अयोध्या विवाद: 20 वर्षो में बदला राजनीतिक-सामाजिक माहौल
अयोध्या विवाद को दो दशक बीत गए हैं। इन दो दशकों में भारत में हुए राजनीतिक और सामाजिक बदलाव आज सभी के सामने हैं। अयोध्या मामले को वोट बैंक के लिए इस्तेमाल करने वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार में आने के बाद इस मसले पर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकी, लिहाजा ज्यादा नहीं चल सकी। भाजपा के एजेंडे में कभी सबस
नई दिल्ली। अयोध्या विवाद को दो दशक बीत गए हैं। इन दो दशकों में भारत में हुए राजनीतिक और सामाजिक बदलाव आज सभी के सामने हैं। अयोध्या मामले को वोट बैंक के लिए इस्तेमाल करने वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार में आने के बाद इस मसले पर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकी, लिहाजा ज्यादा नहीं चल सकी।
भाजपा के एजेंडे में कभी सबसे ऊपर दिखाई देने वाला अयोध्या मामला अब या तो उनके एजेंडे में दिखाई ही नहीं देता है और अगर देता भी है तो वह सबसे आखिर में होता है। वहीं इस मामले पर हाई कोर्ट का फैसला आने के बाद इस मसले पर सामाजिक दायरा भी पूरी तरह से बदल गया है। वह हिंदू जो कभी अयोध्या में कारसेवा के नाम पर खड़ा हो जाता है वह आज इस मुद्दे पर भड़कता नहीं है।
विवादित ढांचा गिराए जाने से पूर्व अखबारों में प्रशासन के दावे हर दिन छप रहे थे कि अयोध्या में माहौल नियंत्रण में है, चिंता की कोई बात नहीं है, राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद ढाचे को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। इन सभी दावों के बावजूद छह दिसंबर, 1992 को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का ढाचा गिरा दिया गया।
हालाकि अति विवादित इस घटना के इतने वर्ष बीतने के बाद जो सामाजिक और राजनीतिक तानेबाने में बदलाव आया है उसमें बहुत बड़ी भूमिका आधुनिक सूचना एवं संचार माध्यमों का भी है।
1992 में जय श्री राम की गूंज जहा कहीं भी सुनाई पड़ रही थी, टेलीविजन व रेडियो ने इसे कैद किया था। लेकिन 2010 में जब इस मामले पर वकील प्रेस को संबोधित कर रहे थे व मुकदमा जीतने की बाबत श्रेय का दावा कर रहे थे, उस दौरान कुछ लोगों के जय श्री राम के नारे लगाने को भी टीवी चैनलों ने इसे तवज्जो नहीं दी।
विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद से धार्मिक संस्थानों को फंड मुहैया कराने का मामला जाच के दायरे में है और इसमें मदरसा समेत अन्य संस्थान भी जाच के दायरे में शामिल है। 1992 के इस घटना के दौरान निश्चित तौर पर समय व वातावरण अलग था और आज इस घटना को लेकर सोच अलग बनी हैं। विश्व हिंदू परिषद आज महसूस करती है कि सत्ता में रहने के बाद भी भाजपा की अगुआई वाली सरकार वैसा कुछ भी नहीं कर पाई जो वह कर सकती थी। वहीं, राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि आज के दौर में हिंदू ध्रुवीकरण का एक प्रमुख हिस्सा सामान्य तौर पर अशक्त हो रहा है।
इन सबके बीच अयोध्या मामले में आए फैसले के बाद देश में पसरी शाति और सौहार्द के माहौल ने धर्म के तवे पर राजनीति की रोटी सेकने वालों के होश उड़ गए। देश में होने वाली अराजकता और उसमें गिरने वाली लाशों पर राजनीति करने की योजना बनाने वाले कुछ राजनीतिक दलों को अपनी जमीन खिसकती महसूस होने लगी। हालांकि आज भी कुछ राजनीतिक और धार्मिक संगठन अपनी राजनीतिक रोटी सेकने के लिए विध्वंसक बयानों को प्रसारित करने से बाज नहीं आते हैं। हालाकि ऐसे संगठनों में कुछ खुद को हिन्दू समाज का पैरोकार बताते है तो कुछ खुद को इस्लाम का सबसे बड़ा हितैषी साबित करने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है। लेकिन इनकी वास्तविकता दोनों समाज के प्रबुद्ध लोगों को पता है।
हालाकि आज उस दिन को याद करने पर इस बात का अहसास होता है कि जिन इमारतों का जिक्र इतिहास में किया जाता रहा है 1992 के बाद उनमें से एक संख्या कम हो गई है। सरयू किनारे खड़ी अयोध्या आज शात है। यह अलग बात है कि बाबरी मस्जिद गिराए जाने की जगह के आसपास का इलाका छावनी में तब्दील हो चुका है जहा रात दिन पुलिसवाले ड्यूटी कर रहे हैं। इन सभी के बीच इस मुद्दे को उठाने वाली पार्टियां अब इस मुद्दे पर पूरी तरह से शांत हैं।
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