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Indian Railways अब खाली प्लास्टिक बोतल के देगा पांच रुपये, जानें- क्या है ये योजना

Indian Railways का ये छोटा-सा प्रयास पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बड़ा कदम साबित हो सकता है। रेलवे से पहले कुछ कालीन उत्पादक भी इस तकनीक का सफलता से उपयोग कर चुके हैं।

By Amit SinghEdited By: Published: Fri, 26 Jul 2019 02:03 PM (IST)Updated: Sat, 27 Jul 2019 08:51 AM (IST)
Indian Railways अब खाली प्लास्टिक बोतल के देगा पांच रुपये, जानें- क्या है ये योजना

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। एक तरफ पूरी दुनिया बढ़ते कचरे के ढेर और उससे होने वाले प्रदूषण से परेशान है, वहीं कुछ देश इस कचरे का बेहतर इस्तेमाल कर न केवल आर्थिक लाभ कमा रहे, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। बहुत जल्द ही भारत का नाम भी इस सूची में शामिल होने वाला है। भारत जैसी बड़ी आबादी वाले देश में ठोस कचरा प्रबंधन एक बड़ी समस्या है। सबसे ज्यादा खतरा प्लास्टिक कचरे से है, खास तौर पर एक बार प्रयुक्त होने वाले प्लास्टिक कचरे (Single Use Plastic Waste) से। ऐसे में भारतीय रेलवे ने प्लास्टिक कचरे से निपटने की अनोखी पहल शुरू की है।

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भारतीय रेलवे ने अब अपने यात्रियों से यात्रा के दौरान प्रयोग की गई प्लास्टिक बोतल खरीदने की योजना तैयार की है। प्रत्येक खाली बोतल के लिए रेलवे यात्रियों को पांच रुपये भी देगा। सुनने में ये थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन रेलवे ने इस योजना की शुरुआत भी कर दी है। फिलहाल पूर्व मध्य रेलवे ने अपने चार प्रमुख स्टेशनों से इस योजना की शुरुआत की है। ये स्टेशन हैं, पटना जंक्शन, राजेंद्रनगर, पटना साहिब और दानापुर रेलवे स्टेशन।

पूर्व मध्य रेलवे ने उपर्युक्त चारों स्टेशनों पर प्लास्टिक की प्रयुक्त हो चुकी बोतलों को यात्रियों से खरीदने के लिए वेंडिंग मशीनें लगाई हैं। रेलवे का ये प्रयोग सफल साबित हो रहा है,क्योंकि आम लोग इस योजना में काफी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। रेलवे पानी की इन खाली बोतलों से टी-शर्ट और टोपी बना रहा है। पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, रेलवे के इस कदम से पर्यावरण को काफी फायदा पहुंचेगा। प्रदूषण में कमी आएगी। इसके बाद हो सकता है कि रेलवे स्टेशनों, ट्रेनों और कूड़ेदानों में खाली प्लास्टिक की बोतलें अतीत की बात हो जाए।

प्रथम चरण में 2000 स्टेशनों पर लगाने की है योजना
रेलवे की योजना प्रथम चरण में इन प्लास्टिक बोतल वेंडिंग मशीन को देश के 2000 स्टेशनों पर लगाने की है। इसके जरिए पानी या कोल्ड ड्रिंक आदि की प्रयुक्त बोतल को रीसाइकल किया जाएगा। पूर्व मध्य रेलवे के अलावा सेंट्रल रेलवे ने भी मुंबई के कुछ स्टेशनों और ईस्ट कोस्ट रेलवे (ECoR) ने पूरी रेलवे स्टेशन पर इस तरह की प्लास्टिक बोतल वेंडिंग मशीन लगाई है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत अन्य रेलवे स्टेशनों और बस स्टैंड समेत भीड़भाड़ वाली बाकी जगहों पर भी इस तरह की वेंडिंग मशीन लगाने की योजना पर काम चल रहा है। जानकार मानते हैं कि प्लास्टिक बोतल के कचरे से मुक्ति दिलाने में ये योजना काफी अहम साबित होगी।

इसी साल रेलवे स्टेशनों पर लगेंगी 5800 और वेंडिंग मशीनें
दिल्ली के ओखला इंडिस्ट्रियल एरिया में मौजूद प्लास्टिक बोतल वेंडिंग मशीन बनाने वाली कंपनी जेलेनो (Zeleno) के मार्केटिंग हेड उत्सव साहनी बताते हैं कि भारत में इस तरह की मशीनें बनाने लगभग सात-आठ कंपनियां हैं। फिलहाल देशभर में इस तरह की तकरीबन 250 प्लास्टिक बोतल वेंडिंग मशीनें लगी हुई हैं। इनमें से करीब आधी (100-120) वेंडिंग मशीनें अलग-अलग रेलवे स्टेशनों पर लगी हैं। इसी तरह की छह वेंडिंग मशीन दिल्ली के कनॉट प्लेस में भी लग चुकी हैं। हाल ही में रेलवे ने इस तरह की 5800 मशीनों के लिए टेंडर जारी किया था। ये निविदा प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और कंपनियों को वर्क ऑर्डर जारी होना बाकी है। वर्क ऑर्डर जारी होते ही कई और रेलवे स्टेशनों पर इस तरह की 5800 प्लास्टिक बोतल वेंडिंग मशीनें लगाने का काम शुरू कर दिया जाएगा। उम्मीद है कि इस वर्ष के अंत तक इन मशीनों को लगाने का काम पूरा कर लिया जाएगा।

बहुत हाईटेक होती है ये मशीन
जेलेनो के मार्केटिंग हेड उत्सव साहनी बताते हैं कि ये मशीनें बहुत हाईटेक होती हैं। इसमें मोबाइल नंबर डालने के लिए टच स्क्रीन होती है। मशीन में कई तरह के सेंसर लगे होते हैं, जो ये सुनिश्चित करते हैं कि केवल प्लास्टिक बोतल ही मशीन में डाली जाए। ये मशीन बोतलों की पूरी रिपोर्ट भी देती है, मसलन किस कंपनी की और कितनी बड़ी बोतलें इसमें डाली गई हैं। बोतल के आकार (आधा लीटर या एक लीटर आदि) के अनुसार, ये उनका वर्गीकरण कर रिपोर्ट तैयार करती है। इन मशीन में प्रयोग हो चुकी प्लास्टिक बोतलों से धागा तैयार किया जाता है। इसके बाद उस पॉलिएस्टर धागे से कुछ भी बनाया जा सकता है। दक्षिण भारत के कुछ शहरों में इस प्लास्टिक को बिटोमिन में मिलाकर सड़क बनाने का भी प्रयोग चल रहा है, जिसके शुरुआती परिणाम काफी अच्छे हैं। इन मशीनों की खासियत ये है कि इन्हें भीड़भाड़ वाली किसी भी जगह पर आसानी से लगाया जा सकता है। एक मशीन की कीमत तकरीबन चार-पांच लाख रुपये होती है।

ऐसे प्लास्टिक बोतल से बनेगी टी-शर्ट व टोपी
पूर्व मध्य रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी (CPRO) राजेश कुमार ने न्यूज एजेंसी IANS से बातचीत में बताया कि रेलवे स्टेशनों पर लगी वेंडिंग मशीन में जमा होने वाली प्लास्टिक बोतलों को क्रश कर इनसे टी-शर्ट और टोपी बनाने का काम किया जाएगा। प्लास्टिक बोतल के रेशे से बनी टी-शर्ट और टोपी की खासियत ये होगी कि इसे हर मौसम में आराम से पहना जा सकता है। प्रयुक्त प्लास्टिक बोतल से टी-शर्ट और टोपी बनाने के लिए पूर्व मध्य रेलवे ने मुंबई की एक कंपनी से करार किया है। बोतल को क्रश कर उससे लिक्विड बनेगा और फिर उससे रेशा तैयार कर धागा बनाया जाएगा।

झारखंड में लगी थी प्लास्टिक से बनी टी-शर्ट की प्रदर्शनी
सीपीआरओ ने बताया कि हाल में झारखंड की राजधानी रांची में भी इस तरह की टी-शर्टों की एक प्रदर्शनी लगाई गई थी। लोगों ने इस प्रदर्शनी को काफी पसंद किया था। अगर रेलवे का ये प्रयोग सफल रहा तो जल्द ही प्लास्टिक बोतलों से बनी टी-शर्ट और टोपी बाजार में दिखने लगेगी। इसका कपड़ा पॉलिएस्टर जैसा होगा। फिलहाल पूर्व-मध्य रेलवे ने पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चार स्टेशनों से इस योजना की शुरुआत की है। पायलट प्रोजेक्ट सफल रहने पर पूरे देश के रेलवे स्टेशनों पर यात्रियों को इसी तरह की वेडिंग मशीनें देखने को मिल सकती हैं। इसकी संभावना काफी ज्यादा है।

पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रभावी कदम
ट्रेन के सफर में खरीदी जाने वाली या मिलने वाली प्लास्टिक बोतलों को सफर खत्म होने पर तोड़कर कूड़ेदान में डालना होता है। इसके विपरीत यात्री अक्सर इन प्रयुक्त प्लास्टिक बोतलों को ट्रेन में ही छोड़ देते हैं या उन्हें प्लेटफॉर्म या पटरियों पर इधर-उधर फेंक देते हैं। इससे प्रदूषण तो होता ही है, अक्सर ये प्लास्टिक की बोतलें नालियों और सीवेज को चोक भी कर देती हैं। कई बार ये बड़ी तकनीकी खराबी की भी वजह बनती हैं। ऐसे में पूर्व मध्य रेलवे के पायलट प्रोजेक्ट से स्टेशनों को साफ-सुथरा रखने में मदद मिलेगी। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी ये प्रभावी कदम साबित हो सकता है।

प्रतिदिन औसतन 8 किलो प्लास्टिक यूज करते हैं भारतीय
रेलवे के अनुसार, भारत में प्रत्येक दिन, प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की औसत खपत सात से आठ किलोग्राम है। इसमें केवल रेलवे में पानी की प्रयुक्त बोतलों का योगदान पांच प्रतिशत है। पूर्व-मध्य रेलवे के सीपीआरओ ने बताया कि यात्रियों को खाली बोतल के लिए रेलवे की एजेंसी बायो-क्रश की ओर से वाउचर के रूप में पांच रुपये दिए जाएंगे। इस वाउचर का इस्तेमाल कई चुनिंदा दुकानों और मॉल में खरीदारी के लिए किया जा सकता है।

मोबाइल पर आएगा वाउचर पेमेंट
वेंडिंग मशीन में प्लास्टिक की बोतल डालने के साथ यात्री को वहां अपना मोबाइल नंबर भी डालना होता है। मशीन में बोतल क्रश होते ही यात्री को उनके दिए गए मोबाइल नंबर पर थैंक्यू मैसेज के साथ पांच रुपये का वाउचर मिल जाता है। रेलवे के अनुसार, ये वाउचर ज्यादा से ज्यादा जगहों पर खरीदारी के लिए मान्य हो, इसका प्रयास किया जा रहा है। रेलवे लगातार कई बड़े शोरूम और रिटेल चेन कंपनियों से इसके लिए वार्ता कर रही है। कुछ जगहों पर इस वाउचर का इस्तेमाल शुरू हो चुका है।

प्लास्टिक बोतल से बन रही कालीन
रेलवे से पहले प्लास्टिक की खाली बोतलों से मखमली कालीन बनाने का काम शुरू किया जा चुका है। पानीपत में करीब एक वर्ष पहले ही इसकी शुरुआत हो चुकी है। इसके बाद वस्त्र मंत्रालय और कालीन निर्यात संवर्धन परिषद द्वारा इस प्रोजेक्ट को बनारस, मिर्जापुर और संत रविदास नगर (भदोही) में शुरू किया गया है। भारतीय कालीन मेले में पानीपत की निजी कंपनी ने पैट यार्न का प्रस्तुतिकरण किया था। कंपनी द्वारा बताया गया था कि पैट यार्न पूरी तरह से इको फ्रेंडली है। इसमें अलग तरह की चमक होती है। पानीपत के अलावा गुजरात में भी कई फैक्ट्रियां प्लास्टिक कचरे से यार्न बना रही हैं। उस वक्त ये बात भी सामने आई थी कि प्रतिदिन करीब नौ लाख रुपये की खाली प्लास्टिक बोतलों का कारोबार अकेले बनारस में है।

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