंजा कसने की अपील की थी।

इस सूची में उन्हीं बाबाओं के नाम थे जिन पर या तो कानूनी कार्रवाई हुई है या किसी प्रकार का आरोप सामने आया है। जैसे गुरु रामरहीम, आसाराम बापू, नारायण सांई, रामपाल, राधे मां, निर्मल बाबा, इच्छाधारी बाबा आदि। अखाड़ा परिषद के प्रतिनिधि उस वक्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी मिले थे और बाद में उन्होंने बताया कि योगी जी भी उनके इस प्रयास से खुश हैं तथा फर्जी बाबाओं की जांच होगी। उस वक्त यह सवाल भी उठा था कि अखाड़ा परिषद-जो एक स्वयंभू संस्था है अर्थात जिसने अपना गठन खुद किया है-उसने जांच के कौन से मापदंड अपनाए और वह किस आधार पर अन्य बाबाओं साधु संतों को सर्टिफिकेट जारी कर सकता है कि अमुक सच्चा है।

कुछ साल से दिव्य ज्योति का मामला संपत्ति और उसके वारिस को लेकर चल रहा है। आशुतोष महाराज को डॉक्टरों ने ‘क्लिनिकली डेड’ घोषित करने के बाद उनके बेटे ने मीडिया को बताया था कि हमें ऐसे पिता से कोई मतलब नहीं है जो हमें बचपन में ही छोड़ कर चला गया। मां ने मेहनत मजदूरी करके बच्चों की परवरिश की, लेकिन उसी बेटे को जब पता चला कि संस्थान के पास करोड़ों की संपत्ति है, तो वारिस होने की लड़ाई लड़ रहा है। बताया जाता है कि आशुतोष महाराज जो घर से खाली हाथ निकले थे और अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुंह मोड़कर बिहार से पंजाब पहुंचे थे और बाद में उन्होंने अपने आध्यात्मिक कामों के तहत देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी संपत्ति खड़ी की है।

याद करें उत्तर प्रदेश का जवाहरबाग कांड कि किस तरह आखिर सरकार और प्रशासन के नाक के नीचे रामवृक्ष अपनी समानांतर सरकार चला रहा था और उसे ऐसा सुनहरा अवसर किसकी वजह से हासिल हुआ था। पूरे सरकारी खुफियातंत्र के पास इसका क्या जवाब है? ऐसे ही तमाम उदाहरण गिनाए जा सकते हैं जिसमें सरकार और प्रशासन की मिलीभगत रहती है। जनता का एक बड़ा हिस्सा भी ऐसा ‘महान’ है कि उनके गुरुओं के अपराध सामने आने के बाद भी उनकी आस्था अडिग रहती है, जैसे रामरहीम के बचाव में भी लोग हिंसा पर उतरे वैसे ही आसाराम का भी बचाव किया गया। यदि हम मूल मुद्दे पर वापस आएं तो यह बात हमें सोचनी होगी कि क्या मसला इस या उस साधु को फर्जी घोषित करने का है, उनके चलते धर्म विशेष की बदनामी को रोकने का है या कुछ और है।

धर्म और आस्थाओं की सबसे बड़ी खासियत यही तो है कि वह प्रश्न उठाना नहीं सीखाता, वह तकृबुद्धि के इस्तेमाल पर अघोषित प्रतिबंध लगाता है। विचार यह होना चाहिए कि आखिर वैज्ञानिकता, तार्किकता से दुश्मनी किसकी है? किसका धंधा इनकी रौशनी में चौपट होगा? नरेंद्र दाभोलकर जैसों से खतरा किस धारा को है? हमारे देश में अंधविश्वास के खिलाफ काम करने वालों ने कड़ी मेहनत की है। भारत जन विज्ञान जत्था जैसे समूहों ने देश भर में अभियान चलाया है, प्रोफेसर यशपाल जैसे वैज्ञानिकों ने अपनी पूरी जिंदगी लगा दी कि हम भारतीय वैज्ञानिक दृष्टिकोण सीखें-जानें। और भी पहले जाएं तो पेरियार आदि सुधारकों ने भी अंधविश्वास समाप्त करने का बीड़ा उठाया था किन्तु क्या वजह है कि ऐसे तमाम सुधारकों का प्रभाव बनने के बजाय बाबाओं- फकीरों का बोलबाला बना है।

किसी को भी अपने लिए अनुयायी तलाशने के लिए हमारी जमीन सबसे उर्वर लगती है। ज्योतिष विज्ञान को खगोल विज्ञान से आगे बता देना। गली गली में ज्योतिष केंद्र चल रहे हैं, जबकि बहुत पहले ही उन्नीस नोबेल पुरस्कार विजेता सहित दुनिया भर के 173 वैज्ञानिकों ने बयान जारी करके बताया था कि ज्योतिष शास्त्र कल्पना मात्र है, इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। हर अखबार राशिफल देना अपना कर्तव्य मानता है तो टी वी चैनलों पर भूत प्रेतों के किस्से चलते हैं। किसी भी सरकार को इसमें कोई रुचि नहीं है कि लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित हो, वे हर काम को भाग्य भरोसे जांचते परखते रहें तो सरकारी नाकामियों, जनविरोधी नीतियों की संख्या सीमित बनी रहेगी।

(लेखिका सामाजिक कार्यकर्ता हैं)


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