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जिस वजह से हुआ शिवमोगा में ब्‍लास्‍ट, उस डायनामाइट के अविष्‍कार पर पछताए थे अल्‍फ्रेड नोबेल

शिवमोगा में जिसकी वजह से धमाका हुआ और 5 लोगो की जान गई उसका अविष्‍कार वर्षों पहले अल्‍फ्रेड नोबेल ने किया था। इसको बनाने के बाद उन्‍हें पछतावा भी हुआ था क्‍योंकि इसकी ही वजह से उन्‍हें अपने भाई को खोना पड़ा था।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 22 Jan 2021 12:18 PM (IST)Updated: Fri, 22 Jan 2021 12:18 PM (IST)
जिस वजह से हुआ शिवमोगा में ब्‍लास्‍ट, उस डायनामाइट के अविष्‍कार पर पछताए थे अल्‍फ्रेड नोबेल
शिवमोगा में डायनामाइट की वजह से हुआ धमाका

नई दिल्‍ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। कर्नाटक के शिवमोगा जिले में हुई घटना से हर देशवासी दुखी है। इसमें अब तक आठ लोगों की मौत हो चुकी है। ये घटना उस वक्‍त हुई, जब पत्‍थर की खदान में मौजूद एक ट्रक में अचानक धमाका हो गया। देखते ही देखते वहां पर धुएं का गुबार हवा में उड़ गया और लोगों की चीख-पुकार शुरू हो गई। इस ट्रक पर विस्‍फोटक लदा हुआ था। ये डायनामाइट था, जिसका इस्‍तेमाल खदान में विस्‍फोट करने के लिए किया जाता है। डायनामाइट की भारी मात्रा होने की वजह से विस्‍फोट के बाद आसपास के इलाके में भूकंप के झटके भी महसूस हुए। इस पूरे मामले की जांच के आदेश दे दिए गए हैं। ये जिला मुख्‍यमंत्री बीएस येदियुरप्‍पा का गृहनगर है।आपको जानकर हैरानी होगी कि शिवमोगा में जिस डायनामाइट वजह विस्‍फोट हुआ है उसके आविष्‍कार पर अल्‍फ्रेड बर्नार्ड नोबेल काफी पछताए थे। दरअसल, इस विस्‍फोटक का आविष्‍कार एक गलती की वजह से 1867 में जर्मनी में हुआ था। नोबेल डायनामाइट की विनाशकारी ताकत के बारे में जानते थे। इसलिए वो दुखी भी हुए थे।

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नोबेल का जन्‍म स्‍वीडन की राजधानी स्‍टाकहोम में वर्ष 1833 में हुआ था। वो एक वैज्ञानिक के अलावा एक उद्योगपति भी थे। बेहद कम उम्र में ही वो सोवियत संघ चले गए थे। इसके बाद महज 18 वर्ष की उम्र में वो पढ़ाई के लिए अमेरिका चले गए थे। नोबेल ने अपने जीवन काल में कुल 355 अविष्‍कार किए थे, जिसमें से सबसे अधिक पैसा उन्‍हें डायनामाइट से ही हासिल हुआ था। इसके अविष्‍कार और उनके पछतावे की कहानी भी बेहद दिलचस्‍प है। नोबेल को अपने भाई से बेहद प्‍यार था। नोबेल के अविष्‍कार ज्‍यादातर उनकी अपनी लैब और कारखाने में ही किए गए थे। वो अपने पिता और भाई के साथ कारखाने में काम करते थे। इस कारखाने में हथियार बनाए जाते थे।

डायनामाइट में इस्‍तेमाल किए गए नाइट्रोग्लिसरीन की ताकत से नोबेल भलीभांति जानते थे। इसका अविष्‍कार सबसे पहले इतालवी वैज्ञानिक एसकेनियो सोबेरा ने 1846 में किया था। इस अवस्‍था में ये एक लिक्विड के रूप में होता है। 1863 में नोबेल ने डेटोनीटर का अविष्‍कार कर इसको पेटेंट करवाया था। इसके बाद उन्‍होंने एक फैक्‍ट्री का निर्माण किया, जहां पर डायनामाइट का उत्‍पादन किया जाता था। 3 सितंबर 1864 को नाइट्रोग्लिसरीन का मिश्रण तैयार करने के दौरान फैक्‍ट्री की इमारत में जबरदस्‍त धमाका हो गया। इस धमाके में उनके भाई समेत पांच लोगों की जान चली गई थी। वे अपने भाई को बेहद प्‍यार करते थे। यही वजह थी कि उन्‍हें इस बात का अफसोस हुआ कि ऐसा उन्‍होंने क्‍यों किया। वैज्ञानिकों का मत है कि उन्‍हें इस बात का दुख इस वजह से भी हुआ था, क्‍योंकि वो एक शांतिप्रिय वैज्ञानिक थे।

1866 में उन्‍होंने नाइट्रोग्लिसरीन के साथ सिलिका को मिलाकर एक पेस्‍ट का रूप देने में सफलता हासिल की। इसका सबसे बड़ा फायदा ये होता था कि इसको किसी भी चीज मे आसानी से भरा जा सकता है। फिर चाहे वो सिलेंडर हो या जमीन में किया गया छेद। 1867 में उन्‍हें डायनामाइट को पेटेंट करने के तौर पर 78317 नंबर हासिल हुआ था। इसके बाद नोबेल ने इस पर अपना शोध जारी रखते हुए इसके डेटोनेटर में काफी बदलाव किए। 1875 में उन्‍होंने जिलेटिन का अविष्‍कार किया, जिससे सीमित दायरे में विस्‍फोट किया जा सकता था। इसके एक साल बाद उन्‍होंने इसको भी पेटेंट करवाया। उन्‍होंने डायनामाइट को शुरुआत में अमेरिका और ब्रिटेन में पेटेंट करवाया था। बाद में इसका उपयोग खदानों में बड़ी संख्‍या में किया जाने लगा। इसके लिए इसका आयात और निर्यात भी काफी बड़ी तादाद में किया जाने लगा। मौजूदा समय में पूरी दुनिया की खदानों में इसका उपयोग विशेषज्ञों की निगरानी में किया जाता है।


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