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कभी शर्मीली लड़की थी ये IPS अधिकारी, आज आतंकरोधी अभियान का कर रही नेतृत्व

कश्मीर में कानून-व्यवस्था से लेकर आतंकरोधी अभियान तक की कमान पहली बार किसी महिला अधिकारी को सौंपी गई है। यह जिम्मेदारी मिली है 1996 बैच की आइपीएस अधिकारी चारू सिन्हा को।

By TaniskEdited By: Published: Sun, 06 Sep 2020 03:16 PM (IST)Updated: Sun, 06 Sep 2020 03:16 PM (IST)
कभी शर्मीली लड़की थी ये IPS अधिकारी, आज आतंकरोधी अभियान का कर रही नेतृत्व
कभी शर्मीली लड़की थी ये IPS अधिकारी, आज आतंकरोधी अभियान का कर रही नेतृत्व

नवीन नवाज, श्रीनगर। बचपन में शांत सी दिखने वाली लड़की, कभी अकेले बाहर निकलने से हिचकती थी। आज वह महिला सशक्तीकरण की मिसाल बन चुकी है। तेलंगाना में भ्रष्टाचार और बिहार में नक्सलियों के खिलाफ अभियान में नेतृत्व क्षमता साबित कर चुकीं चारू सिन्हा कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं। 1996 बैच की आंध्र प्रदेश कैडर की यह आइपीएस अधिकारी कश्मीर में सीआरपीएफ में महानिरीक्षक रैंक की पहली महिला आइपीएस अधिकारी बनी हैं। निश्चित तौर पर उनकी यह जिम्मेदारी उन्हें अब तक मिली जिम्मेदारियों से कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण रहने वाली है, लेकिन आत्मिक बल के दम पर वह हर चुनौती से निपटने को तत्पर दिखती हैं। 

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सीआरपीएफ के संवेदनशील माने जाने वाले श्रीनगर सेक्टर की आइजी के नाते उन्हें नागरिक प्रशासन और पुलिस के साथ-साथ सेना व अन्य सुरक्षा एजेंसियों के साथ समन्वय बनाकर आगे चलना है। सिर्फ यही नहीं, कश्मीर में स्थानीय आतंकियों की आतंकी संगठनों में भर्ती पर काबू पाने से लेकर आतंकी बने युवकों के सरेंडर को सुनिश्चित बनाने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में भी उनके अनुभव का इम्तिहान होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महिला अधिकारियों से गुमराह युवाओं की माताओं से अपील कराने की नसीहत के बाद उनसे यह उम्मीद यूं ही नहीं है। आंध्र प्रदेश में वह कई हथियारबंद नक्सलियों का सरेंडर करा चुकी हैं। आंध प्रदेश के विभाजन के बाद उन्होंने तेलंगाना को अपनी कर्मभूमि बनाने का फैसला किया। 

कश्मीर से पूर्व जम्मू में बतौर आइजी सीआरपीएफ रहीं चारू सिन्हा को सौंपे श्रीनगर सेक्टर की अहमियत और संवेदनशीलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके अधीन श्रीनगर, बडगाम और गांदरबल जिले आते हैं। कश्मीर स्थित सीआरपीएफ का ग्रुप सेंटर, श्रीनगर एयरपोर्ट भी इनके अधीन रहेगा। इस सेक्टर में दो रेंज, 22 एक्जीक्यूटिव यूनिट और तीन महिला सीआरपीएफ कंपनियां हैं।

सबसे बड़ी चुनौती नए आतंकियों की भर्ती रोकना

चारू सिन्हा की नियुक्ति को लेकर कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ एजाज अहमद वार ने कहा कि उनका प्रोफाइल शानदार है। उसे देखकर उनसे यहां उम्मीदें बहुत ज्यादा हैं। इस समय कश्मीर में सुरक्षाबलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती नए आतंकियों की भर्ती रोकना है। आतंकी बने युवाओं को किसी तरह मुख्यधारा में लाना है। कश्मीर में सीआरपीएफ पहले ही जनसंपर्क और जनसहयोग के कई कार्यक्रम चला रही है, अब देखना यह है कि वह कैसे इन युवाओं की भर्ती पर रोक लगाते हुए आतंकियों के सरेंडर के लिए जमीन तैयार करती हैं।

सशक्त बनने का था संकल्प

बचपन में बेहद शर्मीले स्वभाव के कारण चारू सिन्हा घर से बाहर अकेले निकलने में भी हिचकती थीं। उनका कहना है कि मन में हमेशा स्वयं को आर्थिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से स्वतंत्र और सशक्त बनने के लिए दृढ़संकल्प था। पूर्व में एक साक्षात्कार में उन्होंने अपने बचपन के दिनों का जिक्र किया था। उन्होंने बताया था कि वह पिता के साथ अक्सर पुटपर्थी में स्थित सत्य साईं के दरबार में जाती थीं। वहां उनके अंदर नया विश्वास जगा और जीवन को समझने-देखने का एक नजरिया मिला और फिर सबकुछ बदल गया। वह मीडिया की सुर्खियों से दूर रहना पसंद करती हैं। उनके मुताबिक, जब वह आइपीएस अधिकारी बनीं तो उस दौर में बहुत कम युवतियां पुलिस में होती थीं। आइपीएस अधिकारी बनने के बाद शुरुआती दौर में अक्सर मीडिया उनके पीछे रहता था। कई बार लगता कि निजी जिंदगी खत्म हो गई है, खैर बाद में इसकी अभ्यस्त हो गईं। हैदराबाद स्थित सेंट फ्रांसिस कॉलेज फॉर वूमेन से स्नातक की और उसके बाद उन्होंने हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सटिी से पॉलिटिकल साइंस में एमए किया।

पहली बार किसी महिला अधिकारी को सौंपी गई आतंकरोधी अभियान 

कश्मीर में कानून-व्यवस्था से लेकर आतंकरोधी अभियान तक की कमान पहली बार किसी महिला अधिकारी को सौंपी गई है। यह जिम्मेदारी मिली है 1996 बैच की आइपीएस अधिकारी चारू सिन्हा को, जिन्हें केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के श्रीनगर सेक्टर की आइजी बनाया गया है। इससे पहले आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भ्रष्टाचार और नक्सलवाद को रोकने में अपने मजबूत इरादों और प्रयासों से सुर्खियों में रहीं चारू सिन्हा के लिए कश्मीर एक नई चुनौती है, लेकिन उनकी प्रोफाइल को देखते हुए उनसे बहुत उम्मीदें लगाई जा रही हैं। एक नजर उनके करियर के अब तक के सफर और कश्मीर में नई चुनौतियों पर..

भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टोलरेंस नीति नेताओं को भी खटकी

चारू सिन्हा ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पुलिस कांस्टेबलों के लिए इजरायली सेना की आत्मरक्षा की तकनीक का प्रशिक्षण भी अनिवार्य बनाया। खाली समय में घूमने फिरने, नई किताबें पढ़ने और अपने पालतू कुत्ते के साथ समय बिताने की शौकीन चारू सिन्हा को कम्युनिटी पुलिसिंग में बहुत यकीन है। उन्होंने तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में यह सफल प्रयोग किया है। वह बताती हैं कि इसका काफी असर भी हुआ। इसके तहत पुलिसकर्मियों और अधिकारियों को जनता के साथ अच्छा व्यवहार करने, संयम के साथ पेश आने को प्रेरित करते हुए कानून-व्यवस्था सुधारने के लिए जनता की भागेदारी सुनिश्चित की जाती है।


भ्रष्टाचार के दबे मामलों को भी ठंडे बस्ते से बाहर निकाल अंजाम तक पहुंचाया

तेलंगाना में वह भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की निदेशक भी रहीं। उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ कई सख्त कदम उठाए। राजनीतिक दबाव में आए बिना उन्होंने कई भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की। उन्होंने भ्रष्टाचार के दबे मामलों को भी ठंडे बस्ते से बाहर निकाल अंजाम तक पहुंचाया। वर्ष 2017 में उन्हें केंद्रीय डेपुटेशन के तहत सीआरपीएफ में भेज दिया गया। उनके इस तबादले की वजह भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टोलरेंस की नीति ही बताई गई थी। उन्होंने ही तेलंगाना के एक बाहुबली एमएलए द्वारा जिला कलेक्टर से कथित र्दुव्‍यवहार मामले की जांच की। अब कश्मीर की चुनौती उनके सामने है और उनके अभी तक के अनुभव से यहां के लोगों को उनसे बहुत उम्मीदें हैं।

नक्सलियों का सरेंडर और पुनर्वास करवाया

चारू सिन्हा बताती हैं कि आठवीं कक्षा में ही तय कर लिया था कि मुङो देश की सेवा करनी है और इसलिए पुलिस सेवा को चुना। उसके बाद वर्दी को ही अपनी ताकत बना लिया और आत्मबल से एक के बाद एक चुनौतियों का सामना कर आगे बढ़ती गई। कश्मीर में सीआरपीएफ की पहली महिला आइजी बनने से पहले उन्होंने आंध्र प्रदेश में एचआइवी पीड़ित महिलाओं व बच्चों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी। प्रकाशम जिले में एसपी रहने के दौरान उन्होंने तटीय इलाकों के मछुआरों और चेंचू आदिवासियों के लिए कई काम किए। उन्हें नक्सलियों की मदद नहीं करने लिए राजी किया। तेलंगाना के मेडक में नक्सल विरोधी ऑपरेशन की ओएसडी इंचार्ज रह चुकीं चारू सिन्हा ने कई नक्सलियों का सरेंडर कराने के साथ-साथ उनके पुनर्वास का भी बंदोबस्त किया। वर्ष 2005 में वह संयुक्त राष्ट्र के कोसोव शांति मिशन में शामिल रहीं। उन्होंने अल्बेनियाई मुस्लिमों और सर्ब ईसाइयों के बीच शांति बनाए रखने व उनके पुनर्वास में अहम भूमिका निभाई।


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