अंतिम समय में GSLV Mk-III में गड़बड़ी का पता लगाना ISRO की विफलता नहीं, सफलता है
बाहुबली रॉकेट में गड़बड़ी के चलते आखिरी पलों में चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण टलने से इसरो के भविष्य के अभियानों को लेकर भी शंकाएं पैदा होने लगी हैं।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। इसरो के जीएसएलवी एमके 3 में मिशन चंद्रयान-2 से पहले आई गड़बड़ी भले ही चिंता की बात हो सकती है, लेकिन इसको इसरो या मिशन की विफलता कहना सही नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि इस तरह की खामी केवल भारत के ही मिशन में हुई हो, इससे पहले नासा के कुछ मिशन को भी खामियों की वजह से स्थगित करना पड़ा है। आपको बता दें कि इसरो के इसी यान से 2020 में सूर्य अभियान, 2022 में गगनयान और 2023 में वीनस अभियान होना है।
यहां पर ये भी गौर करने वाली बात है कि यदि समय रहते यान की खामी नहीं पकड़ी जाती तो भारत के अरबों रुपये स्वाहा हो जाते और वैज्ञानिकों को अगले मिशन के लिए लंबा वक्त लग सकता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। जानकार भी इस बात से इत्तफाक रखते हैं कि अंतिम समय पर खामी का पता लगा लेना भी एक बड़ी सफलता है। इसके लिए इसरो वैज्ञानिकों की तारीफ होनी चाहिए। हालांकि, अच्छी बात यह है कि खामी बहुत छोटी बताई जा रही है। अधिकारियों का कहना है कि बाहुबली को जल्द ही लॉन्चिंग के लिए तैयार कर लिया जाएगा।
विफल रहे हैं कई चंद्र अभियान
नासा के मुताबिक, पिछले छह दशकों में से 109 चंद्र अभियानों में 61 सफल हुए हैं और 48 विफल रहे। इसरो के पूर्व प्रमुख माधवन नायर के मुताबिक, चंद्र अभियानों की सफलता की दर करीब 60 फीसद रही है। 1958 से लेकर 2019 तक भारत के साथ ही अमेरिका, यूएसएसआर (अब रूस), जापान, यूरोपीय संघ और चीन ने विभिन्न चंद्र अभियानों को अंजाम दिया है।
अभी संभव नहीं प्रक्षेपण
मिशन कंट्रोल सेंटर की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि मौजूदा लॉन्च विंडो के तहत अभी चंद्रयान-2 का प्रक्षेपण संभव नहीं है। प्रक्षेपण की अगली तारीख की घोषणा बाद में की जाएगी।
क्या रही गड़बड़ी
इसरो के एक अधिकारी के मुताबिक, तरल ऑक्सीजन और तरल हाइड्रोजन (ईंधन) भरने के बाद इंजन में हीलियम भरा जा रहा था। हीलियम भरने के बाद, टीम ने पाया कि दबाव गिरने लगा है। यह किसी रिसाव का संकेत था। हालांकि, अभी सटीक कारण को लेकर कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है।
अमेरिका ने बनाई थी पहली योजना
चंद्रमा तक पहले मिशन की योजना 17 अगस्त, 1958 में अमेरिका ने बनाई थी, लेकिन ‘पायनियर-0’ का प्रक्षेपण असफल रहा। पहली सफलता छह विफल अभियानों के बाद मिली। पहला सफल अभियान लूना-1 था, जिसका प्रक्षेपण सोवियत संघ ने चार जनवरी, 1959 को किया था।