Move to Jagran APP

देश की पहली महिला मरीन इंजीनियर सोनाली बनर्जी, जानें- उनकी अनसुनी कहानी

1999 में आज ही के दिन सोनाली बनर्जी देश की पहली महिला मरीन इंजीनियर बनीं थीं। चार साल की कड़ी मेहनत के बाद उन्होंने यह खिताब हासिल किया।

By Neel RajputEdited By: Published: Mon, 26 Aug 2019 04:37 PM (IST)Updated: Tue, 27 Aug 2019 02:49 PM (IST)
देश की पहली महिला मरीन इंजीनियर सोनाली बनर्जी, जानें- उनकी अनसुनी कहानी

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। 20 साल पहले आज ही के दिन सोनाली बनर्जी देश की पहली महिला मरीन इंजीनियर बनी थीं। आज बहुत सी महिलाएं इस क्षेत्र में आगे आ रही हैं। 20 साल पहले कोई महिला एक मरीन इंजीनियर के तौर पर करियर बनाने के बारे में महिलाएं सोचती भी नहीं थीं। ऐसे समय में सोनाली ने ना सिर्फ मरीन इंजीनियर बनने के बारे में सोचा, बल्कि तमाम वर्जनाओं को दरकिनार करते हुए अपने इस सपने को सच भी कर दिखाया।

loksabha election banner

अपने अंकल से मिली प्रेरणा
सोनाली को वैसे तो बचपन से ही समंदर और जहाजों से लगाव था, लेकिन इस कोर्स को पूरा करने की प्रेरणा उन्हें अपने अंकल से मिली। सोनाली के अंकल नौसेना में थे, जिन्हें देखकर वो भी हमेशा जहाजों पर रहकर काम करना चाहती थीं। अपने इसी सपने को पूरा करने की दिशा में कदम उठाते हुए उन्होंने मरीन इंजीनियरिंग में दाखिला लिया।

चार साल की कड़ी मेहनत के बाद मिली सफलता
सोनाली ने 1995 में IIT की प्रवेश परीक्षा पास की और मरीन इंजीनियरिंग कोर्स में एडमिशन लिया। उन्होंने कोलकाता के निकट तरातला स्थित मरीन इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (MERI) से यह कोर्स पूरा किया। बताया जाता है कि 1949 में भी एक महिला ने मरीन इंजीनियरिंग में दाखिला लिया था, लेकिन किन्हीं वजहों से कोर्स बीच में ही छोड़ दिया था। सोनाली जिस वक्त मरीन इंजीनियर बनीं उस वक्त उनकी उम्र केवल 22 साल थी।

जब सोनाली को लेकर कॉलेज के सामने खड़ी हुई समस्या
सोनाली ने एमईआरआई में दाखिला तो ले लिया, लेकिन अकेली महिला स्टूडेंट होने के कारण कॉलेज के सामने एक नई समस्या खड़ी हो गई। कॉलेज प्रशासन को समझ नहीं आ रहा था कि वो एक अकेली महिला स्टूडेंट को आखिर रखेगी कहां। तब तमाम डिबेट और विचार-विमर्श के बाद उन्हें अधिकारियों के क्वार्टर में रहने की जगह दी गई। सोनाली 1500 कैडेट्स में अकेली महिला कैडेट थीं। 27 अगस्त, 1999 को वह भारत की पहली महिला मरीन इंजीनियर बनकर एमईआरआई से बाहर निकलीं।

प्री-सी कोर्स के लिए हुआ था चयन
कोर्स पूरा होने के बाद मोबिल शिपिंग को (Mobil Shipping Co) द्वारा सोनाली का 06 महीने के प्री-सी (Pre-Sea) कोर्स के लिए चयन किया गया। इस दौरान उन्होंने सिंगापुर, श्रीलंका, थाईलैंड, हॉगकॉग, फिजी और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में अपनी ट्रेनिंग पूरी की। यह समय उनके लिए काफी कठिन था, क्योंकि इस दौरान वो घर परिवार से मीलों दूर थीं। ऐसी तमाम दिक्कतों का सामना करते हुए आखिरकार वो अपने लक्ष्य तक पहुंच ही गईं।

कैसे बनें मरीन इंजीनियर
मरीन इंजीनियर बनने के लिए बैचलर डिग्री प्राप्त करना जरूरी होता है। जो युवा इन कोर्सेज में दाखिला लेना चाहते हैं उनके पास 12वीं में 60 फीसद अंक लाना जरूरी है, साथ ही 12th में केमिस्ट्री, फिजिक्स और मैथ्स विषय होने भी आवश्यक हैं। मरीन इंजीनियर बनने के लिए दो तरह के कोर्स प्रचलन में हैं जिनमें बीटेक इन मरीन इंजीनियरिंग और बीटेक इन नेवल आर्किटेक्ट एंड ओशन इंजीनियरिंग शामिल हैं।

सरकारी संस्थानों के अलावा आजकल कई निजी संस्थान भी ये कोर्स कराते हैं। मरीन इंजीनियरिंग कोर्सेज में दाखिला लेने के लिए लिखित परीक्षा के अलावा इंटरव्यू, साइकोमेट्रिक टेस्ट और मेडिकल टेस्ट से भी गुजरना होता है। इसके बाद मास्टर स्तर पर भी पढ़ाई की जा सकती है। इस दौरान अध्ययन का दायरा बढ़ जाता है और नेवल आर्किटेक्ट जैसे विषयों को विस्तार से पढ़ाया जाता है।

मरीन इंजीनियर बनने के लिए ये क्षमताएं हैं जरूरी
मरीन इंजीनियर बनने के लिए छात्र को मशीनरी से जुड़ी हर चीज की डीप नॉलेज होनी चाहिए। छात्र समुद्र में हर तरह की खराब परिस्थिति में शिप पर रह सके और लंबे समय तक खड़े होकर काम करने की भी हिम्मत होनी चाहिए। इसके साथ ही महीनों परिवार से दूर रहने की क्षमता भी युवा में होनी चाहिए। इस प्रोफेशन में एक अच्छी बात यह भी है कि पूरी दुनिया घूमने के साथ सैलरी पैकेज भी काफी अच्छा है। सामान्य तौर पर मरीन इंजीनियर 64000 रुपयों से 96000 रुपये प्रति माह कमा लेते हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.