राम मंदिर आंदोलन में नया नहीं है संतों का नेतृत्व
महंत दिग्विजयनाथ,रामचंद्रदास परमहंस एवं अभिरामदास ने आंदोलन की बुनियादरखी थी। कालांतर में मंदिर आंदोलन के नेतृत्व के लिए तैयार हुई संतों की पूरी पांत।
अयोध्या, रघुवरशरण। रविवार को प्रस्तावित धर्मसभा को लेकर दिख रहा उत्साह और राममंदिर के प्रति संतों का सरोकार नया नहीं है। 22-23 दिसंबर, 1949 की रात रामजन्मभूमि बताए जाने वाले विवादित इमारत में रामलला के प्राकट्य के साथ मंदिर आंदोलन की बुनियाद पड़ी और यह बुनियाद रोपित करने वालों में तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ, हनुमानगढ़ी से जुड़े महंत अभिरामदास एवं कालांतर में मंदिर आंदोलन के नायक बनकर उभरे रामचंद्रदास परमहंस प्रमुख थे। यह मसला अदालत पहुंचा तो रामलला की पैरवी करने के लिए परमहंस सहित वैष्णव संतों की प्रमुख संस्था निर्मोही अखाड़ा आगे आई।
छह सितंबर,1984 को सरयूतट पर रामजन्मभूमि मुक्ति के संकल्प के साथ अभियान से विहिप जुड़ी तो संतों को आगे रखकर। उसी दौर में रामजन्मभूमि मुक्तियज्ञ समिति का गठन किया गया और समिति का अध्यक्ष तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ को बनाया गया। विहिप ने मंदिर आंदोलन की शुरुआत से जिन संतों के हाथ में कमान सौंपी, उनमें महंत अवैद्यनाथ सहित रामचंद्रदास परमहंस, स्वामी वामदेव, मणिरामदासजी की छावनी के महंत नृत्यगोपालदास प्रमुख रहे।
मंदिर आंदोलन में उभार के साथ जिन संतों की भूमिका सर्वाधिक रही उनमें डॉ.रामविलासदास वेदांती,स्वामी चिन्मयानंद, युगपुरुष स्वामी परमानंद, साध्वी ऋतंभरा, उमा भारती, आचार्य धर्मेंद्र प्रमुख थे। दो फरवरी,1986 को रामजन्मभूमि का ताला खुलने के साथ मंदिर निर्माण के लिए रामजन्मभूमि न्यास के रूप में स्वतंत्र संस्था का गठन किया और इसका प्रथम अध्यक्ष जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी शिवरामाचार्य को बनाया गया। 1989 में उनके साकेतवास के बाद रामचंद्रदास परमहंस न्यास अध्यक्ष बने। 2003 में परमहंस के साकेतवास के बाद यह दायित्व महंत नृत्यगोपालदास को सौंपा गया।