Move to Jagran APP

‘कश्मीर राग’ में अब चीन भी शामिल, पाक के बाद अब ड्रैगन के ना 'पाक' बोल

कश्मीर के मुद्दे पर चीनी थिंक टैंक के बयान से साफ है कि अब वो हताश हो चुके हैं। भारत को जवाब देने के लिए पाकिस्तान की भाषा बोल रहे हैं।

By Lalit RaiEdited By: Published: Mon, 10 Jul 2017 02:53 PM (IST)Updated: Tue, 11 Jul 2017 11:44 AM (IST)
‘कश्मीर राग’ में अब चीन भी शामिल, पाक के बाद अब ड्रैगन के ना 'पाक' बोल
‘कश्मीर राग’ में अब चीन भी शामिल, पाक के बाद अब ड्रैगन के ना 'पाक' बोल

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । डोकलाम के मुद्दे पर जिस अंदाज में भारत की तरफ से चीन को जवाब दिया गया, उसके बाद वो पूरी तरह से बौखलाया हुआ है। चीन को इस बार शायद उम्मीद नहीं थी कि भारत इतनी दृढ़ता के साथ जवाब देगा। अपने पड़ोसी देशों की जमीन और संसाधनों पर गिद्ध की तरह नजर रखने वाले चीन को अब यकीन हो चला है कि अब भारत को दबाया नहीं जाया सकता है, लिहाजा उसने कश्मीर पर चाल चली। चीन के कुछ विचारकों ने ये कहना शुरू कर दिया कि जिस तरह से भारत, भूटान की दोस्ती का हवाला देकर डोकलाम में उसे सहयोग दे रहा है, ठीक वैसे ही कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान को चीन मदद कर सकता है। 

loksabha election banner

चीनी थिंक टैंक की ना-पाक सोच

चीनी विचार समूह के एक विश्लेषक ने कहा कि जिस तरह भूटान की ओर से सिक्किम सेक्टर के डोकलाम इलाके में सड़क निर्माण से चीनी सेना को भारतीय सेना ने रोका, उसी तर्क का इस्तेमाल करते हुए पाकिस्तान के आग्रह पर कश्मीर में 'तीसरे देश' की सेना घुस सकती है।


चाइना वेस्ट नार्मल यूनिवर्सिटी में भारतीय अध्ययन केंद्र के निदेशक लांग जिंगचुन ने 'ग्लोबल टाइम्स' में लिखे अपने आलेख में कहा है, 'अगर भारत से भूटान के क्षेत्र को बचाने का आग्रह किया भी जाता है तो यह उसके स्थापित क्षेत्र तक हो सकता है, विवादित क्षेत्र के लिए नहीं। भारत के तर्क के हिसाब से अगर पाकिस्तान सरकार अनुरोध करे तो तीसरे देश की सेना भारत नियंत्रित कश्मीर सहित भारत और पाकिस्तान के बीच विवादित क्षेत्र में घुस सकती है।


डोकलाम पर भारतीय रुख की आलोचना

चीन के सरकारी मीडिया ने डोकलाम तकरार पर भारत की आलोचना करते हुए कई आलेख प्रकाशित किए हैं, लेकिन पहली बार संदर्भ में पाकिस्तान और कश्मीर को लाया गया है। भारत के विदेश मंत्रालय की ओर से 30 जून को जारी बयान का जिक्र करते हुए इसमें कहा गया है, भारतीय सैनिकों ने भूटान की मदद के नाम पर चीन के डोकलाम इलाके में प्रवेश किया,लेकिन घुसपैठ का मकसद भूटान का इस्तेमाल करते हुए भारत की मदद करना है।

लंबे समय से भारत अंतरराष्ट्रीय समानता और दूसरों के आतंरिक मामलों में दखल नहीं देने के बारे में बात करता रहा है लेकिन दक्षिण एशिया में उसने आधिपत्य वाली कूटनीति अपनाकर संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र का सरासर उल्लंघन किया है और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के बुनियादी सिद्धांतों को नजरंदाज किया है। इसमें आरोप लगाया गया है, 'सिक्किम में लोगों के आप्रवासन के जरिए आखिरकार सिक्किम संसद पर नियंत्रण कर लिया गया और भारत ने उसे हड़प कर अपने राज्यों में से एक बना लिया।

जानकार की राय

Jagran.com से खास बातचीत में रक्षा मामलों के जानकार राज कादयान ने कहा कि जिस तरह से चीन की तरफ से बयानबाजी हो रही है, वो उनकी हताशा को बयां कर रही है। चीन को ये नहीं भूलना चाहिए डोकलाम के मुद्दे पर वो एक भूटान की संप्रभु सरकार को चुनौती दे रहा है। इसके अलावा कश्मीर की बात कर चीन अब भारत के आंतरिक मामले में दखल दे रहा है। 

'भारत को पूर्वोत्तर इलाका हाथ से निकलने का डर'

चीनी विश्लेषक का कहना है कि डोकलाम में भारतीय घुसपैठ दिखाता है कि उसे डर है कि चीन सैन्य ताकत के जरिए पूर्वोत्तर भारत से मुख्य भारत को अलग कर दो टुकड़े कर सकता है। इस मामले में पूर्वोत्तर भारत मौजूदा अवसर का इस्तेमाल आजाद होने के लिए कर सकता है। भारत ने तिब्बत में चीन के आधारभूत संरचना निर्माण को भारत के खिलाफ भू-राजनैतिक मंशा बताया है।  भारत खुद अपने पूर्वोत्तर हिस्से में ऐसा करने में अक्षम है इसलिए वह चीन को सड़क निर्माण से रोकने का प्रयास कर रहा है। 



भारत का उसके अपने रणनीतिक विचार के आधार पर घुसपैठ अंतरराष्ट्रीय कानूनों का स्पष्ट उल्लंघन है। इसमें दावा किया गया है कि पश्चिमी देश बिना शर्त भारत का समर्थन नहीं करेंगे, क्योंकि चीन के साथ विभिन्न मुद्दों पर उनका 'समान हित' है। आलेख में कहा गया है कि चीन और भूटान के बीच क्षेत्रीय विवाद के तहत दोनों पक्षों द्वारा इसे सुलझाया जाना चाहिए और भारत को भूटान की संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए।

 चीन से लंबा है भारत के टकराव का इतिहास

7 अक्‍टूबर 1950 : ल्‍हासा पर कब्‍जे के लिए चीन ने तिब्‍बत की सीमा लांघी।

23 जनवरी 1959 : चाऊ इन लार्इ ने पहली बार लद्दाख और नेफा के करीब 40 हजार वर्ग मील भारतीय क्षेत्र पर दावा ठोका।

3 अप्रैल 1959 : तिब्‍बत के आध्‍यात्मिक गुरू दलाई लामा को शरण देने से भारत पर भड़का चीन।

8 सितंबर 1959 : भूटान और सिक्किम के करीब 50 हजार वर्ग मील क्षेत्र पर अपना दावा ठोका।

जनवरी 1961 : भारत-चीन सीमा के पश्चिम सेक्‍टर में 12000 वर्ग मील भूमि पर अवैध कब्‍जा किया।

15 नवंबर 1962 : तवांग और वालोंग पर हमला कर बोमडिला पर किया अवैध कब्‍जा।

30 नवंबर 1965 : उत्‍तरी सिक्किम और नेफा में चीन ने की घुसपैठ।

यह भी पढ़ें: कुछ भी कर ले चीन लेकिन यहां पर खानी होगी भारत से शिकस्त


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.