पुराने नोट दोबारा जमा करने के लिए फिर जगी उम्मीद
पांच सौ और एक हजार रुपये के बंद हो चुके नोट जमा कराने से वंचित रह गए लोगों में एक उम्मीद की किरण जगी है।
जाहिद खान
पांच सौ और एक हजार रुपये के बंद हो चुके नोट जमा कराने से वंचित रह गए लोगों में एक उम्मीद की किरण जगी है। सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी के दौरान किसी मजबूरीवश 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट जमा न करा पाए लोगों को एक और मौका दिए जाने पर केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया दोनों से जवाब मांगा है। चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने केंद्र को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा, ‘किसी की मेहनत से कमाई गई वैध रकम को ऐसे कैसे बर्बाद होने दिया जा सकता है? कोई अगर जेल में बंद है तो वह रुपये कैसे जमा कराएगा? यदि ऐसा मौका नहीं दिया जाता तो ये गंभीर मामला है। आप किसी की वाजिब रकम को कैसे बर्बाद होने दे सकते हैं।’ अदालत की यह चिंताएं वाजिब भी हैं।
वाजिब वजह से जो लोग तयशुदा वक्त पर अपने पुराने नोट बैंक में जमा नहीं करा सके हैं, उन्हें अपने ही पैसे से वंचित करने की इजाजत कोई लोकतांत्रिक सरकार कैसे दे सकती है? जबकि यह उनका संवैधानिक अधिकार है। संविधान का अनुच्छेद-21 देश के सभी नागरिकों को जीवन का अधिकार देता है। यह अनुच्छेद उसे सम्मान से जीवन जीने का अधिकार भी देता है। सुधा मिश्र और कुछ अन्य याचिकाकर्ताओं ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाएं दाखिल कर निश्चित अवधि में पैसा जमा न करा पाने की अपनी मजबूरी बताते हुए अदालत से पुराने नोट जमा कराने का निर्देश मांगा था।
मामले की सुनवाई के बाद अदालत को भी याचिकाकर्ताओं की दलील में दम दिखाई दी। लिहाजा उसने सरकार से इस मसले पर संजीदगी से विचार करने को कहा। अब इस मामले की अगली सुनवाई 18 जुलाई को होगी, जिसमें सरकार अपना पक्ष अदालत के सामने रखेगी। पिछले साल 8 नवंबर की शाम को अचानक नोटबंदी का एलान करते हुए देश के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को यह आश्वासन दिया था कि सभी लोग 30 दिसंबर तक बैंक और पोस्ट ऑफिस में पुराने 500 और 1000 के नोट जमा करा सकते हैं।
अगर इस दरमियान कोई पैसे जमा नहीं करा पाता, तो वह कुछ शर्तो के साथ आरबीआइ की शाखाओं में 31 मार्च तक पुराने नोट जमा करा सकता है, लेकिन बाद में सरकार ने नोट जमा कराने की समय सीमा सिर्फ 30 दिसंबर तक ही सीमित कर दी। सरकार की इस वादाखिलाफी से देश में हजारों लोग मुश्किल में फंस गए। नोटबंदी से पीड़ित लोगों के किस्से यदि जानें, तो वह ऐसे हैं कि उन्हें सुनकर पत्थर दिलवालों का भी दिल पसीज जाए। उन्हें उनसे सहानुभूति पैदा हो जाए। मसलन एक याचिकाकर्ता की यह शिकायत है कि वह अपने 66 लाख, 80 हजार रुपये महज इसलिए बैंक में नहीं जमा करा सका, क्योंकि बैंक में उसकी केवाइसी अपडेट नहीं थी और बैंक ने उस वक्त केवाइसी अपडेट करना स्वीकार नहीं किया।
वहीं दूसरी याचिकाकर्ता सुनीता गुप्ता जो कि राजस्थान के अलवर जिले की रहने वाली हैं, उन्हें लंबे समय से लंग्स कैंसर हैं। उनका एम्स में इलाज चल रहा है। जब पुराने नोट बंद किए गए, तब वह कोमा में थीं। तीन महीने बाद वह कोमा से बाहर आईं, तो उन्हें यह मालूम चला कि इलाज के लिए जो उनके पुराने नोट घर में रखे हैं, उनका कोई मोल ही नहीं है। फिर भी आखिरी उम्मीद लेकर सुनीता और उनके पति रिजर्व बैंक पहुंचे, लेकिन गार्ड ने उन्हें अंदर ही नहीं जाने दिया। उन्हें बाहर से ही भगा दिया गया। तीसरी याचिकाकर्ता सुधा मिश्र नोटबंदी के दरमियान अस्पताल में भर्ती थीं। बच्चे को जन्म देने की वजह से वह बंद कर दिए गए नोट जमा नहीं कर सकीं।
अब जब वे ठीक होकर रिजर्व बैंक पहुंची, तो उन्हें भी निराशा हाथ आई। वहीं एक दीगर याचिकाकर्ता 71 साल की सरला श्रीवास्तव का कहना था कि उनके पति की मौत बीते साल अप्रैल में हुई। उन्हें जनवरी में यह बात मालूम चली कि पति के बक्से में 1.79 लाख के पुराने नोट हैं। इसके अलावा देश में तमाम लोग ऐसे मिल जाएंगे, जो नोटबंदी के दरमियान जेल में बंद थे, लिहाजा वे अपने नोट बैंक में जमा नहीं कर पाए। लिहाजा, अपनी जिद छोड़कर केंद्र सरकार और आरबीआइ को भी ऐसी राह निकालना चाहिए, जिससे नोटबंदी से पीड़ित लोगों को राहत मिले।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)