...तो क्या 2 से 4 माह का समय कोरोना के मामलों में है बेहद खास? देखें आंकड़ों का विश्लेषण
कोरोना प्रभावित दुनिया के दस देशों के आंकड़े बताते हैं कि ज्यादातर देशों में दो से चार माह का समय बेहद खास रहा है। इस दौरान मामले बढ़े और फिर घटे हैं। कुछ देश इसमें अपवाद हैं।
नई दिल्ली (जेएनएन)। पूरी दुनिया में छह माह के बाद भी कोरोना संकट बना हुआ है। दुनिया के कुछ देशों में में कोरोना वायरस का कहर कम जरूर हुआ है लेकिन ये पूरी तरह वहां भी खत्म नहीं हुआ है। वर्ल्डओमीटर डॉट इंफो के मुताबिक पूरी दुनिया में सोमवार सुबह तक कोरोना संक्रमण के 7086740 मामले सामने आ चुके थे। वहीं इसकी वजह से अब तक मारे गए मरीजों की संख्या 406127 तक पहुंच चुकी है। पूरी दुनिया में 3460171 मरीज ठीक भी हुए हैं। यदि पूरी दुनिया में इसके एक्टिव मामलों की बात की जाए तो इनकी संख्या 3220442 है जिनमें से 52 हजार से अधिक मरीजों की हालत गंभीर है।
कोरोना प्रभावित टॉप-10 देश
कोरोना प्रभावित दुनिया के टॉप -10 देशों के आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद एक रोचक जानकारी सामने निकलकर आई है। इसके मुताबिक वर्तमान में इस सूची में शामिल तीन देश ऐसे हैं जो कुछ समय पहले ही टॉप-10 देशों में शामिल हुए हैं। इनमें से एक ब्राजील, दूसरा पेरू और तीसरा भारत है। इनके अलावा इस सूची में शामिल सभी देश वो हैं जो काफी समय से इसके टॉप-10 में शामिल रहे हैं। इनमें अमेरिका, ब्राजील, रूस, स्पेन, ब्रिटेन, इटली, पेरू, जर्मनी और ईरान का नाम शामिल है।
ब्राजील और पेरू पर नजर
इन आंकड़ों से मिली जानकारी के मुताबिक कई देशों में कोरोना वायरस का पहला मामला सामने आने के दो से तीन माह के अंदर मामले लगातार बढ़े और इस दौरान शीर्ष पर पहुंचने के बाद उनमें लगातार कमी आई है। इस तरह के संकेत देने वाले देशों में स्पेन, ब्रिटेन, जर्मनी, तुर्की, इटली का नाम शामिल है। वहीं इस सूची में शामिल भारत में इसका पहला मामला सामने आने के चार माह बाद भी लगातार मामले बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। हालांकि इनमें ब्राजील और पेरू एक अपवाद हैं। पेरू में 6 मार्च को इस संक्रमण का पहला मामला सामने आया था। मई अंत तक इसके मामले लगातार बढ़े और चरम पर जाने के बाद जून की शुरुआत से मामलों में गिरावट देखी जा रही है। ब्राजील में 3 मार्च को इसका पहला मामला सामने आया था और जून के शुरुआती सप्ताह में यहां पर रोजाना आने वाले नए मामलों में गिरावट आई है।
इन देशों में 2-4 माह में आई गिरावट
वहीं दूसरे देशों की बात करें तो रूस में इसका पहला मामला 31 जनवरी को सामने आया था। इसके चार माह के बाद मई में यहां पर लगातार मामले बढ़ते गए और उसके बाद में इसमें कमी आई। 11 मई के बाद रूस में लगातार मामले कम हुए हैं। वहीं स्पेन, इटली और ब्रिटेन में कोरोना का पहला मामला 31 जनवरी को ही सामने आया था। आंकड़े बताते हैं कि स्पेन में तीन माह बाद यानी अप्रैल में इसके मामले चरम पर थे, लेकिन शुरुआती सप्ताह में ही इसमें गिरावट का दौर शुरू हो गया था। वहीं ब्रिटेन में अप्रैल के दूसरे सप्ताह से रोजाना आने वाले मामले कम हुए। इनके अलावा इटली में भी रोजाना आने वाले मामलों का यही ट्रेंड देखने को मिला है। दो माह के बाद यहां पर भी नए मामलों के सामने आने में गिरावट आई है। जर्मनी में इसका पहला मामला 28 फरवरी को सामने आया था। यहां पर अप्रैल तक मामले बढ़े और फिर गिरावट का दौर शुरू हुआ। इसी तरह तुर्की में जहां 11 मार्च को इसका पहला मामला सामने आया था, वहां पर भी दो माह के अंदर इसके मामले लगातार बढ़ते चले गए और फिर इनमें गिरावट का दौर शुरू हुआ। आपको यहां पर ये भी बता दें कि चीन जहां से कोरोना का सफर दिसंबर 2019 में शुरू हुआ था वहां पर 12 फरवरी को एक ही दिन में दस हजार नए मामले दर्ज किए गए थे। इसके बाद वहां पर गिरावट का दौर शुरू हुआ था।
ईरान में कोरोना की दूसरी खेप?
वहीं इस सूची में शामिल ईरान के आंकड़े कुछ और कहानी बयां कर रहे हैं। यहां पर कोरोना संक्रमण का पहला मामला 19 फरवरी को सामने आया था। मार्च के अंत तक रोजाना आने वाले नए मामले चरम पर पहुंचे और फिर इनमें गिरावट दर्ज की गई। लेकिन 12 अप्रैल के बाद वहां पर संक्रमण के मामले लगातार बढ़े। इस दौरान रोजाना नए मामलों की संख्या भी पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा रही। जून की शुरुआत में ईरान में रोजाना आने वाले नए मामलों की संख्या साढ़े तीन हजार से भी आगे निकल गई है। यहां पर पहला सवाल मन में यही उठता है कि क्या ये सरकारी मशीनरी की कोई खामी रही है या फिर यहां पर इस संक्रमण की दूसरी खेप का ये असर है।
काफी हद तक सफल रहा भारत
इन टॉप-10 देशों की सूची में मौजूद आंकड़ों पर नजर डालें तो अमेरिका और भारत में अब तक ये ट्रेंड देखने को नहीं मिला है। लेकिन वहीं भारत के संबंध ये भी बताना जरूरी होगा कि अमेरिका और भारत की जनसंख्या में जमीन आसमान का अंतर है। ऐसे में यदि देखा जाए तो भारत काफी हद तक इसके मामलों को रोकपाने में सफल हुआ है। वहीं भारत में इसकी वजह से मरने वालों का आंकड़ा भी अन्य देशों के मुकाबले काफी कम रहा है। इन आंकड़ों के विश्लेषण से एक और सवाल उठ रहा है कि क्या ये 2 से 4 माह का समय कोरोना के नए मामलों के लिए खास है। इसका जवाब पाने के लिए इन सभी देशों से आने वाले कुछ और आंकड़ों के विश्लेषण की जरूरत है। साथ ही इसका जवाब वैज्ञानिक कसौटी पर परखने से भी मिल सकता है।
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