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रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए भारत सरकार लंबे समय से प्रयासरत

रक्षा क्षेत्र में एक बड़ा सुधार करते हुए पिछले वर्ष जून में केंद्र सरकार ने एक महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए आर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड की आयुध निर्माणियों का निगमीकरण कर इनकी जगह रक्षा क्षेत्र की सात कंपनी बनाने का ऐतिहासिक निर्णय लिया था।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 20 May 2022 11:50 AM (IST)Updated: Fri, 20 May 2022 11:50 AM (IST)
रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए भारत सरकार लंबे समय से प्रयासरत
पिछले एक वर्ष से इस दिशा में काम तेजी से आगे बढ़ रहा है।

डा. लक्ष्मी शंकर यादव। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में कहा है कि किसी देश की शक्ति का मूल्यांकन करने के दो मापदंड होते हैं। पहला उस देश की रक्षा क्षमता कितनी है और दूसरा वहां की अर्थव्यवस्था का आकार कितना है। जहां तक रक्षा क्षमता का सवाल है तो सरकार ने फैसला लिया है कि अधिक से अधिक रक्षा सामग्री घरेलू स्तर पर ही खरीदी जाएगी। राजनाथ सिंह ने कहा कि पहले हम लाखों करोड़ों रुपये का सामान विदेश से खरीदते थे, लेकिन अब यह सुनिश्चित किया गया है कि रक्षा सामग्री का निर्माण भारत में होगा, क्योंकि भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना है। उल्लेखनीय है कि 85 हजार करोड़ रुपये की जो पूंजी रक्षा सामान खरीदने के लिए है उसका 68 प्रतिशत भारतीय कंपनियों से ही लिया जाएगा।

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दरअसल सरकार की योजना है कि हम अपनी सुरक्षा व्यवस्था को लेकर दूसरे देशों पर आश्रित न रहें। इसी के मद्देनजर ऐसी 309 रक्षा सामग्रियों की घोषणा की गई है जो बाहर से नहीं मंगाई जाएंगीं। पहले छोटे से छोटे रक्षा उत्पादों के लिए भारत दूसरे देशों पर निर्भर रहता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। यदि कोई तकनीकी मामला फंसता है तो विदेशी रक्षा उत्पाद कंपनी को भारत की जमीन पर भारतीय नागरिकों के हाथों से उसे तैयार करवाना होगा। इसीलिए रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकार का सेना को साफ संदेश है कि हमें भविष्य के युद्ध स्वदेशी हथियारों व उपकरणों से लड़ने हैं। इसलिए सेना अपनी जरूरत का लगभग सारा साजो-सामान स्वदेशी निर्माताओं से ही खरीदेगी। इसी क्रम में थल सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी बीएस राजू ने कहा था कि भारतीय सेना ने बीते दो वर्षो के दौरान लगभग 40 हजार करोड़ रुपये की कीमत के साजो-सामान के लिए दो अनुबंध स्वदेशी कंपनियों के साथ किए हैं।

भविष्य में सेना को अपनी जरूरत का कौन सा हथियार चाहिए और उसमें सेना किस तकनीक को चाहती है इसके लिए सबसे पहले स्वदेशी हथियार निर्माताओं तथा भारतीय कंपनियों से ही संपर्क किया जाएगा। यह माना जा रहा है कि 90 प्रतिशत या इससे भी अधिक के आर्डर भारतीय कंपनियों को ही मिलेंगे। अब देश में सैन्य साजो-सामान चीन व पाकिस्तान जैसे देशों से मिलने वाली चुनौतियों के अनुरूप तैयार किया जाएगा। रक्षा मंत्रलय ने वर्ष 2025 तक 35 हजार करोड़ रुपये का लक्ष्य तय करने के साथ 1.75 लाख करोड़ रुपये के स्वदेशी रक्षा उत्पाद खरीदने का लक्ष्य भी रखा है।

भारत में अब तक निवेश के बाद लाभ की गारंटी नहीं होती थी, क्योंकि विदेशी कंपनियां हमसे बेहतर रक्षा उपकरण बनाती थीं और हम प्रतिस्पर्धा में पीछे रह जाते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। देश को रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से भारत सरकार की तरफ से बनाई गई सात में से छह रक्षा कंपनियों ने अपनी स्थापना की पहली छमाही में शानदार नतीजे प्रस्तुत किए हैं। इन कंपनियों को भारत सरकार से व्यापार शुरू करने के लिए करीब 7.75 हजार करोड़ रुपये की धनराशि प्राप्त हुई थी। इस धनराशि से इन कंपनियों ने अपनी पहली छमाही में 8400 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार किया है।

नई रक्षा कंपनियों के एक अक्टूबर 2021 से 31 मार्च 2022 तक के लाभ हानि को देखें तो बेहद कम समय में बहुत अच्छे नतीजे आए हैं। म्यूनीशंस इंडिया लिमिटेड व्यापार शुरू करने से पहले 677.33 करोड़ रुपये के घाटे में थी जो अब 28 करोड़ रुपये के लाभ में है। आर्मर्ड वेहिकल्स निगम लिमिटेड को 164 करोड़ का घाटा हुआ था, अब यह कंपनी 33 करोड़ रुपये के लाभ में है। इसी तरह इंडिया आपटेल लिमिटेड 5.67 करोड़ रुपये के घाटे में थी जो अब 60.44 करोड़ रुपये के मुनाफे में है। साथ ही 398 करोड़ रुपये के घाटे में चल रही एडवांस्ड वेपन्स एंड इक्विपमेंट इंडिया लिमिटेड अपने घाटे से उबरकर 4.84 करोड़ रुपये के लाभ में आ गई है। ग्लाइडर्स इंडिया लिमिटेड ने अपना 43.67 करोड़ रुपये का घाटा पूरा कर लिया है और अब 13.26 करोड़ रुपये का मुनाफा कमा चुकी है।

भारत सरकार द्वारा इन कंपनियों को 2021-22 के आर्डर पूरा करने के लिए 7765 करोड़ रुपये उधार दिए गए हैं जिससे इनको व्यापार शुरू करने में कोई परेशानी न आए। इन कंपनियों को तीन हजार करोड़ रुपये के घरेलू आर्डर प्राप्त हो चुके हैं। अब ये कंपनियां अपने बनाए उपकरणों का निर्यात भी करेंगी। केंद्र सरकार पहले दिन से ही इन नई कंपनियों के प्रदर्शन की निगरानी कर रही है और आवश्यकतानुसार हस्तक्षेप कर रही है जिससे इनके गठन के उद्देश्य को पूरा किया जा सके। 

[पूर्व प्राध्यापक, सैन्य विज्ञान विषय]


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