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देश की बड़ी आबादी को अब मिलेगा साफ पानी,एक 'पत्थर' से जगी उम्मीद

अमूमन यह माना जाता है कि हिमालय क्षेत्र के जलस्त्रोत में प्राकृतिक रूप से पानी में आर्सेनिक पाया जाता है।

By Rajesh KumarEdited By: Published: Mon, 27 Nov 2017 07:26 PM (IST)Updated: Tue, 28 Nov 2017 10:11 AM (IST)
देश की बड़ी आबादी को अब मिलेगा साफ पानी,एक 'पत्थर' से जगी उम्मीद
देश की बड़ी आबादी को अब मिलेगा साफ पानी,एक 'पत्थर' से जगी उम्मीद

हंसराज सैनी, मंडी। पत्थर का जिक्र अक्सर भवन या सड़क निर्माण या फिर संवेदनहीनता के संदर्भ में आता है लेकिन एक शोध ने बता दिया है कि पत्थर पानी की गंदगी भी साफ कर सकता है...पर्यावरण को भी स्वच्छ रख सकता है। मजे की बात यह है कि स्कोलेसाइट नाम का यह पत्थर महाराष्ट्र का है...इसने प्रदूषण दूर किया उत्तर प्रदेश के सिंगरौली का... और यह ऐसा कर सकता है, यह पता लगाया आइआइटी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) मंडी ने।

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महाराष्ट्र के अहमदनगर व पुणे के पहाड़ों से निकलने वाला स्कोलेसाइट अब पानी शुद्ध करने के काम आएगा लेकिन यह छोटी-मोटी गंदगी ही साफ नहीं करेगा बल्कि उसे आर्सेनिक, सीसे और पारे से मुक्त करेगा। आइआइटी मंडी के विशेषज्ञों ने इसके पेटेंट के लिए आवेदन भी कर दिया है। आमतौर पर इस पत्थर का उपयोग वहां सड़क निर्माण में होता है। कुछ लोग इसका उपयोग आर्टिफिशियल ज्वेलरी में भी करते हैं।

ऐसे हुई शुरुआत

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने आइआइटी मंडी के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग को दो साल पहले कोयला आधारित उद्योगों के कारण पानी में बढ़ रही आर्सेनिक, सीसे व पारे की मात्रा का पता लगाने के लिए शोध का जिम्मा सौंपा था। विशेषज्ञों ने यह काम उत्तर प्रदेश के सिंगरौली क्षेत्र में किया। यहां एनटीपीसी का करीब 2000 मेगावाट क्षमता का कोयला आधारित बिजली प्लांट है। यहां कई अन्य बड़े उद्योग भी हैं। सिंगरौली क्षेत्र के तालाबों एवं पानी के अन्य स्त्रोतों में आर्सेनिक, शीशे व पारे की मात्रा में लगातार वृद्धि बड़ी चुनौती है।

अमूमन यह माना जाता है कि हिमालय क्षेत्र के जलस्त्रोत में प्राकृतिक रूप से पानी में आर्सेनिक पाया जाता है। लेकिन विशेषज्ञों ने जब इस पर शोध शुरू किया तो यह धारणा गलत निकली। दरअसल विद्युत सन्यंत्र या फिर अन्य उद्योगों में कोयले के उपयोग से निकली वाली राख को खुले स्थान पर फेंक या फिर उसे पानी के साथ मिलाकर बहा दिया जाता है। कोयले को जब जलाया जाता है तो उसमें मौजूद कार्बन पूरी तरह से जल जाता है लेकिन हैवी मेटल नहीं जल पाते हैं।

कोयले के कारण पानी में आर्सेनिक, सीसे व पारे की मात्रा बढऩे का पता चलने पर विशेषज्ञों ने इसे शुद्ध करने के उपाय ढूंढ़े। इसके लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान विभाग के प्रोफेसर सीएस दूबे व एकेएस विश्वविद्यालय सतना (मध्य प्रदेश) के माइनिंग विभाग के डॉ. भूपेंद्र कुमार मिश्रा भी मददगार रहे। करीब एक साल के शोध के बाद विशेषज्ञों ने स्कोलेसाइट पत्थर के पाउडर से आर्सेनिक, सीसे व पारे को पानी से समाप्त उसे पीने योग्य बनाने का तोड़ खोज निकाला।

स्कोलेसाइट :

चट्टानों के तापमान में परिर्वतन से पैदा होने वाले इस पत्थर की लागत बेहद कम है और यह प्राकृतिक रूप से उपलब्ध है।

आर्सेनिकयुक्त पानी के दुष्प्रभाव
चर्म रोग, श्वास रोग, खून की कमी, भूख न लगना, उल्टी, पेट दर्द, लिवर की बीमारियां

एक ग्राम पाउडर से 100 मिलीलीटर पानी साफ
एक ग्राम स्कोलेसाइट पाउडर से 100 मिलीलीटर पानी को आर्सेनिक युक्त किया जा सकता है।

जिओलॉजिकल सोसाइटी ने भी लगाई मुहर

'कोयला आधारित उद्योगों के कारण पानी में आर्सेनिक, शीशे व पारे की समस्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। इसका असर मनुष्य के स्वास्थ्य, मवेशियों व कृषि पर पड़ रहा है। स्कोलेसाइट पत्थर के पाउडर से दूषित पानी को शुद्ध करना अब आसान होगा। इस शोध पर जिओलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया अपनी मुहर लगा चुकी है। स्कोलेसाइट पाउडर के पेटेंट के लिए आवेदन कर दिया है। -डॉ. डिरेक्स पी शुक्ला, सहायक प्रोफेसर, स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग आइआइटी मंडी 


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