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कोंकण रेलवे को तकनीक देने वाली धनबाद की यह कंपनी बना रही मुंबई मेट्रो की टनल

मेट्रो सुरंग के लिए भारत अभी तक दूसरे देशों पर निर्भर था। लेकिन सिंफर धनबाद सुरंग के मामले में मल्टीनेशनल कंपनियों को पछाड़ने में कामयाब रहा है।

By Lalit RaiEdited By: Published: Fri, 10 Nov 2017 01:29 PM (IST)Updated: Fri, 10 Nov 2017 04:23 PM (IST)
कोंकण रेलवे को तकनीक देने वाली धनबाद की यह कंपनी बना रही मुंबई मेट्रो की टनल
कोंकण रेलवे को तकनीक देने वाली धनबाद की यह कंपनी बना रही मुंबई मेट्रो की टनल

विनय झा, धनबाद। मुंबई मेट्रो योजना के तहत पहली बार इस महानगर में भूमिगत सुरंग बनने जा रही है, जिससे यात्री ट्रेन गुजरेगी। करीब 25,000 करोड़ रुपये लागत वाली 'मुंबई मेट्रो लाइन-तीन' के तहत कोलाबा-बांड्रा-सीपज के बीच 33.5 किमी लंबी यह सुरंग बनने जा रही है। जमीन के अंदर कुल 26 स्टेशन बनेंगे। सुरंग और स्टेशनों की डिजाइन तैयार करने से लेकर जमीन के अंदर इसे अमलीजामा पहनाने के पहले चरण का जिम्मा धनबाद स्थित केंद्रीय खनन एवं ईंधन अनुसंधान संस्थान (सिंफर) के वैज्ञानिकों को मिला है। इस देशी संस्थान को आज की तारीख में नियंत्रित विस्फोट से सुरंग व खदान खोदने की तकनीक में महारत हासिल है। सबसे बड़ी बात यह कि भूमिगत मेट्रो की संरचना तैयार करने में अब भारत को विदेशी तकनीक की ओर मुंह ताकने की मजबूरी नहीं रह गई है। सिंफर ने ऑस्ट्रेलिया की रियो टिंटो समेत कई मल्टीनेशनल बड़ी कंपनियों को आधुनिक तकनीक, सुरक्षा व लागत के पैमाने पर पटकनी देकर इसका वर्क ऑर्डर हासिल किया है। आइए आपको बताते हैं कि आखिर सिंफर क्या है। 

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क्या है सिंफर  

देश के शीर्ष वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) से 38 राष्ट्रीय महत्व की प्रयोगशालाएं जुड़ी हुई हैं। इनमें से एक है धनबाद स्थित केंद्रीय खनन एवं ईंधन अनुसंधान संस्थान (सिंफर)। जैसा कि नाम से स्पष्ट है, यह कोयला समेत विभिन्न ईंधनों व खनिजों के खनन से जुडे तमाम पहलुओं, रॉक मेकेनिक्स, क्लीन इनर्जी आदि कई क्षेत्रों में शोध कर तकनीक विकसित करता है। 1946 व 1956 में धनबाद में स्थापित हुए दो राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं क्रमश: सेंट्रल फ्यूएल रिसर्च इंस्टीट्यूट और सेंट्रल माइनिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट के 2007 में आपसी विलय के बाद सिंफर नए अवतार सामने आया। आज यह अपने शोधों की बदौलत प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से खर्च से दोगुनी आय कमाकर देश का नंबर-वन कमाऊ टेक्नोलॉजी रिसर्च संस्थान बन गया है। इसी कारण इस साल राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी अवार्ड का सेहरा प्रधानमंत्री के हाथों सिंफर के माथे बंधा है। 

सिंफर ने विकसित की कुछ महत्वपूर्ण तकनीक 
वैसे तो सिंफर में विकसित तकनीक सैकड़ों में हैं। उनमें से कुछ आमजनों के बीच चर्चा के विषय बने हैं। इनमें कोयले से तेल बनाने का प्रायोगिक प्लांट, भूमिगत कोयले से गैस बनाना, कोयला खदान के पानी को शोधित कर पेयजल के रूप में इस्तेमाल, भूमिगत खदानों के पिलरों में फंसे करोड़ों टन कोयले का खनन, नियंत्रित विस्फोट के जरिए खदान व सुरंग बनाना, तीन सौ मीटर से अधिक गहराई वाले कोयले का खनन, स्वच्छ कोल तकनीक, भूमिगत खदानों में कार्यरत श्रमिकों के पता लगाने का सिस्टम, खदान के अंदर वायरलेस इंफोर्मेशन-सेफ्टी सिस्टम, खदान के अंदर पर्यावरण की देखरेख, कोलियरियों के रास्ते की धूल का संग्रह और उससे ब्रिकेट बनाना, खनन के लिए सही विस्फोटक, देसी पोटाश के खनन की विधि आदि शामिल हैं। इनमें से कई तकनीक विश्व में सिर्फ अपने यहां विकसित हुई है। 

रेल सुरंग बनाने में सिंफर अग्रणी 
रॉक मेकेनिक्स, माइनिंग, ब्लास्टिंग, माइंस पिलरिंग समेत कई संबंधित क्षेत्रों में लंबे अर्से तक हुए शोधों की बदौलत सिंफर आज रेलवे व हाइड्रो प्रोजेक्टों के लिए सुरंग खोदने की तकनीक में देश का नंबर-वन संस्थान बन गया है। मुंबई मेट्रो का काम हाथ में लेने से पहले यह कोंकण रेलवे को सुरंग की तकनीक दे चुका है। बेंगलुरु मेट्रो में भी इसे यह जिम्मा मिला है। इस क्षेत्र में देश का दूसरा जो प्रमुख शोध संस्थान सक्रिय रहा है, वह है बेंगलुरु स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रॉक मेकेनिक्स। जब दिल्ली मेट्रो के लिए सुरंग खोदी गई थी तब भारत विदेशी तकनीक पर निर्भर था। मगर आज स्थिति बदल गई है। 

विश्व की सबसे सस्ती व  सुरक्षित स्वदेशी तकनीक  
सिंफर के निदेशक डॉ. पीके सिंह बताते हैं कि मुंबई मेट्रो के लिए जमीन के अंदर चट्टानों में विस्फोट कर सुरंग खोदी जाएगी, मगर इसके कंपन का जरा सा भी अहसास ऊपर बसी लाखों की आबादी को नहीं होगा। सुरंग सतह से 12 से 18 मीटर गहराई में होगी। हरेक भूमिगत स्टेशन के लिए 250 गुणा 32 मीटर के आकार में बॉक्स काटे जाएंगे। दरअसल, इस संस्थान के वैज्ञानिकों ने चट्टानों में डेटोनेटर से 'नियंत्रित विस्फोट की आधुनिक स्वदेशी तकनीक विकसित की है। यह तकनीक अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर न केवल खरी उतरी है, बल्कि इसकी लागत बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों की तकनीक से पांच गुना तक सस्ती है। सिंफर इस कारण भी दिग्गज विदेशी कंपनियों पर भारी पड़ रहा है कि इसके पास देश के सभी भागों के चट्टानों की अलग-अलग प्रकृति का विशाल डेटा भंडार है। वैज्ञानिकों ने वर्षों की मेहनत के बाद यह डेटा भंडार तैयार किया है। एक क्लिक में यह कंप्यूटर स्क्रीन पर हाजिर हो जाता है। चट्टान मेकेनिक्स के ज्ञान क्षेत्र में सिंफर के अलावा देश के जो अग्रणी संस्थान है उनमें बेंगलुरु के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रॉक मेकेनिक्स और धनबाद के आइआइटी आइएसएम।

इन भूमिगत स्टेशनों  से गुजरेगी ट्रेन
मुंबई मेट्रो लाइन-तीन आरे मिल्क कॉलोनी डिपो से बस डिपो तक बिछ रही है। इसमें ये 26 स्टेशन भूमिगत होंगे- सीपज, एमआइडीसी, मेरोल नाका, इंटेल एयरपोर्ट, सहार रोड, डोमेस्टिक एयरपोर्ट, सांताक्रूज, विद्यानगरी, बीकेसी, धारावी, शीतलादेवी टेंपल, दादर, सिद्धि विनायक, वोरली, आचार्य आत्रे चौक, साइंस म्यूजियम, महालक्ष्मी, मुंबई सेंट्रल, ग्रांट रोड, गिरगोम, कालबदेवी, सीएसटी मेट्रो, हुतात्मा चौक, चर्चगेट, विधान भवन व कफ परेड।

जानकार की राय 
चट्टानों में नियंत्रित विस्फोट के जरिए सुरंग खोदने के लिए सिंफर विज्ञानियों द्वारा विकसित स्वदेशी तकनीक आज विश्व की दिग्गज कंपनियों से लोहा ले रही है। मुंबई मेट्रो से पहले यहां के विज्ञानी कोंकण व बेंगलुरु रेलवे तथा कई हाइड्रो पावर प्रोजेक्टों के लिए सुरंग खोद चुके हैं। डॉ. पीके सिंह, निदेशक, सिंफर, धनबाद

सिंफर की इस कामयाबी के बाद हम आपको भारतीय इंजीनियरिंग या संस्थानों के बारे में बताएंगे जिनका डंका आज पूरी दुनिया में बज रहा है। 

हुगली नदी के नीचे बनाई टनल

भारतीय इंजीनियरों ने अपने टैलेंट के जौहर हर जगह दिखाए हैं। कोलकाता मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड के साथ काम करने वाली एक प्राइवेट कंपनी के इंजीनियरों ने 'अंडर वाटर टनल' बनाकर अपनी इंजीनियरिंग का लोहा मनवाया। इसमें सबसे खास बात यह है कि इस काम को इस साल जुलाई में पूरा होना था, लेकिन यह मई में ही पूरा हो गया था। दरअसल ईस्ट-वेस्ट मेट्रो को जोड़ने के लिए भारत में पहली बार अपनी तरह की 'अंडर वाटर टनल' बनाई गई है। इसके तहत इंजीनियरों ने हुगली नदी के नीचे टनल बनाकर कोलकाता और हावड़ा के बीच मेट्रो लिंक जोड़ दिया। नदी के नीचे 502 मीटर लंबी सुरंग खोदने के लिए एक बड़ी टनल बोरिंग मशीन का इस्तेमाल किया गया।

चनैनी-नाशरी सुरंग

जम्मू-कश्मीर के चनैनी और नाशरी के बीच बनी यह 9.28 किमी लंबी सुरंग देश की सबसे लंबी सुरंग है। इसे बनने में करीब साढे पांच साल का वक्त और 3,720 करोड़ रुपये की लागत आयी है। बड़ी बात यह है कि इस सुरंग के बनने से न सिर्फ जम्मू और श्रीनगर के बीच की दूरी कम हुई है, बल्कि सरकार को प्रतिदिन करीब 27 लाख रुपये के पेट्रोल की भी बचत होगी। इसके अलावा टोल टैक्स से भी सरकार को कमाई होगी। आग और आपदा से बचने के लिए इसमें अत्याधुनिक बंदोबस्त किए गए हैं। यह सुरंग किसी भी मौसम में बंद नहीं होगी और इंजीनियरिंग के लिहाज से यह भारत के लिए एक उपलब्धि है।

चेनाब सेतु
कुतुब मिनार से पांच गुना ऊंचा और एफिल टावर से भी करीब 35 फुट ऊंचा यह रेल पुल सबसे ऊंचा पुल होगा। उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेल लिंक पर बना यह पुल रियासी जिले में बन रहा है। इसे चेनाव नदी के ऊपर 1178 फीट की ऊंचाई पर बनाया जा रहा है। इस पुल एक सिंगल आर्क पर बन रहा है। 8 रिक्टर स्केल तक के भूकंप को आसानी से झेल सकने वाला यह पुल जिस ऊंचाई पर बन रहा है, वहां पर हवा भी इतनी तेज है कि इस पुल का बनना इंजीनियरिंग का एक कमाल ही है। पुल को साल 2009 में बनकर तैयार होना था, लेकिन काम रुक जाने के कारण 2010 में इसका निर्माण शुरू हो पाया और एक बार बन जाने के बाद यह दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल होगा।

चारधाम आल वेदर रोड
उत्तराखंड सहित 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देहरादून में ऑल वेदर रोड का शिलान्यास किया। बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री उत्तराखंड के इन चारों धामों को जोड़ने के लिए इस ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट को तैयार किया गया है। गर्मियों और मानसून के दिनों में होने वाली चारधाम यात्रा में मौसम अक्सर विलेन की भूमिका में नजर आता है। इस प्रोजेक्ट के तहत बन रही सड़क किसी भी मौसम में यात्रा के लिए पूरी तरह से सुरक्षित होगी। इसके तहत सैंकड़ों पुलों और सुरंगों का निर्माण होना है, इसके साथ ही भूस्खलन वाली जगहों पर पहाड़ पर लोहे की जाली लगाकर उसे रोकने का भी प्रस्ताव है। यह प्रोजेक्ट करीब 12 हजार करोड़ में पूरा होना है।
 

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