Move to Jagran APP

International Tiger Day 2019: चंद्रयान-2 की लॉचिंग से ज्यादा है बाघ संरक्षण का खर्च

International Tiger Day 2019 भारत में बाघ संरक्षण पर होने वाला खर्च ही नहीं बल्कि इसका लाभ भी किसी अंतरिक्ष मिशन से कहीं ज्यादा है। जानें- क्यों जरूरी है बाघों का संरक्षण।

By Amit SinghEdited By: Published: Mon, 29 Jul 2019 03:31 PM (IST)Updated: Mon, 29 Jul 2019 04:08 PM (IST)
International Tiger Day 2019: चंद्रयान-2 की लॉचिंग से ज्यादा है बाघ संरक्षण का खर्च
International Tiger Day 2019: चंद्रयान-2 की लॉचिंग से ज्यादा है बाघ संरक्षण का खर्च

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। International Tiger Day 2019 के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत में बाघों की स्थिति पर रिपोर्ट पेश की है। बाघों की मौजूदा स्थिति साबित करती है कि भारत दुनिया भर में जंगल के राजा का सबसे पसंदीदा और सुरक्षित ठिकाना बनता जा रहा है। क्या आप जानते हैं, भारत बाघों के संरक्षण पर प्रति वर्ष चंद्रयान-2 की लॉचिंग से ज्यादा रुपये खर्च करता है। इतना ही नहीं बाघों के संरक्षण से देश को होने वाला लाभ भी किसी अंतरिक्ष मिशन की तुलना में कहीं ज्यादा है। आइये जानतें हैं- बाघों के संरक्षण को लेकर कुछ दिलचस्प तथ्य और इससे होने वाले फायदों के बारे में।

loksabha election banner

वर्ष 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में 29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के तौर पर मनाने की घोषणा हुई थी। सम्मेलन में शामिल भारत समेत कई अन्य देशों ने वर्ष 2022 तक बाघों की आबादी दोगुनी करने का लक्ष्य निर्धारित किया था। उस वक्त भारत में बाघों की कुल आबादी 1706 थी। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा सोमवार को जारी किए गए आंकड़ों में बताया गया है कि वर्ष 2018 तक देश में बाघों की कुल आबादी 2967 हो चुकी है।

वर्ष 2014 के बाद से अब तक देश में 741 बाघ बढ़े हैं। 2014 में देश में आखिरी बार हुई बाघों की जनगणना में इनकी जनसंख्या 2226 थी। मतलब पांच साल में ही भारत में बाघों की आबादी दोगुने के करीब पहुंच चुकी है। प्रधानमंत्री ने इसे देश के लिए बड़ी उपलब्धि बताया है। उन्होंने कहा लगभग 3000 बाघों की संख्या के साथ भारत दुनिया के सबसे बड़े और सबसे सुरक्षित हैबिटेट्स में शामिल हो गया है। सबसे पहले 2006 में हुई गणना में देश में बाघों की तादाद 1411 बताई गई थी।

वर्ष 2014 में भारत में संरक्षित वन्य क्षेत्रों (Protected Forest Areas) की संख्या 692 थी, जो 2019 में बढ़कर 860 हो चुकी है। देश में कम्युनिटी रिजर्व (Community Reserve) की संख्या भी बढ़ी है। वर्ष 2014 में कम्युनिटी रिजर्व की संख्या 43 थी, जो अब 100 हो चुकी है। भारत में वन्य क्षेत्र में भी इजाफा हुआ है। बाघों के संरक्षण के लिए भारत में निजी कंपनियों और एनजीओ आदि की मदद से सरकार ने बड़े पैमाने पर Save The Tiger प्रोजेक्ट शुरू किया। इसका व्यापक असर भी दिखा।

बाघों की राजधानी बना उत्तराखंड
भारत में बाघों की बढ़ती संख्या इस बात का संकेत है कि पिछले कुछ वर्षो में भारत ने अन्य देशों की तुलना में बाघ संरक्षण पर काफी मेहनत की है। उत्तराखंड, भारतीय बाघों की राजधानी के रूप में उभरा है। उत्तराखंड के हर जिले में बाघों की मौजूदगी मिली है। वन विभाग के साथ राज्य सरकार भी इन आंकड़ों से काफी उत्साहित है। उत्तराखंड में 1995 से 2019 के बीच बाघों की संख्या में सबसे ज्यादा इजाफा हुआ है।

चंद्रयान-2 की लॉचिंग से महंगा है Project Tiger Conservation
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय का वित्तीय वर्ष 2019-20 का कुल बजट 3111.20 करोड़ रुपये है। वर्ष 2018-19 में मंत्रालय का कुल बजट 2586.67 करोड़ रुपये था। पिछले वित्तीय वर्ष के मुकाबले चालू वित्तीय वर्ष में केंद्र सरकार ने वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के बजट में 20.27 फीसद का इजाफा किया है। इसमें से बाघ संरक्षण का सालाना बजट 350 करोड़ रुपये है, जबकि हाथियों के संरक्षण का वार्षिक बजट 30 करोड़ रुपये है। पिछले वित्तीय वर्ष में भी बाघ और हाथियों के संरक्षण का बजट इतना ही था। इसके अलावा बाघों के संरक्षण पर राज्य सरकारों, निजी कंपनियों और समाजसेवी संगठनों (NGOs) के जरिए भी लगभग 100 करोड़ रुपये सालाना खर्च किए जाते हैं। वहीं 22 जुलाई को लॉच किए गए चंद्रयान-2 मिशन का कुल बजट 978 करोड़ रुपये है। इसमें से चंद्रयान-2 की लॉचिंग का बजट 375 करोड़ रुपये है, जबकि 603 करोड़ रुपये चंद्रयान-2 के अंतरिक्ष मिशन व तैयारियों पर खर्च किए जाने हैं।

बाघों की प्रजातियां
जिंदा है- साइबेरियन टाइगर, रॉयल बंगाल टाइगर, व्हाइट टाइगर, इडोचाइनीज टाइगर, मलायन टाइगर, सुमात्रन टाइगर।

विलुप्त हो चुके- बाली टाइगर, कैस्पियन टाइगर, जावन टाइगर।

1973 में शुरू हुआ प्रोजेक्ट टाइगर
देश में कभी बाघों की आबादी 40,000 से ज्यादा हुआ करती थी। 1900 के मध्य में बाघों के बेतहासा शिकार से इनकी जनसंख्या बेहद कम हो गई थी। इसे देखते हुए वर्ष 1973 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरूआत की। इसके साथ ही देश में बाघों के शिकार को प्रतिबंधित करने और उनके संरक्षण की कवायद तेज हुई। इसका उद्देश्य बाघों की आबादी को बढ़ाना और उन्हें सुरक्षित ठिकाना मुहैया कराना था। बाघों का अवैध शिकार इसमें सबसे बड़ी बाधा थी।

बाघों के संरक्षण से होने वाला लाभ
जुलाई 2017 में आई एक रिपोर्ट में बताया गया कि बाघों के संरक्षण ने भारतीय अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। बाघों से होने वाले आर्थिक फायदों पर आधारित ये अध्ययन भोपाल के इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट की प्रोफेसर मधु वर्मा की अगुवाई में भारतीय-ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों के दल ने किया था। इस अध्ययन में बताया गया था कि बाघों को संरक्षित करने से हमें मंगल मिशन से अधिक पूंजीगत लाभ मिलता है। यदि देश की सारी बाघ आबादी मिला ली जाए तो भारतीय अर्थव्यवस्था को बाघों से प्रतिवर्ष 5.7 लाख करोड़ रुपये का फायदा हो रहा है।

बाघों से होने वाले अन्य लाभ
जुलाई 2017 में 11 वैज्ञानिकों के दल द्वारा देश के छह बाघ अभ्यारण्य में विभिन्न परिस्थितियों का अध्ययन किया गया था। इसमें अमूल्य वन संपदा, वन क्षेत्र में इजाफा, जंगलों से मिलने वाली जड़ी-बूटियां, पानी, फल, लकड़ियां, प्राकृतिक ईंधन और सबसे बहुमूल्य ऑक्सीजन शामिल है। वैज्ञानिकों ने पाया कि बाघ संरक्षण के जरिए भारत 230 अरब डॉलर के संसाधनों को संरक्षित कर रहा है। देश का 2.3 फीसद भौगोलिक क्षेत्र बाघ अभ्यारण्य में आता है। इन संरक्षित जंगलों में 300 छोटी-बड़ी नदियां हैं, जिनसे हमें साल भर पीने का स्वच्छ पानी मिलता है। इनकी बदौलत सरकार को निवेश में 356 गुना फायदा हो रहा है।

क्यों बाघ ही जरूरी हैं?
बाघों से होने वाले लाभ पर किसी के मन में भी सवाल उठ सकता है कि इसके लिए बाघ ही क्यों जरूरी हैं? इसे समझने के लिए अमेरिका के येलो स्टोन नेशनल पार्क के एक वाक्ये को जानना जरूरी है। अमेरिकी सरकार ने एक बार पार्क के सभी भेड़ियों को मार दिया। नतीजा ये हुआ कि जंगल में शाकाहारी पशुओं की संख्या तेजी से बढ़ी और उन्होंने सारी वन संपति को तहस-नहस कर दिया। इससे जंगल की मिट्टी भी कमजोर पड़ गई। पानी के अभाव में बची-खुची वनस्पति भी सूख गई।

जंगल में चारे व पानी की कमी होने लगी और जंगल में पशु-पक्षी, जीव-जंतुओं की संख्या भी तेजी से घटने लगी। हरा-भरा जंगल सूखकर रेगिस्तान में बदलने लगा। जंगलों की दुर्दशा देख 1995 में सरकार ने फिर से भेड़ियों को वहां बसाना शुरू किया। अब वही जंगल फिर से हरा-भरा और पहले की तरह गुलजार हो चुका है। जानकारों के अनुसार येलो स्टोन पार्क के लिए जिस तरह से जंगली भेड़िए जरूरी थे, ठीक उसी तरह से हमारे जंगलों के लिए बाघों का होना आवश्यक है।

अब खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस, डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.