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महिलाओं के लिए फ्रीडम बनाए रखना बेहद जरूरी, विचारों के प्रवाह को न रोकें: किरण नाडर

किरण नाडर ने हर कदम पति का साथ दिया लेकिन अपनी पहचान कभी गुम नहीं होने दी।

By Manish PandeyEdited By: Published: Wed, 17 Jul 2019 03:51 PM (IST)Updated: Wed, 17 Jul 2019 07:16 PM (IST)
महिलाओं के लिए फ्रीडम बनाए रखना बेहद जरूरी, विचारों के प्रवाह को न रोकें: किरण नाडर

नई दिल्ली, यशा माथुर। कला के प्रति अपनी रुचि को म्यूजियम बनाने तक लेकर आ गई हैं किरण नाडर। जब उनके पास कला का भंडार बढऩे लगा तो उसे कहीं रख देने से बेहतर उन्हें लगा कि वे इसे लोगों के सामने लाएं और उनमें कला के प्रति प्यार जगाएं। आज वे अपने प्राइवेट म्यूजियम की जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही हैं। ब्रिज खेलने के उनके शौक ने भी उन्हें पेशेवर खिलाड़ी बनाया। हाल ही में वेनिस बिनाले में आठ साल बाद इंडिया पैवेलियन लगा। इसकी जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेने वाली किरण नाडर बिलेनियर शिव नाडर की पत्नी हैं। उन्होंने हर कदम पति का साथ दिया लेकिन अपनी पहचान कभी गुम नहीं होने दी...

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हाल ही में आप भारत की कला लेकर वेनिस गई थीं। क्या उद्देश्य था इसका?

वेनिस बिनाले में करीब सौ-डेढ़ सौ देशों के पैवेलियन होते हैं। छोटे-छोटे देशों के पैवेलियन थे वहां लेकिन हमारा पैवेलियन पिछले आठ साल से नहीं था। मुझे यह अच्छा नहीं लगता था। हम चाहते थे कि वेनिस में भारत का पैवेलियन हो। कला तो हमारी विरासत में है और भारत की कला को पूरी दुनिया में खासा महत्व दिया जाता है। कितने सालों का समर्पण है हमारा कला के प्रति। हमने बहुत चाहा था कि यह फिर से लगना शुरू हो। जब सीआइआइ (कनफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री) ने सरकार के साथ इस बारे में सोचा तो हमें सहयोग के लिए कहा और हमने इसे स्वीकार किया।

क्या है वेनिस बिनाले और भारत की ओर से आप कैसी कलाकृतियां लेकर गईं?

दरअसल, वेनिस बिनाले दुनिया की एक बड़ी इंटरनेशनल आर्ट एक्जीबिशन है, जो करीब डेढ़ सौ साल से चल रही है। कंटेपरेरी आर्ट में इसका बड़ा नाम है। इसमें आठ साल बाद इंडिया पैवेलियन लगा था। इसे हमने पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के साथ सेटअप किया। भारत के संस्कृति मंत्रालय, सीआइआइ और किरण नाडर म्यूजियम ऑफ आट्र्स ने मिलकर यह काम किया। यह एक चुनौती थी। जगह हमें सरकार ने उपलब्ध करवाई और बाकी खर्चे हमने खुद वहन किए। महात्मा गांधी की डेढ़ सौवीं जयंती की थीम पर हमने कला प्रदर्शित की। हमारा टॉपिक था 'ए टाइम फॉर फ्यूचर केयरिंग'। यह बायोपिक नहीं था। हमने गांधी जी की फिलॉसफी और उनके आइडियाज दिखाने की कोशिश की थी। कलाकारों ने इसे अपने ढंग से प्रदर्शित किया।

एक प्राइवेट म्यूजियम बनाने की शुरुआत कहां से हुई? इसमें किस तरह की मुश्किलें आईं?

म झे लगता है कि सरकार हर जिम्मेदारी नहीं ले सकती। हम लोगों को भी कुछ भार उठाना होगा। मेरे पास कला का कलेक्शन काफी सालों से बढ़ रहा था। मुझे लगा कि स्टोरेज में डालने से अच्छा है कि इसे लोगों के सामने लाऊं। उनमें कला के प्रति रुचि जगाऊं। इसमें जिम्मेदारियां बहुत ज्यादा हैं। भारत में लोग कला में इतनी रुचि नहीं रखते हैं। उन्हें म्यूजियम शोज में लाने के लिए काफी कोशिश करनी पड़ती है। हम सेमिनार करते हैं, वर्कशॉप करते हैं। स्कूलों में कार्यक्रम लेकर जाते हैं। हम चाहते हैं कि लोग जागरूक हों और कला में ज्यादा रुचि दिखाएं। धीरे-धीरे यह बढ़ रहा है लेकिन अभी समय लगेगा। दिल्ली जैसे शहरों में भी म्यूजियम के प्रति लोगों में रुचि बहुत कम है।

भारत में कला के परिदृश्य को आप किस प्रकार देखती हैं?

पहले भारत की कंटेपरेरी आर्ट की कीमतें विश्व बाजार में काफी ज्यादा थीं लेकिन वर्ष 2008 में लेहमन ब्रदर्स क्रैश हुआ तो कीमतें गिर गईं। उस समय लोगों को काफी नुकसान हुआ और कला व्यवसाय में उनकी रुचि घट गई। भारत की कला को दो भागों में बांट सकते हैं, एक तो मॉडर्न आर्ट जिसमें हुसैन, रजा और सूजा जैसे कलाकारों की गिनती होती है और दूसरा, कंटेपरेरी यानी युवा कलाकारों की कला। मॉडर्न आर्ट की कीमतें तो अब बढ़ गई हैं लेकिन कंटेपरेरी आर्ट अभी भी मंदी के दौर में है। उस समय चीन की कला की कीमतें भी काफी गिर गई थीं लेकिन आज वे हमसे पचास गुना ऊपर हैं। वे इस संकट से उबर गए हैं। सिर्फ बीजिंग में ही करीब सौ प्राइवेट म्यूजियम हैं। वहां की सरकार कला को काफी सपोर्ट करती है। यहां भी सरकार के सहयोग के बिना इस सेक्टर का ऊपर आना मुश्किल लग रहा है। सरकारी म्यूजियम्स में भी कला के अद्भुत नमूने हैं लेकिन वे ठीक तरीके से सामने नहीं आ पाए हैं।

कला की तरफ आपका रुझान काफी है। क्या बचपन से ही कला में रुचि रही है?

पिछले तीस सालों से मैं कला संग्रहित कर रही हूं। बचपन में कला में थोड़ी रुचि थी लेकिन ऐसा कभी नहीं सोचा था कि इतनी बड़ी आर्ट कलेक्टर बन जाऊंगी और एक म्यूजियम बनाऊंगी। कोई तीस साल पहले जब मैं और मेरे पति शिव नाडर अपना घर बना रहे थे तो मैंने उस समय घर के लिए कला के कई पीस खरीदे थे। उस समय कई लोगों से मिली जो काफी प्रेरणादायक थे। मेरे पास दीवार पर जगह कम थी और मैं कला के पीस खरीदती जा रही थी। यहां तक कि मैंने पति के दफ्तर की दीवारों पर पेंटिंग्स लगाईं। मेरे पति काफी सपोर्टिव हैं। उन्होंने कभी नहीं कहा कि इन्हें मत खरीदो। मेरी रुचि कला में बढ़ती जा रही थी कि एक दिन मुझे लगा कि केवल सराहना के लिए कला को इकट्ठा कर रखना जायज नहीं है। इसे लोगों के सामने ले जाना चाहिए।

कला में महिलाओं की यात्रा को किस प्रकार देखती हैं?

भारत में कला हमेशा से मेल डोमिनेटेड फील्ड था। अब महिलाएं आगे आने लगी हैं। हाल में हमने अपने म्यूजियम में अर्पिता सिंह और नसरीन मोहमदी का शो किया था। अमृता शेरगिल जैसी बहुत सी कलाकार इस फील्ड में बहुत आगे आईं। इन्हें संघर्ष के बाद ही आगे का रास्ता मिला है। महिलाओं का संघर्ष बहुत ज्यादा रहा है लेकिन आज वे कला के क्षेत्र में प्रगति कर चुकी हैं।

 

आप ब्रिज की प्रोफेशनल खिलाड़ी हैं। ताश के इस गेम में कहां तक पहुंचीं और यह खेल कैसे आपको मदद करता है?

ब्रिज में मैं आज भी प्रोफेशनल हूं। ब्रिज मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। ब्रिज से मुझे मानसिक मजबूती मिलती है और प्रतियोगितात्मक सोच बनती है। पहले पति भी मेरे साथ ब्रिज खेलते थे लेकिन अब वे अपने काम में ज्यादा व्यस्त हो गए हैं इसलिए नहीं खेलते। मेरे तीन शौक हैं। एक, तो कला और म्यूजियम, दूसरा, ब्रिज और तीसरा, मैं हर खेल को लाइव देखती हूं। क्रिकेट विश्व कप के दौरान लंदन में रहूंगी। आज से पहले भी मैंने लगभग सारे क्रिकेट वल्र्ड कप देखे हैं। मैं विंबलडन देखती हूं। फुटबॉल वल्र्ड कप भी देखती हूं। खेलों में मेरी बहुत रुचि है।

आप ऑनलाइन भी ब्रिज खेलती हैं?

हां, मैं ऑनलाइन भी ब्रिज खेलती हूं। मेरे पार्टनर तो दिल्ली में हैं लेकिन हमारी टीम के अन्य लोग बाहर हैं। कोई अहमदाबाद में है तो कोई कोलकाता में। उनके साथ ऑनलाइन प्रैक्टिस करती हूं। ब्रिज में हमने करीब आठ नेशनल और इंटरनेशनल खिताब जीते हैं। एशियन गेम्स में कांस्य जीता। वल्र्ड कप में दो बार क्वार्टर फाइनल में आ चुके हैं। हम दिल्ली में एचसीएल ब्रिज टूर्नामेंट करवाते हैं । इसमें डेढ़ सौ के करीब टीमें आती हैं। हम स्कूलों और कॉलेजों में भी इस खेल को ले जाना चाहते हैं।

पति शिव नाडर ने एचसीएल टेक्नोलॉजी की शुरुआत कैसे की? आप उनके संघर्षों की कितनी साक्षी रही हैं?

मेरी शादी के छह महीने बाद उन्होंने माइक्रोकॉम शुरू किया और उसके एक साल बाद एचसीएल शुरू किया। बहुत छोटी कंपनी थी। निवेश भी कम था। दफ्तर भी बहुत छोटा था। दो कमरे की बरसाती थी हमारे पास, जिसमें उनका दफ्तर था। छोटी सी स्टील की टेबल थी। एक तरीके से गैराज में शुरू हुआ था एचसीएल। उस समय कंपनी को बहुत टाइम देना पड़ता था। लेकिन हमने कभी नहीं सोचा था कि यह कंपनी इस स्तर पर आएगी।

संघर्ष के दिनों में क्या कोई कमी महसूस हुई?

मैं उस समय अपना काम कर रही थी और मुझे कभी कोई कमी नहीं लगती थी। शादी के बाद मुझे घर ढूंढऩे की मुश्किल थी बस। बहुत मुश्किल के बाद एक अच्छा घर मिला था। वह घर हमें कंपनी की लीज पर मिल गया। जब पति कंपनी छोड़ रहे थे तो मुझे किसी और बात की चिंता नहीं थी बस घर छोडऩे की फिक्र थी। मकान मालिक ने बोला कि मैं प्राइवेट आदमी को मकान किराए पर नहीं दूंगा कंपनी लीज पर ही दूंगा। इसके बाद हमें बहुत मुश्किल से एक घर मिला था। पति ने कहा था कि जितनी लीज पर हमारा पहले वाला घर था उतने ही पैसों में अब घर लेना है। उस समय साढ़े 1200 रुपये की लीज पर था वह घर। नए घर में मकान मकान मालिक ने साढ़े 13 सौ रुपये मांगे। मुझे वह घर लेना था और मेरे बैंक अकाउंट में दस हजार रुपये ही थे। मैंने वे पैसे उनको दिए और कहा कि आपको हर महीने सौ रुपये ब्याज मिल जाएगा और आपके साढ़े तेरह सौ रुपए पूरे हो जाएंगे पति बारह सौ में घर लेने की कह चुके थे और मुझे यह घर पसंद था। जानते हैं वह मकान मालिक कौन थे। वह विनीत नैयर हैं जो अब टेक मङ्क्षहद्रा के मालिक हैं। आज वे हमारे बहुत अच्छे दोस्त हैं और प्रोफेशनल राइवल भी। उन्होंने मेरे पति के साथ एचसीएल में काम किया था। वे वल्र्ड बैंक में थे और फिर उन्होंने टेक मङ्क्षहद्रा शुरू की।

आपका स्ट्रगल कैसा रहा?

स्ट्रगल सबका होता है। हर एक की अपनी चुनौतियां होती हैं। मैं नॉर्थ इंडिया की पंजाबी हूं और पति दक्षिण भारत के तमिल हैं। वे दिल्ली में डीसीएम के साथ काम करते थे और मैं एक एड एजेंसी में। वे हमारे क्लाइंट थे। उसी दौरान हम मिले। हम दोनों ब्रिज खेलते थे। और इसी में हमारी दोस्ती हुई और फिर शादी हुई। मैंने और मेरे पति ने जो हासिल किया है वह खुद से बनाया है। हमें विरासत में कुछ नहीं मिला। उस समय उन्होंने काम पर बहुत ध्यान दिया। उस समय मुझे यह नहीं पता था कि हम यहां तक आएंगे। बस ऐसा लगता था कि जिंदगी अच्छी तरह चले। छोटी जगह में रहते थे। ज्यादा पैसा नहीं था। लेकिन उस समय जिंदगी बहुत सरल थी। कोई जटिलता नहीं थी। मुझे सेहत की परेशानी रही है। सेहत ठीक रखना मुश्किल था। सब कहते हैं कि आपके पास तो सबकुछ है। लेकिन सभी को सब कुछ नहीं मिलता। किसी को जमीं तो किसी को आसमां नहीं मिलता।

इस उम्र में भी आप काफी एक्टिव रहती हैं। इस फिटनेस का राज क्या है?

मैं फिट बिल्कुल नहीं हूं। हां, एक्टिव हूं। फिटनेस के लिए अभी मुझे ज्यादा काम करना चाहिए। मैं समझती हूं कि मेंटल फिटनेस जरूरी है। एकाग्रता के लिए मेंटल फिटनेस महत्वपूर्ण है। वेनिस बिनाले में बहुत काम था। 1983 में मैंने पहला क्रिकेट वल्र्ड कप देखा था। खेल मुझे खुश रखता है। मेरा मानना है कि कोई न कोई रुचि जरूर होनी चाहिए ताकि जिंदगी में बोरियत न महसूस हो। मेरे दो नाती हैं। उनके साथ मैं रोज समय गुजारती हूं। एक सात साल का है और एक तीन का। जितना समय उनके साथ बिताती हूं उतना मैंने शायद अपनी बेटी रोशनी के साथ भी नहीं बिताया होगा। मैं एडवर्टाइजिंग में थी। मैंने अपनी मां के साथ एक गारमेंट फैक्ट्री शुरू की थी। मैं एनआइआइटी में भी काम कर रही थी। जब रोशनी ढाई साल की थी तो मैंने काम छोड़ दिया था। मुझे लगा कि उसे मेरी जरूरत है। उस समय मेरे पास समय था तो मैंने पेशेवर के रूप में ब्रिज खेलना शुरू कर दिया।

समाज के प्रति अपने योगदान को कैसे परिभाषित करेंगी?

हमारा शिव नाडर फाउंडेशन है जिसके जरिए हम बहुत से सामाजिक कामों में जुटे हैं। हम भारत के बड़े फिलॉन्थ्रेपिस्ट हैं। हम शिक्षा के क्षेत्र में बहुत काम कर रहे हैं। हमारे दो विश्वविद्यालय हैं। हमारे विद्याज्ञान स्कूल कार्यक्रम के तहत ग्रामीण प्रतिभाशाली बच्चों को पूरी स्कॉलरशिप दी जाती है। इसका स्तर किसी बड़े बोर्डिंग स्कूल से कम नहीं है लेकिन यह बिल्कुल फ्री है। इनमें से पांच बैच ग्रेजुएट हो गए हैं। काफी बच्चे अमेरिका गए हैं पढऩे के लिए। ये बच्चे पिछड़े व गरीब वर्ग से आते हैं। तीन शिव नाडर स्कूल हैं। इसके अलावा हम 'शिक्षाÓ कार्यक्रम करते हैं। हम मॉडल विलेज के लिए 'समुदाय' कार्यक्रम करते हैं। हम ऐसा मॉडर्न विलेज बनाकर सरकार को देना चाहते हैं जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी हर सुविधा हो। हम म्यूजियम के जरिए लोगों को कला के लिए जागरूक कर रहे हैं।

संगिनी पढऩे वाली महिलाओं को क्या कहना चाहेंगी?

अपना फ्रीडम बनाए रखें। आजकल वोटिंग में भी महिलाएं अपना मत अपनी मर्जी से डाल रही हैं। अपनी पहचान बनाए रखने की कोशिश रहनी चाहिए। अपने दिमाग को खाली रखें, ताकि विचारों का प्रवाह बना रहे। फ्रीडम ऑफ थॉट जरूरी है। भारत में रहते हुए हमें घर का काम करना है, बच्चों को संभालना है लेकिन अपने लिए समय जरूर निकालें और विचार को खुलकर आने दें।


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