कोरोना के दौरान खेती भी प्रभावित, वैज्ञानिकों के सहारे कृषि क्षेत्र की चुनौतियों से निपटना आसान
इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर) के 92वें स्थापना दिवस पर आयोजित समारोह में कृषि क्षेत्र को सरकार की ओर से मिल रही तरजीह पर प्रसन्नता जताई गई।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी होने के लिए कम लागत से अधिक उत्पादन और गुणवत्ता बहुत जरूरी है। कोरोना संकट के दौरान दुनियाभर में खेती से जुड़ी गतिविधियां भी प्रभावित हुई, उनकी वैज्ञानिक अनुसंधान भी ठप रहे। इस दौर में भी घरेलू संस्थानों में हुए काम और किसानों की मेहनत के बूते देश की खाद्य सुरक्षा महफूज रही। इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर) के 92वें स्थापना दिवस पर आयोजित समारोह में कृषि क्षेत्र को सरकार की ओर से मिल रही तरजीह पर प्रसन्नता जताई गई।
स्थापना दिवस पर कृषि क्षेत्र के समक्ष पैदा हुई चुनौतियों को लेकर लंबी चर्चा हुई। सभी ने एक सुर में कहा कि कृषि वैज्ञानिकों के अनुसंधान के सहारे इससे निपटना आसान होगा। इसके लिए कृषि क्षेत्र में ऐसे अनुसंधान की जरूरत है, जो खेती की लागत को घटाकर उत्पादकता में वृद्धि कर सके। वैश्विक बाजार में घरेलू कृषि उत्पादों की मांग होने लगी है, लेकिन इन बाजारों में टिके रहने के लिए प्रतिस्पर्धी होना बहुत जरूरी होगा। आइसीएआर का यह पहला वर्चुअल स्थापना दिवस मनाया गया, जिसमें देश के सभी कृषि विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलर, वरिष्ठ वैज्ञानिक और कृषि मंत्रालय के आला अफसरों समेत केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह और उनके राज्य मंत्रियों ने हिस्सा लिया।
कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि कृषि की मजबूत बुनियाद से ही ग्रामीण विकास संभव है। आम बजट में कृषि क्षेत्र को मिलने वाली तरजीह का जिक्र करते हुए तोमर ने कहा कि इसकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा कानूनी प्रावधान थे, जिन्हें हटा दिया गया अथवा सरल बना दिया गया है। खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर होने के बावजूद खाद्य तेलों की जरूरतें आयात से पूरी होती हैं। वैज्ञानिकों से इस दिशा में और बेहतर अनुसंधान की अपेक्षा की गई। खाद्य तेल की कुल जरूरतों का 70 फीसद हिस्सा आयात किया जाता है, जिस पर लगभग एक लाख करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ती है।
कृषि व्यापार को सरल और सहज बनाने के कानूनी सुधार की प्रशंसा की गई। इस मौके पर आइसीएआर के 90 सालों की उपलब्धियों का जमकर बखान भी किया गया। कृषि राज्यमंत्री परसोत्तम रुपाला ने कृषि मशीनरी और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग क्षेत्र में पिछड़ेपन को सबसे बड़ी चुनौती करार देते हुए वैज्ञानिकों से किसानों की जमीनी जरूरत को समझने की नसीहत दी।