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पीड़ितों का मुआवजा बढ़ाने में रेलवे कंजूस, जानिए कैसे?

अठारह साल में महंगाई कहां से कहां पहुंच गई। एयरलाइनों का मुआवजा भी बढ़ गया है। मगर नहीं बढ़ी तो रेलवे की क्षतिपूर्ति। जी हां, रेल दुर्घटना के शिकार यात्रियों के लिए रेलवे की ओर से दी जाने वाली मुआवजा राशि में पिछले 18 सालों से कोई बढ़ोतरी नहीं हुई

By anand rajEdited By: Published: Sun, 12 Apr 2015 10:32 AM (IST)Updated: Sun, 12 Apr 2015 10:53 AM (IST)
पीड़ितों का मुआवजा बढ़ाने में रेलवे कंजूस, जानिए कैसे?

नई दिल्ली (संजय सिंह)। अठारह साल में महंगाई कहां से कहां पहुंच गई। एयरलाइनों का मुआवजा भी बढ़ गया है। मगर नहीं बढ़ी तो रेलवे की क्षतिपूर्ति। जी हां, रेल दुर्घटना के शिकार यात्रियों के लिए रेलवे की ओर से दी जाने वाली मुआवजा राशि में पिछले 18 सालों से कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। यह चार लाख रुपये पर ही अटकी हुई है। इस मामले में रेलवे की कंजूसी पूरी तरह से उजागर हुई है।

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रेलवे ने ट्रेन दुर्घटना पीड़ितों के लिए मुआवजा राशि का आखिरी बार निर्धारण 1997 में किया था। इसके बाद पुनरीक्षण नहीं हुआ है। नतीजतन, रेल हादसों में मरने वालों को पहले की तरह चार लाख रुपये देकर टरकाया जा रहा है। जबकि इस दौरान महंगाई तथा रेल सेवाओं की कीमतों का स्तर कहां से कहां पहुंच चुका है। मौत के अलावा रेल दुर्घटनाओं में घायल होने वालों के लिए भी मुआवजे की राशियों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।

रेलवे ने सबसे पहले 1962 में दुर्घटना पीड़ितों के लिए मुआवजा राशियों का निर्धारण किया था। तब मृतक के लिए 10 हजार ‘टका’ राशि तय की गई थी। वर्ष 1963 में पहली बार इसका निर्धारण रुपये में हुआ और मृतकों के लिए 20 हजार रुपये का मुआवजा तय हुआ। तदोपरांत लगभग हर दस साल या इससे भी कम अवधि के अंतराल पर इसमें संशोधन होता रहा। मसलन, 1973 में मुआवजे की राशि बढ़ाकर 50 हजार रुपये, 1983 में एक लाख रुपये, 1990 में दो लाख रुपये और फिर 1997 में चार लाख रुपये कर दी गई। लेकिन इसके बाद न जाने क्या हुआ कि रेलवे ने इस ओर देखना ही बंद कर दिया।

वैसे देखा जाए तो दुर्घटना पीड़ितों के प्रति रेलवे का रवैया हमेशा से ही विचित्र रहा है। क्योंकि जहां सड़क दुर्घटना पीड़ितों को मुआवजे की राशि उनकी आर्थिक सामाजिक हैसियत तथा पारिवारिक पृष्ठभूमि के आधार पर मोटर एक्सीडेंट टिब्यूनल द्वारा तय की जाती है, वहीं रेलवे में सब धान बाइस पसेरी की तर्ज पर हर श्रेणी के यात्री को रेलवे एक्सीडेंट ट्रिब्यूनल द्वारा भी अधिकतम चार लाख रुपये की राशि ही अवार्ड की जाती है। आरटीआइ कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ के अनुसार सड़क हो, हवाई जहाज हो या रेलवे। परिवहन के सभी क्षेत्रों में सेवाओं के मूल्य इन सालों में महंगाई के मुताबिक कमोबेश बढ़े हैं।

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