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Indian Railway News: देखता रहा शासन-प्रशासन रेल ट्रैक के किनारे बसती रहीं झुग्गियां

Indian Railway News झुग्गियों को बसने से रोकना ही जहां मुश्किल हो वहां उन्हें हटाना कितना कठिन होगा इसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 04 Sep 2020 08:47 AM (IST)Updated: Fri, 04 Sep 2020 11:56 AM (IST)
Indian Railway News: देखता रहा शासन-प्रशासन रेल ट्रैक के किनारे बसती रहीं झुग्गियां

नई दिल्‍ली, जेएनएन। Indian Railway News दिल्ली में रेल ट्रैक के किनारे बसी 48,000 झुग्गियों को हटाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख के बाद व्यवस्था व ट्रेनों के रफ्तार पकड़ने की उम्मीद जगी है। हालांकि, देश के बड़े शहरों में शासन-प्रशासन की नजरों के सामने रेलवे लाइन किनारे झुग्गी बस्तियों के बसने की कहानी बहुत पुरानी है। रेलवे की जमीन पर नियमों को तिलांजलि देती हुई बसी इन बस्तियों को हटाने के लिए पहले भी प्रयास हुए, लेकिन कानूनी पेंच, राजनीतिक दखल और लचर प्रशासनिक रुख के कारण अक्सर वे ढाक के तीन पात साबित हुए।

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दिल्ली की 18.9 व चेन्नई की 25.6 फीसद जमीन पर झुग्गियां: वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक देश के करीब 6.5 करोड़ लोग लगभग 1.4 करोड़ झुग्गियों में जिंदगी बिता रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश के प्रमुख चार महानगरों की जमीन के एक बड़े हिस्से पर झुग्गियां बस चुकी हैं। मुंबई की छह, दिल्ली की 18.9, कोलकाता की 11.72 व चेन्नई की 25.6 फीसद जमीन पर झुग्गियां काबिज हैं।

आसान निशाना: देश की करीब 1.4 करोड़ झुग्गियों का बड़ा हिस्सा रेलवे ट्रैक के किनारे बसा है। पटरियों के किनारे खाली पड़ी जमीन हमेशा से अतिक्रमणकारियों के लिए सॉफ्ट टारगेट रही है। उदाहरण के तौर पर एक आरटीआइ आवेदन से पता चला कि मार्च, 2007 तक रेलवे के पास 4.34 लाख हेक्टेयर जमीन थी, जिसमें से 1,905 हेक्टेयर अतिक्रमित थी। एक अनुमान के मुताबिक अतिक्रमित जमीन के बड़े हिस्से पर झुग्गियां बस गई हैं। इनमें से ज्यादातर झुग्गियों व ट्रैक के बीच की दूरी सुरक्षा मानक (15 मीटर) के प्रतिकूल है।

इतना आसान भी नहीं झुग्गियों को हटाना: झुग्गियों को बसने से रोकना ही जहां मुश्किल हो वहां उन्हें हटाना कितना कठिन होगा इसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, गुजरात के सूरत में 15 हजार की आबादी वाली 14 झुग्गी बस्तियों को पिछले 40 वर्षों में कई बार हटाने की कोशिश की गई। झुग्गीवासी हिंसा पर उतर जाते हैं। थोड़े ही समय बाद लौट भी आते हैं। वर्ष 2006 में बिहार की राजधानी पटना में पाटलीपुत्र स्टेशन के निर्माण की कवायद शुरू हुई। 950 परिवारों वाली एक झुग्गी बस्ती आड़े आ गई। वह जमीन उन्हें राज्य सरकार की तरफ से पट्टे पर मिली थी। मामला कोर्ट तक पहुंचा। कोर्ट ने पुनर्वास की

व्यवस्था होने तक झुग्गियों को हटाने पर रोक लगा दी। एक पहलू यह भी है कि अभियान तो चला दिया जाता है, लेकिन जब झुग्गीवासियों के पुनर्वास की बात आती है तो कोई भी एजेंसी जिम्मा नहीं लेना चाहती। महाराष्ट्र इस मामले में थोड़ा अलग है। वहां झुग्गी पुनर्वास कानून के तहत वर्ष 2000 से पहले बसी किसी भी झुग्गी को हटाने से पूर्व पुनर्वास की व्यवस्था करना जरूरी है।


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