ये हैं कटहलमैन, दिवानगी ऐसी कि विलुप्त होने से बचा ली 23 दुर्लभ प्रजातियां, जानें कैसे
लोगों ने जायन को उन बीजों को पानी देते देखा तो उन्हें पागल मान लिया लेकिन असल में यह एक प्रयोग था कटहल की देशी प्रजातियों को बचाने का। आप भी पढ़ें इस कटहल मैन की दिलचस्प स्टोरी
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। यूं तो कुदरत इंसानों को अनगिनत तोहफों से नवाजती है, लेकिन ऐसे बहुत कम ही होते हैं जो कुदरत के लिए कुछ करते हैं। ऐसा ही एक नाम है केआर जायन, जिन्हें केरल में प्वलू जायन यानी कटहलमैन के नाम से भी जाना जाता है। केरल के त्रिशूर जिले के इरिंजालाकुडा के रहने वाले केआर जायन ने जब अपने गृह नगर में खाली पड़े भूखंडों और सड़क किनारे कटहल के बीज डालने शुरू किए तो लोगों ने समझा, होगा कोई जिसकी बुद्धि फिर गई है। इसके बाद जब लोगों ने जायन को उन बीजों को पानी देते देखा तो उन्हें पूरा पागल मान लिया, लेकिन वास्तव में वह एक प्रयोग था। कटहल की देशी प्रजातियों को बचाने का।
23 दुर्लभ किस्में बचाई
केआर जायन KR Jayan ने वर्षों की कोशिशों से कटहल की 23 ऐसी देशी किस्में बचाई हैं, जो कभी लुप्त होने के कगार पर थीं। उनके इस प्रयास को गत माह केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने अवॉर्ड देकर सम्मानित किया है। जायन कटहल को व्यवसाय नहीं, बल्कि मिशन मानते हैं। वह घर आने वालों को यह मुफ्त में देते हैं। जायन को इस बात की खुशी है कि उनके इस प्रयास को हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन से सराहना मिल चुकी है। यहां तक कि केरल के स्कूलों में आठवीं कक्षा के छात्रों को उनके द्वारा लिखी गई अपने कार्यो और अनुभव पर आधारित किताब प्लवू की मूल बातें भी पढ़ाई जाती हैं।
बचपन से हुई जुनून की शुरुआत
बकौल केआर जायन, जब वह कक्षा सात में थे तो गांधी जयंती के अवसर पर उन्होंने अपने दोस्तों के साथ जन सेवा से जुड़ी गतिविधियों में हिस्सा लिया। वहां से वह कटहल का एक पौधा घर ले आए। तभी से उनके दोस्त उन्हें कटहलमैन कहने लगे। यह नाम उनके साथ इस तरह जुड़ गया कि कटहल की देशी प्रजातियों का संरक्षण उनके जीवन का ध्येय बन गया। जायन के मुताबिक, वह अलग-अलग गांवों में जाते और वहां लोगों के बागों में कटहल की विभिन्न किस्मों को पाते। उनमें से जो किस्म दुर्लभ होती, वह उसके बीज अपने साथ ले आते। जहां भी उन्हें खाली और सही स्थान दिख जाता, वह कटहल के देशी बीजों को डालने में लग जाते थे।
रोप चुके हैं 20 हजार से अधिक पौधे
कटहलमैन नाम से मशहूर हो चुके केआर जायन (54) बताते हैं कि वह अब तक कटहल के 20 हजार से अधिक पौधे रोप चुके हैं। इनमें वह सभी पेड़ हैं, जो केरल में कहीं न कहीं पाए जाते हैं। जरा रुकिए, यहां एक चीज है जो पेड़ों की संख्या से भी अधिक अहमियत रखती है और वो है, इनकी प्रजातियां। जायन ने अपने इस अनूठे प्रयास के जरिये कटहल की 23 देशी किस्मों को संरक्षित करने का काम किया है। इनमें थमारा चक्का, रुद्राक्षी, बालून वारिक्का, फुटबॉल वारिक्का, काशुमंगा चक्का, मदालिला चक्का, पदावलीम वरिक्का, थेन वारिक्का, अथिमाधुरम कूज्जा, थंगा चक्का और वक्थान वारिक्का जैसी किस्में शामिल हैं।
रंग लाई मेहनत
कटहल की देशी प्रजातियों को बचाने का बीज जायन के मन में उस समय अंकुरित हुआ, जब शायद वह इस काम की अहमियत को भी ठीक से नहीं जानते थे। जायन ने जगह-जगह से जुटाए इन बीजों को अपनी 0.12 एकड़ भूमि पर रोपा और वर्षों का उनका यह प्रयास अब रंग ला चुका है। कटहल की 23 दुर्लभ किस्में लुप्त होने से बच गईं। जायन के इन प्रयासों को गत माह केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रलय ने सराहा और उन्हें ‘प्लांट जीनोम सेवियर-फारमर रेकग्निशन’ अवॉर्ड से सम्मानित किया।
दुबई में नहीं दिखा कटहल
मलयाली समुदाय के तमाम लोगों की तरह जायन भी कुछ समय के लिए पश्चिम एशिया में रहे। 1995 में दुबई गए जायन ने वहां की एक सुपरमार्केट में काम किया और 2006 में स्वदेश लौटे। बकौल जायन, दुबई में लगभग हर चीज मिल जाएगी, लेकिन कटहल नहीं। जब वह लौटे तो उन्होंने त्रिशूर के कस्बों में ऑटो से घूम-घूम कर मोमबत्तियां, साबुन आदि चीजें बेचने का काम किया। यह चीजें महिलाओं के स्वयं सहायता समूह कुदुंबश्री की होती थीं। इस काम के साथ ही उन्होंने कटहल के बीजों को भी रोपना शुरू कर दिया। उन्होंने शोरनुर रेलवे जंक्शन, त्रिशूर सरकारी मेडिकल कॉलेज और पलक्कड़ के पास चित्तूर में गवर्नमेंट कॉलेज में भी इन बीजों को रोपा। वह कटहल को रोपने के लिए महाराष्ट्र के वर्धा स्थित महात्मा गांधी सेवाग्राम आश्रम तक गए।
कुदरती तरीके ही सर्वश्रेष्ठ
वर्तमान में वनस्पतियों की नई प्रजातियों को तैयार करने के लिए जिन वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जा रहा है जायन उनके आलोचक हैं। उनके मुताबिक, ये तरीके हमारे पूर्वजों द्वारा अपनाए जाने वाले तरीकों से इतर और अप्राकृतिक हैं। जायन बीज को स्पर्म और धरती को गर्भ मानते हैं। जायन के मुताबिक, कटहल के बीजों को निकालकर उन्हें मिट्टी में रोपने से पौधों के अंकुरित होने, बढ़ने और उन पर फल लगने में पांच से आठ साल लग जाते हैं और ऐसे पेड़ 150 वर्ष तक जीवित रहते हैं। वहीं, कृत्रिम विधियों के जरिये भले ही तीन वर्ष में फल मिलने लगते हैं, लेकिन इनकी आयु मात्र आठ वर्ष की रहती है। यह काम टेस्ट ट्यूब बेबी की तरह अप्राकृतिक है।
इस पेड़ का हर हिस्सा उपयोगी
जायन कटहल को कल्पवृक्ष कहते हैं। उनके मुताबिक, इसका हर हिस्सा उपयोगी है, जिसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए। उनके मुताबिक, जो लोग कटहल के बीज यह सोचकर फेंक देते हैं कि इनसे गैस होती है, वे शायद इनके कैंसर रोधी गुणों से अनजान हैं। इसके पेड़ की सूखी हुई पत्तियों का औषधीय महत्व है। वहीं, पेड़ की छाल से बने पाउडर का प्रयोग पेड़ों की सूजन को दूर करने में किया जा सकता है। इसकी लकड़ी फर्नीचर और इमारतों में प्रयोग होने वाले मैटेरियल में प्रयोग की जाती है। इसकी लकड़ी के पाउडर का प्रयोग खाड़ी देशों में खाने में कुदरती रूप से रंग लाने में किया जाता है। इतना ही नहीं, कटहल से ऐसी बबल गम भी बनाई जा सकती है, जिसे चबाने के बाद निगल भी लिया जाए तो इससे कोई नुकसान नहीं होता।