एनएसजी बैठक से पहले भारत को बदनाम करने की कोशिश
पाकिस्तान की घबराहट के बीच अंतरराष्ट्रीय मीडिया के जरिए भी भारत को बदनाम करने की कोशिश हो रही है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। भारत की एनएसजी सदस्यता को लेकर पाकिस्तान की घबराहट के बीच अंतरराष्ट्रीय मीडिया के जरिए भी भारत को बदनाम करने की कोशिश हो रही है। वहीं सियोल में होने वाली बैठक से ठीक पहले भारत ने इसे साजिश करार देकर स्पष्ट कर दिया है कि वह भी सतर्क है। पिछले दो दिनों के भीतर एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय टीवी चैनल की बेवसाइट व कुछ अन्य समाचार माध्यमों से भारत और उत्तर कोरिया के बीच परमाणु संबंधों से जुड़ी अफवाहों को प्रचारित किया जा रहा है। और भारत के विरुद्ध दुष्प्रचार की इस आग में पाकिस्तान घी डालने का काम कर रहा है।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भारत पर यह आरोप लगाया गया है कि देहरादून स्थित एक प्रशिक्षण केंद्र में उत्तर कोरिया के विशेषज्ञों को प्रशिक्षण दिया गया और बाद में इन विशेषज्ञों ने अपने देश के परमाणु कार्यक्रम में अहम भूमिका निभाई है।विदेश मंत्रालय ने इन आरोपों को पूरी तरह से बेबुनियाद बताते हुए कहा कि इस तरह की बातें बहुत सीमित जानकारी रखने वाले लोग ही कर सकते हैं। भारत संयुक्त राष्ट्र की तरफ से उत्तरी कोरिया पर लगाए गए प्रतिबंधों का बहुत ही सख्ती से पालन करता है। देहरादून स्थित जिस स्पेस साइंस एंड टेक्नोलोजी एजुकेशन इन एशिया एंड द पैसिफिक (सीएसएसटीईएपी) की बात की गई है वहां के पाठ्यक्रम खुलेआम उपलब्ध हैं। ये पाठ्यक्रम किसी भी तरह से उत्तर कोरिया पर लागू प्रतिबंधों का उल्लंघन नहीं करते हैं।
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इसके अलावा इस सेंटर के बोर्ड में संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि भी ऑब्जर्वर के तौर पर शामिल होते हैं। यह प्रतिनिधि पाठ्यक्रम को तय करने से लेकर विभिन्न देशों के विशेषज्ञों के चयन करने की प्रक्रिया तक में शामिल होते हैं।भारत पर उत्तरी कोरिया के परमाणु कार्यक्रम में मदद करने का आरोप लगाने संबंधी यह आर्टिकल पहले अल-जजीरा के वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ।
उसके बाद कई अंतरराष्ट्रीय वेबसाइट पर इसे लिया गया। यह आलेख बुधवार को तब छपा है जब एनएसजी का सदस्य बनने के लिए भारत का कूटनीतिक प्रयास जोरों पर है। भारत का प्रमुख तर्क यही है कि उसके रिकॉर्ड को देखते हुए उसे एनएसजी का सदस्य बनाया जाना चाहिए। पाकिस्तान भी एनएसजी का सदस्य बनना चाहता है लेकिन उसके उत्तर कोरिया के परमाणु हथियारों के विकास में भागीदारी को देखते हुए कई देश उसकी दावेदारी का विरोध करते हैं।
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