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ईयू ने यूरोपीय संसद में सीएए प्रस्ताव से खुद को किया अलग, फ्रांस खुल कर आया भारत के साथ

फ्रांस का मानना है कि नया नागरिकता कानून (सीएए) भारत का एक आतंरिक राजनीतिक विषय है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Mon, 27 Jan 2020 07:04 PM (IST)Updated: Mon, 27 Jan 2020 09:51 PM (IST)
ईयू ने यूरोपीय संसद में सीएए प्रस्ताव से खुद को किया अलग, फ्रांस खुल कर आया भारत के साथ

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। यूरोपीय संघ (ईयू) ने यूरोपीय संसद में विभिन्न राजनीतिक दलों की तरफ से पेश नागरिक संशोधन कानून (सीएए) पर बहस व वोटिंग से अपने आपको अलग कर दिया है। यूरोपीय संघ के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि यूरोपीय संसद में जो विचार व्यक्त किये जाते हैं या इसके सदस्य जो विचार सामने रखते हैं वह जरुरी नहीं है कि ईयू के अधिकारिक विचार हो। संघ ने 13 मार्च को ब्रूसेल्स में भारत और ईयू की 15 वीं बैठक का जिक्र करते हुए कहा है कि भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करना जरुरी है।

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यूरोपीय संघ का एक प्रमुख देश फ्रांस भारत के साथ

भारत के लिए यह भी काफी राहत की बात है कि यूरोपीय संघ का एक प्रमुख देश फ्रांस भी उसके साथ आता दिख रहा है। फ्रांस के नई दिल्ली स्थित दूतावास के कूटनीतिक सूत्रों के मुताबिक-' हमने पहले भी कहा है और आज फिर दोहरा रहे हैं कि सीएए भारत का आतंरिक कानूनी मामला मानता है और आगे हमारा जो भी कदम होगा इसी सोच के साथ होगा।' फ्रांस ईयू के संस्थापक देशों में है और उसका खुल कर साथ मिलने से भारत के लिए यूरोपीय संसद के सदस्यों के सामने अपनी बात रखने में मजबूती आएगी।

29 जनवरी को CAA पर होगी चर्चा, 30 को वोटिंग

यूरोपीय संघ के आधिकारिक बयान और फ्रांस के साथ आने के बावजूद यूरोपीय संसद से जो सूचनाएं अभी तक आ रही है उसके मुताबिक वहां 29 जनवरी, 2020 को सीएए, एनआरसी व जम्मू व कश्मीर पर चर्चा होगी और 30 जनवरी, 2020 को इस पर वोटिंग भी होगी। यूरोपीय संसद के विभिन्न संसदीय दलों ने सीएए को लेकर छह प्रस्ताव सदन पटल पर रखे हैं। कमोबेश सभी प्रस्ताव भारत सरकार के सीएए को लेकर उठाये गये कदमों की निंदा करते हैं।

भारत को लेकर ईयू में कभी नहीं आया इतना बड़ा प्रस्ताव

सबसे ज्यादा निंदनीय प्रस्ताव 154 सांसदों वाली एसएंडडी समूह की तरफ से रखी गई है। इसमें कहा गया है कि सीएए की वजह से दुनिया की सबसे बड़ा नागरिकता संबंधी समस्या को पैदा करने की क्षमता रखता है। 182 सांसदों वालों ईपीपी समूह ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि सीएए भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को काफी नुकसान पहुंचाएगा। यूरोपीय संसद में 751 सांसदों में से 600 सांसदों ने इन प्रस्तावों का समर्थन किया है। अभी तक भारत को लेकर कभी भी इतना बड़ा प्रस्ताव ईयू में नहीं आया है।

भारत अपने रुख पर कायम

उधर भारत का रुख भी नरम होता नहीं दिख रहा। भारतीय विदेश मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, सीएए एक ऐसा मुद्दा है जो पूरी तरह से भारत का आतंरिक मामला है। इसे एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत आगे बढ़ाया गया है। दोनो सदनों में इस पर बहस हुई है। कोई भी देश जब नागरिकता देता है तो उसके लिए कुछ शर्त तय करता है। सीएए किसी भी तरह से विभेद नहीं करता। असलियत में यूरोपीय संघ के भी कुछ सदस्य देश इस तरह के नियमों का पालन करते हैं। हमें उम्मीद है कि यूरोपीय संसद में इस प्रस्ताव को लाने वाले इस बारे में भारत से विमर्श करेंगे और स्थिति की सही जानकारी लेंगे।

यूरोपीय संघ का संसद स्वयं ही एक लोकतांत्रिक संस्था है और उसे कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जो दूसरी लोकतांत्रिक व्यवस्था के अधिकार पर सवाल उठाये। भारत को इस बात की चिंता है कि यूरोपीय संघ में भारी बहुमत से पास होने वाला प्रस्ताव उसकी छवि को ना सिर्फ नुकसान पहुंचाएगा बल्कि यूरोप में उसके रणनीतिक व आर्थिक हितों पर चोट करेगा।

13 मार्च को भारत-ईयू के बीच होगी अहम बैठक

ईयू भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार व भारत से सबसे ज्यादा सामान आयात करने वाला समूह है। 13 मार्च, 2020 को दोनो देशों की अहम बैठक भी है। कहने की जरुरत नहीं कि भारत ने इस बारे में अपना कूटनीतिक विमर्श तेज कर दिया है। इसका असर यूरोपीय संघ की तरफ से जारी बयान में दिखा जिसने भारत की चिंताओं को दूर करने की कोशिश की। संघ के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि, ''यूरोपीय संसद भारत सरकार की तरफ से तैयार एक कानून पर बहस करने पर विचार कर रही है।

CAA पर दिसंबर में बना कानून

यह कानून दिसंबर, 2019 में बना है जो कुछ पड़ोसी देशों से आने वाले कुछ खास धार्मिक समुदाय के लोगों को तेजी से से नागरिकता देता है। सुप्रीम कोर्ट इस पर विचार कर रहा है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यह एक सामान्य प्रक्रिया है जिसमें प्रस्ताव के मसौदे को जारी किया गया है। भारत ईयू के एक अहम रणनीतिक साझेदार देश है जो वैश्विक चुनौतियों को देखते हुए और दुनिया में कानून सम्मत व्यवस्था कायम करने के लिए जरुरी है। मैं यह भी याद दिलाना चाहूंगा कि यूरोपीय संसद की तरफ से व्यक्त विचार या किसी सांसद की तरफ से व्यक्त विचार यूरोपीय संघ के आधिकारिक स्थिति को प्रस्तुत नहीं करते।''


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